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Poem on Health in Hindi
स्वास्थ्य ही धन है : कविता कोश में प्रस्तुत है स्वास्थ्य पर विशेष कविता, स्वास्थ्य के बिना सब व्यर्थ जब मनुष्य स्वस्थ रहता है तो ही कुछ कर पाता है, बिना स्वास्थ के कोई छोटा सा छोटा काम भी नहीं कर सकता, इसलिए बुजुर्ग कहे कि स्वास्थ्य ही धन है, आज ऐसी ही एक कविता सेहत (Health Par Kavita) पर पढ़े और शेयर करें।
Poem on Health is Wealth in Hindi
स्वस्थता
जब तन-मन से स्वस्थ मनुष्य ।
रहे सुनहरा सदा भविष्य ।।
तन से रुग्ण न पाये प्यार।
रह जाये अपना मन मार ।।
पहले तन की हो परवाह ।
यह जिजीविषा की है चाह ।।
अन्य वस्तु या जन सब बाद।
भोजन, पानी, दवा, विषाद ।।
जीवन में कुछ खिले न रंग।
कर्मशीलता में न अमंग ।।
रह समाज का बनकर भार ।
व्यक्ति न कर पाता निज सार ।।
तन से सुगठित मन से दीन।
रहे विचारों से अति हीन ।।
सोच निरन्तर अपना स्वार्थ ।
करता कर्म बिना परमार्थ ।।
लोभ कराता सारे पाप ।
जिनकी कहीं न होती माप ।।
रहता नित भोगों में लीन।
अपने सुख में बना प्रवीण ।।
होता हृदय न कमी उदार।
देह-भोग में सीमित प्यार ।।
करता नहीं कभी कुछ त्याग ।
रह न राष्ट्र धर्म-अनुराग ।।
तिकड़म से अर्जित कर अर्थ।
ऐंठ गर्व से जीता व्यर्थ ।।
अन्य जनों का करके खून।
भले मोड़ दे वह कानून ।।
देती उसे प्रकृति फिर दंड।
खुल जाते हैं सब पाखंड ।।
मर जाता है खाली हाथ ।
कोई व्यक्ति न देता साथ ।।
तन के साथ हृदय हो ऊर्ध्व ।
पाता तक वह शान्ति अपूर्व ।।
करता रहता नित सत्कर्ग ।
समझ-बूझ जीवन का मर्म ।।
अपनी पूर्ण शान्ति कर व्यक्त ।
मानवता में रह अनुरक्त ।।
पाता जन्म-मरण से भाग ।
कहलाता समाज का प्राण ।।
- परमलाल गुप्त
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