Manuhar : अशोक श्रीवास्तव कुमुद की रचना मनुहार

Dr. Mulla Adam Ali
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Poetry by Ashok Srivastava 'Kumud'

Manuhar

manuhara kavita in hindi

मनुहार

हुये गोरी क्यों रक्त कपोल,

सखी पट लाज हिया के खोल,

समय ना बीते ये अनमोल,

अधर क्यों बंद कामिनी बोल।


छाया मधुमास हिया पाटल,

अँगना खनके खनकी पायल,

गर नजर मिली नजरें कायल,

मनवा घायल दिलवा घायल।  


चाह पुनि बजे हिया के ढोल,

बोल फिर स्वर मिसरी के घोल,

सखी पट लाज हिया के खोल,

अधर क्यों बंद कामिनी बोल।


बिखरा बिखरा उड़ता गुलाल,

नयनाभिराम पाटल पुआल,

हो प्रेम लहर गोरी बहाल,

पलकें खोलो कर दो निहाल।


चाह पुनि खंजन नयन किलोल,

मीत कुछ नजर मिला कुछ डोल,

सखी पट लाज हिया के खोल,

अधर क्यों बंद कामिनी बोल।


कलियाँ चूमे अलि डाल डाल,

नवरूप जन्म तब बेमिसाल,

अस्मिता अहम् दिल से निकाल,

सब प्रतिबंधों को तोड़ डाल।


चाह पुनि लुटूं मुफ्त बेमोल,

प्रीत अब कर ना टाल मटोल,

सखी पट लाज हिया के खोल,

अधर क्यों बंद कामिनी बोल।

अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"

राजरूपपुर, प्रयागराज

पाटल: गुलाबी

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