Bacchon Mein Jagrukta Badhati Priy Bal Paheliyan : Dr. Rakesh Chakra, Hindi Riddles for Kids, Hindi Paheliyan Book Review.
Hindi Bal Paheliyan Book by Dr. Rakesh Chakra
डॉ. नागेश पांडेय 'संजय' द्वारा डॉ. राकेश चक्र की बाल पहेलियों पर एक गहन समीक्षात्मक लेख, जिसमें उनके साहित्यिक योगदान, मानवीय मूल्यों और बाल साहित्य में उनकी मौलिकता का प्रभावी चित्रण किया गया है।
अनिर्वचनीय आनंद से परिपूर्ण राकेश चक्र की बाल पहेलियां
- डॉ. नागेश पांडेय ‘संजय’
समीक्षात्मक आकलन
डॉ. राकेश चक्र एक अच्छे लेखक तो हैं ही, एक बहुत अच्छे इंसान भी हैं। मानवता का उनके जीवन से अन्योन्याश्रित संबंध है। उन्हें मानवीय संबंधों की गहरी समझ है। संवेदना उनमें रची-बसी है। केवल मानव के प्रति ही नहीं, संपूर्ण चराचर जगत के प्रति भी उनका आत्मीय व्यवहार चकित और प्रेरित करता है। वे विशाल हृदय के सरल-सहज मानव हैं। उनका व्यक्तित्व श्लाघनीय होने के कारण अनुकरणीय है। अपने आत्मीय व्यवहार से वे सभी के प्रिय और आदरेय हो जाते हैं।
हिंदी साहित्य जगत को उन्होंने असंख्य कृतियां समर्पित की हैं। प्रौढ़ और बाल साहित्य लेखन में उनकी समान गति है। उनका कृतित्व भी उनके व्यक्तित्व की तरह ही सरल और सहज है। कोई कृत्रिमता नहीं। कोई प्रदर्शन नहीं। सब कुछ सहज और स्वाभाविक-सा। ऐसा प्रतीत होता है कि चक्र जी का जीवन मौलिक जीवन है। उन्होंने अपनी राह स्वयं बनाई। वे मौलिक राहों के अन्वेषी है।
संसार में जीवन सर्वाधिक मूल्यवान है। यह बात प्राय: लोगों को समझ नहीं आती और या फिर वे इसे देर से समझ पाते हैं। चक्र जी जीवन के प्रति सजग हैं। न केवल अपने बल्कि अपनों के भी। बाल, युवा और वृद्ध सभी की सेवा में उनकी तत्परता देखते ही बनती है। मैं स्वयं न जाने कितनों के मुख से उनकी सेवावृति का बखान सुन चुका हूं। ...और मैं तो स्वयं भी उनकी आत्मीय वृत्ति का मुक्त प्रशंसक हूं। उनसे एक पारिवारिक नाता महसूसता हूं। मेरे माता पिता से लेकर बच्चे और यहां तक कि मेरे सहकर्मी और छात्रगण: सभी उनके अपनत्व के ऋणी हुए हैं।
वे विशुद्ध रूप से पहले सामाजिक व्यक्ति हैं। साहित्यिक बाद में हैं। साहित्य सृजन के साथ-साथ साहित्य को जीने का उनका गुण, उन्हें अलग बनता है । इस अद्वितीय जीवन शैली ने उनकी सामाजिकता को पंख दिए हैं।
कह सकते हैं कि उनकी सामाजिकता उनके साहित्य में परिलक्षित होती है और उनका साहित्य उनकी सामाजिकता में। साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है। दर्पण वह इस नाते है कि उसे देख कर समाज अपना रूप संवारने के लिए प्रेरित हो सके। चक्र जी इस परिभाषा को साकार करने में सक्रिय भूमिका निभानेवाले सफल रचनाधर्मी हैं। साहित्य सृजन में शिल्प से अधिक उनका लक्ष्य भाव पक्ष पर केंद्रित रहता है। उनकी प्रस्तुतियों में भावों की अतल गहराई दिखती है। वे कारयित्री प्रतिभा से संपन्न, हृदय को छूने वाले समर्थ रचनाकार के रूप में सम्मानित हैं। ढेर सारे पुरस्कार सम्मान उनके लेखन के आराधक हैं। इसके बाद भी उनकी सरलता और सक्रियता उन्हें प्रणम्य बनाती है। उनकी लेखनी अनवरत सक्रिय है। वे सभी की टिप्पणियों और खासकर आलोचना का सहज मन से स्वागत करते हैं। उन्होंने कभी भी बड़े या स्वयंभू लेखक होने का दंभ नही पाला और इसीलिए वे स्वाभाविक रूप से बड़े बनते गए।
विविध विधाओं की उनकी रचनाएं पढ़ता ही रहता हूं। गद्य में वे निष्णात हैं। पद्य में भी उनका प्रचुर किंतु बहुधा सप्रयास लेखन खूब देखने को मिलता है।
वर्ष 2017 विद्यार्थी प्रकाशन, लखनऊ से मेरे संपादन में एक संकलन आया था : 'श्रेष्ठ बाल पहेलियां'। उसमें अमीर खुसरो से लेकर आज के अनेक समकालीन बाल साहित्य लेखक शामिल थे। राकेश चक्र जी की पहेलियां भी उस संकलन में थीं, जिनमे यह दो तो मुझे आज तक याद है :
बार बार खाएँ जिसे,
गुठली चूसें यार।
तन को बलशाली करे,
इसमें स्वाद अपार ।
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डिब्बा-सा है धातु का,
अंदर रखी मशीन ।
ऑन बटन जब भी किया,
दुनिया लगी हसीन।
वाट्स एप पर "बाल साहित्य सृजन" के नाम से उनका एक समूह भी है। यह समूह वस्तुत: एक प्रशिक्षण शिविर है, जहां अनेकानेक लेखक रोज ही कितनी अच्छी रचनाओं का सृजन कर रहे हैं। परस्पर विमर्श के चलते उन रचनाओं का परिमार्जन भी होता चलता है। समूह में एक दिन बाल पहेलियों का होता है। शाब्दिक चमत्कार के चलते बाल पहेलियां बच्चों को बहुत भाती हैं। बच्चों को ही नहीं, बड़ों को भी इनमें खूब आनंद मिलता है, क्योंकि इस बहाने वे अपने बच्चों के ज्ञान का परीक्षण कर आह्लादित होते हैं।
रहिमन अति सुख होत है,
बढ़त देख निज गोत।
जो बड़री अखियां निरख,
आंखिन को सुख होत ।
भावी पीढ़ी को ज्ञानवान और हाजिर जवाब देख भला किस बड़े का मन गौरवान्वित न हो उठेगा। इस समूह के संचालक के रूप में डॉ. राकेश चक्र का लेखन परस्पर विमर्श के चलते और भी अधिक परिवर्धित और संवर्धित हुआ है।
इस समूह पर तो उन्होंने ढेर सारी बाल पहेलियां का सृजन किया है। चक्र जी की वर्ष 2022 में 251 बाल पहेलियों की पुस्तक, "मनभावन बाल-बूझ पहेलियाँ केशव बुक्स दिल्ली से प्रकाशित हो चुकी है, जो बच्चों ने बहुत पसंद की है। जिसका बड़े पैमाने पर बिक्रय हुआ है। आपका पत्र पत्रिकाओं में उनका प्रकाशन होता ही रहता है। उनकी यह पहेलियां विषयगत वैविध्य से परिपूर्ण हैं। बौद्धिक व्यायाम करते हुए बच्चे इनसे आनंदनुभूति कर सकेंगे। इन्हें बूझकर उन्हें अनिर्वचनीय आनंद मिलेगा। ऐसी रचनाएं बच्चों और उनके साथियों में भी खूब लोकप्रिय होती हैं। इनका एक साथ आना अति आवश्यक था।
यह प्रसन्नता का विषय है कि उनकी चयनित बाल पहेलियां का संकलन प्रकाशित हो गया है। इस सुखद अवसर पर मैं उन्हें हार्दिक बधाई देता हूं।
लेखन के साथ साथ प्राणिमात्र की सेवा उनके जीवन का मूल मंत्र है। अस्तु, वसुधैव कुटुंबकम की परंपरा के अनुगामी चक्र जी का पथ प्रशस्त रहे। उनके कारण आमजन के चेहरों पर जो सुख वैभव बिखरता है, वह दिनानुदिन बढ़ता रहे।
उत्तम और निरंतर बाल साहित्य सृजन के लिए उन्हें मेरी अनंत शुभकामनाएं।
- डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'
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