अशोक श्रीवास्तव कुमुद की स्वरचित नवीन रचना : सूर्यप्रभा

Dr. Mulla Adam Ali
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Ashok Srivastava 'Kumud' New Poetry in Hindi

Suryaprabha

poem on sun in hindi

सूर्यप्रभा

(स्वरचित नवीन रचना 'सूर्य प्रभा' से)

सूर्य रश्मि विसरे,

उर्जित जगत करे। 

अम्बर ओज भरे,

जयतु जयतु उचरे।

मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में,

मंगल ध्वनि बिखरे।

अम्बर ओज भरे,

जयतु जयतु उचरे।


अम्बर फैल रही अरुणाई।

निखरी मनमोहक तरुणाई।   

विस्मित नयन करे,

तन मन दृश्य हरे।

अम्बर ओज भरे,

जयतु जयतु उचरे।


वीणा की मंगल झनकारें ।

अनुनादित हो पवन झकारें ।

मलय सुगंध भरे,

मधुरस धार झरे।

अम्बर ओज भरे,

जयतु जयतु उचरे।


शक्ति मनोहर मंगलकारी।      

अनुपम वैश्विक जन हितकारी।

ऋद्धि विकीर्ण करे,

जीर्ण विदीर्ण टरे।

अम्बर ओज भरे,

जयतु जयतु उचरे।

अशोक श्रीवास्तव 'कुमुद'

राजरूपपुर, प्रयागराज

विसरे: फैलना, विसरित होना

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