"Papa Kaisi Car Mangai" by Prabhudayal Shrivastava is a heartwarming children’s poem that captures a little girl’s innocent thoughts about family and togetherness. Through the story of a new car, the poet subtly reflects on changing family structures and the value of staying connected. This poem blends simplicity with a deep emotional message.
Papa Kaisi Car Mangai
बचपन की नज़र से देखी गई दुनिया कितनी अलग और सच्ची होती है। मुट्ठी में है लाल गुलाल (121 बाल कविताएँ) से प्रसिद्ध बाल कवि प्रभुदयाल श्रीवास्तव की यह कविता "पापा कैसी कार मँगाई" एक बच्ची की मासूम सोच और परिवार के सभी सदस्यों के प्रति उसके प्रेम को दर्शाती है। कविता में केवल गाड़ी का आकार ही नहीं, बल्कि बदलते पारिवारिक ढाँचे और रिश्तों के महत्व का मार्मिक संदेश छिपा है।
परिवार और रिश्तों पर बाल कविता
पापा कैसी कार मँगाई
पापा कैसी कार मँगाई,
आठ लाख में घर आ पाई।
मुझको तो गाड़ी यह पापा,
बहुत-बहुत छोटी लगती है।
अपने घर के सब लोगों के,
लायक नहीं मुझे दिखती है।
फिर भी जश्न मना जोरों से,
घर-घर बाँटी गई मिठाई।
कार मँगाना ही थी पापा,
तो थोड़ी-सी बड़ी मंगाते ।
तुम, मम्मी, हम दोनों बच्चे,
दादा-दादी भी बन जाते।
सोच तुम्हारी क्या है पापा
मुझको नहीं समझ में आई।
माँ बैठेगी, तुम बैठोगे,
मैं भैया सँग बन जाऊँगी।
पर दादाजी-दादीजी को,
बोलो कहाँ बिठा पाऊँगी।
उनके बिना गए बाहर तो
क्या न होगी जगत हँसाई?
मम्मी-पापा उनके बच्चे,
क्या ये ही परिवार कहाते।
दादा-दादी, चाचा-चाची,
क्यों उसमें अब नहीं समाते !
परिवारों की नई परिभाषा,
मुझको तो लगती दुखदाई।
- प्रभुदयाल श्रीवास्तव
"पापा कैसी कार मँगाई" केवल एक कार की कहानी नहीं, बल्कि परिवार के स्नेह और एकजुटता की भावनाओं को उजागर करने वाली बाल कविता है। प्रभुदयाल श्रीवास्तव ने सरल शब्दों में संयुक्त परिवार के महत्व और बदलते समय में रिश्तों के सिमटने पर गहरी चोट की है। यह कविता बच्चों को रिश्तों की अहमियत समझाने के साथ-साथ बड़ों को भी सोचने पर मजबूर करती है।
ये भी पढ़ें; अम्मा को अब भी है याद – बाल कविता में स्मृतियों और गाँव की खुशबू