Priti Amit Gupta Poetry
शायद, मैं भी
मर जाती उस दिन
करने तो गयी थी
आत्महत्या मैं भी,
पर मुझे कोई
बचाने नहीं आया
इस बचकानेपन के लिये
हाँ, मालूम भी न था
सबको ये कि
मैं करने जा रही
कुछ और ही
मुझे तो मुझी ने
रोक लिया
किया इरादा जैसे
आत्मा ने टोक दिया
बोली इतने लोगों से
मिली अब तक
एक इंसान के लिये
क्यों मर रही हो
जिसे परवाह नहीं तुम्हारी
तुम उसके लिये
मर रही हो
न करो ये तुम
अपराध ही है,
उसे सजा नहीं दी
तुमने जो
अपराधी है
तुम्हारा जीवन तो
अभी बाकी है।
प्रीती अमित गुप्ता
कानपुर (उत्तर प्रदेश)
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