प्रकृति और मानव पर कविता : Prakriti Aur Manav

Dr. Mulla Adam Ali
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Poem on Prakriti Aur Manav : प्रकृति और मानव पर कविता

poem on prakruthi aur manav

प्रकृति और मानव पर कविता : कविता कोश में आपके लिए प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है, मानव जीवन के अस्तित्व का आधार है प्रकृति, प्रकृति और मनुष्य के बीच गहरा संबंध दर्शाने वाली संगीता भाटिया की कविता "प्रकृति और मानव", पढ़े और साझा करें।

प्रकृति और मानव

वृक्ष, तुम दाता बने संपदा लुटाते हो,

इसके बदले में आदमी से क्या पाते हो,

तुम्हारे वंश का विनाश कर रहा मानव,

लगा है लीलने जंगल को स्वार्थ का दानव

तुमने संसार को रस गंध की सौगातें दी,

धरा के सूखते अधरों को बरसातें दी,

तुम्हारा ऋण कभी ये आदमी चुका नहीं सकता,

मिटा के तुमको, ये खुद को बचा नहीं सकता।


नदी, तुम भी बड़ी निराली हो,

भला क्यूँ बाँटती फिरती हो मुफ्त में अमृत,

एक ये आदमी, जो दूषित तुम्हें बनाता है,

तुम्हारे रूप को कुरूप करता जाता है,

उसी मनुष्य का जीवन सदा बचाती हो,

अपनी ममता का कोई मोल न लगाती हो,

तुमने भी रोष कभी अपना जताया होता,

तटों पे अपने प्रतिबंध लगाया होता,

तब ये आदमी समझता तुम्हारी कीमत,

नीर का मोल यदि तुमने भी लगाया होता।


सूर्य, तुम क्यों इतने उपकारी हो

सहते हो असह्य ताप संसार के लिये,

बिन चाहे प्रत्युपकार, जलते हो निरंतर,

तुमने कुछ भी नहीं सीखा, इस स्वार्थी मनुष्य से

तुमने भी किया होता व्यापार धूप का,

असंख्य रश्मियों का कुछ मोल लगाया होता,

फिर चैन की बंशी जी भर बजाते,

तपते हुये प्रतिदिन आकाश में न आते।

- संगीता भाटिया

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