अशोक श्रीवास्तव कुमुद की काव्य संग्रह तरंगिणी से नवीन रचना - फिसलती जिंदगी

Dr. Mulla Adam Ali
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अशोक श्रीवास्तव "कुमुद" की नवीन रचना नवीन काव्य संग्रह "तरंगिणी" से

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फिसलती जिंदगी

(काव्य संग्रह "तरंगिणी" से)

हौले हौले हाथों से,

फिसले रेत सी जिंदगी।

खाली खाली आँखों में,

भरे अनजानी तिश्नगी।


सुहाने सपने दिखाए,

उम्मीद दिल में जगाए,

कोई पुकारे दूर से।

हौले हौले हाथों से,  

फिसले रेत सी जिंदगी।


आजा आजा साथ चलें,

करें प्यारी सी दिल्लगी।

भूल जायें सारा जहां,

भूल जायें संजीदगी।


धीमे धीमे वो आए,

चुपचाप दिल में समाए,

कोई पुकारे दूर से।

हौले हौले हाथों से,  

फिसले रेत सी जिंदगी।


जागी जागी रातों में,

बैरन बन गई सादगी।

प्यारी प्यारी बातों में,

घोल थोड़ी आवारगी।


हल्का सुरूर जो आए,

मुस्करा मन को हिलाए,

कोई पुकारे दूर से।

हौले हौले हाथों से,     

फिसले रेत सी जिंदगी।

अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"

राजरूपपुर, प्रयागराज

अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"काव्य संग्रह

"तरंगिणी" से (वियोग शृंगार)

सखी क्यों, फागुन छेड़त रार।

धरा बसंती मलय समीरा, करे प्रकृति शृंगार।

भ्रमर मंजरी हृदय विदारक, ढाये कष्ट अपार।

कोकिल बोली शूल चुभोवत, पीड़ा अपरंपार।

ढोल मँजीरा बाजत घर घर, टूटत दिल का तार।

दुनिया बैरन बिन मोहन के, दर्द "कुमुद" आधार।

अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"

राजरूपपुर, प्रयागराज

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