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Wapsi Kahani by Usha Priyamvada
कहानी वापसी : अपनी कहानियों में उषा प्रियंवदा ने आधुनिक पारिवारिक जीवन के बदलाव और प्रेम संबंधों के बदलते रूप को अत्यंत सहज और भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया है। आज के समाज में रिश्तों की बदलती परिभाषा को दर्शाती हैं उनकी कहानियाँ।
सबसे चर्चित और मार्मिक कहानियों में से एक ‘वापसी’ है। यह कहानी उस संयुक्त परिवार के टूटने की कहानी है, बुजुर्गों के लिए न सम्मान बचा है, परिवार में न स्थान। सुनिए कहानी वापसी ऑडियो स्टोरी पॉडकास्ट।
Wapsi Story in Hindi
Summary, Characters, Analysis & FAQs
कहानी का नाम : वापसी
कहानीकार : उषा प्रियंवदा
‘वापसी’ कहानी का संक्षिप्त कथानक :
‘वापसी’ कहानी एक सेवानिवृत्त रेलवे कर्मचारी गजाधर बाबू की है। उन्होंने खुशी-खुशी अपने परिवार के पास लौटने का फैसला लिया 35 साल नौकरी करने के बाद, बच्चों की पढ़ाई के कारण उन्होंने पत्नी और बच्चों को शहर में रखकर उन्होंने रेलवे क्वार्टर रहने का फैसला लिया, क्योंकि वे खर्चा बचना चाहते और परिवार से उन्हें बहुत प्यार था।
जब गजाधर बाबू रिटायर होते हैं तो उनको बहुत दुख हुआ, उनके 35 साल के परिचित मित्रों को छोड़कर जाने का लेकिन परिवार से मिलने की खुशी भी हुई। जब वे घर पहुंचते हैं तो उनका सपना टूट जाता है, उनको अहसास होता है कि अब उनकी कोई अहमियत ही नहीं परिवार में। उनके बैठने के लिए एक पतली सी चारपाई डाली गई थी, जैसे वे एक घर आए मेहमान हों।
उनके बेटे, नहीं, बेटी यहां तक कि पत्नी को भी उनकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं होती, उनको लगने लगता है कि वे एक धन कमाने का मशीन है और परिवार का साधन, बेटे नरेंद्र और बेटी बसंती को पिताजी के बातों पर नाराजगी जताई देते हैं और बसंती उनसे बातें करना बंद कर देती है।
गजाधर बाबू परिवार फिर दूर जाने का फैसला लेता है, वह पुनः नौकरी करने के लिए चला जाता है, पत्नी भी रोकने की कोशिश नहीं करती। उनके वापसी के बाद चारपाई भी बैठक से हटा दी जाती है, जैसे वे कभी आए नहीं थे।
1. मुख्य बात:
यह कहानी भावनात्मक अंतर को दर्शाती है जो नए पीढ़ी और पुराने पीढ़ी की, आजकल परिवार में बुजुर्गों के लिए कोई सम्मान नहीं है और अपनापन कम होते जा रहा है।
2. मुख्य पात्र:
गजाधर बाबू – परिवार के लिए 35 साल रेलवे में नौकरी करने वाला एक संवेदनशील इंसान, परिवार के तिरस्कार को भी सह लेता है।
3. भाषा-शैली :
उषा प्रियंवदा की कहानी ‘वापसी’ में साधारण बोलचाल की भाषा है जो सरल और स्पष्ट। कहानी के पात्रों के अनुसार भाषा का प्रयोग हुआ है, भाषा में प्रवाह और भावना सीधे पाठक से जुड़ जाती है।
4. संवादों का उपयोग :
कहानी वापसी में संवाद सहज, स्वाभाविक और अत्यंत भावपूर्ण है जो कहानी को आगे बढ़ाने और पत्रों की मनोदशा को दिखाती है।
“बाबूजी को बैठे-बैठे यही सूझता है।” – इस संवाद से पता चलता है कि घर का माहौल क्या है और पीढ़ी का अंतर क्या है।
5. वातावरण चित्रण :
घर के अपने लोगों का बदलता व्यवहार से पता चलता है कि बुजुर्ग लोगों के लिए घर में जगह नहीं है, टूटते संयुक्त परिवार की झलक देखने को मिलती है। परिवार का बदलता माहौल को कहानी में बखूबी बताया गया।
6. उद्देश्य :
वापसी कहानी का उद्देश्य स्पष्ट है, बुजुर्गों की उपेक्षा और नई पीढ़ी से टकराव को दर्शाना, पुरानी पीढ़ी की जिम्मेदारियां, अकेलापन, नई पीढ़ी में बुजुर्ग लोगों के लिए सहानुभूति की कमी को लेखिका उषा प्रियंवदा ने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है।
7. शीर्षक की सार्थकता :
‘वापसी’ कहानी का शीर्षक गजाधर बाबू की मानसिक पीड़ा, उपेक्षा और अकेलेपन को बया करती है, यहां वापसी घर से फिर नौकरी पर लौटने की दुखद कथा है।
8. निष्कर्ष (Conclusion):
सामाजिक सच्चाई से जुड़ी भावनात्मक और प्रभावशाली कहानी ‘वापसी’ है। संयुक्त परिवार में टूटते रिश्तों का आईना है यह कहानी, शैली, संवाद और उद्देश्य इस कहानी को और भी सफल बनाती है।
वापसी कहानी : उषा प्रियंवदा का संक्षिप्त जीवन परिचय:
प्रसिद्ध प्रवासी हिंदी साहित्यकार का जन्म कानपुर में 24 दिसंबर 1930 को हुआ। एम.ए. और पीएच.डी. अंग्रेजी साहित्य में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय और दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में अध्यापन किया।
उन्हें फुलब्राइट स्कॉलरशिप मिलने पर वे अमेरिका गईं, जहाँ उन्होंने इंडियाना में पोस्ट डॉक्टोरल शोध किया और 1964 में विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय, मैडिसन में प्रोफेसर बनीं। वर्तमान में वे सेवानिवृत्त हैं, लेखन कार्य में सक्रिय।
साहित्यिक विशेषता:
शहरी जीवन, अकेलापन, और भावनात्मक संघर्षों को दर्शाती है उषा प्रियंवदा की कहानियाँ, छठे-सातवें दशक के बदलते परिवारिक रिश्ते और महिला चेतना को अपने लेखन का मुख्य बिंदु बनाया।
प्रमुख कहानी संग्रह:
जिंदगी और गुलाब के फूल (1961), एक कोई दूसरा (1966), फिर वसंत आया (1961), कितना बड़ा झूठ (1972), वापसी, शून्य, वनवास।
प्रमुख उपन्यास:
पचपन खंभे लाल दीवारें (1961), रुकोगी नहीं राधिका (1967), शेष यात्रा (1984), अंतर्वंशी (2000), भया कबीर उदास (2007), नदी (2013).
सम्मान:
वर्ष 2007 में उषा प्रियंवदा को पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
निष्कर्ष:
हिंदी साहित्य की एक संवेदनशील और यथार्थवादी लेखिका है उषा प्रियंवदा, उनका लेखन समाज के बदलते मूल्यों को, मानव संबंधों की गहराई, महिला अनुभवों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है।
FAQ;
Q1: ‘वापसी’ कहानी किसने लिखी है?
उत्तर: ‘वापसी’ कहानी हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका उषा प्रियंवदा ने लिखी है।
Q2: ‘वापसी’ कहानी का मुख्य पात्र कौन है?
उत्तर: इस कहानी का मुख्य पात्र गजाधर बाबू हैं, जो रेलवे से रिटायर होकर घर लौटते हैं।
Q3: ‘वापसी’ कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: यह कहानी बुजुर्गों की उपेक्षा, संयुक्त परिवार के विघटन और पीढ़ियों के बीच भावनात्मक दूरी को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है।
Q4: ‘वापसी’ शीर्षक का क्या अर्थ है?
उत्तर: शीर्षक ‘वापसी’ दो बार लौटने की ओर इशारा करता है — पहले गजाधर बाबू का घर लौटना, और फिर वहां से फिर से नौकरी पर लौट जाना। यह शीर्षक उनकी भावनात्मक पीड़ा और उपेक्षा का प्रतीक है।
Q5: उषा प्रियंवदा का लेखन किस प्रकार के विषयों पर आधारित होता है?
उत्तर: उषा प्रियंवदा का लेखन शहरी जीवन, महिला अनुभव, अकेलापन, और परिवारिक संबंधों के बदलाव जैसे यथार्थवादी और संवेदनशील विषयों पर आधारित होता है।
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