आधुनिक हिंदी के रचनाकार : भीष्म साहनी

Dr. Mulla Adam Ali
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Adhunik Hindi Ke Rachnakar : Bhisham Sahni

Adhunik Hindi Ke Rachnakar Bhisham Sahni

Modern Indian Literature, Playwright, Novelist Bhisham Sahni : a simple yet powerful writer

आधुनिक हिंदी के रचनाकार : भीष्म साहनी

एक महान साहित्यकार आम लोगों की समस्याओं को उठाने वाले साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं प्रगतिशील परंपरा के महत्वपूर्ण रचनाकार भीष्म साहनी। जैसा जिया वैसा लिखने वाले बहुमुखी प्रतिभा धनी थे भीष्म साहनी।

भीष्म साहनी का जन्म सन् 1915 अगस्त 8 को वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिण्डी में कट्टर आर्यसमाज परिवार में हुआ था। भीष्म साहनी ने जिस समय अपने आँखें खोली वह स्वतंत्रता के आन्दोलन का समय था। सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक नवजागरण की पूर्ण ध्वनि देश, समाज और मनुष्य को आन्दोलत कर रही थी। परिवार में चलनेवाली समाज सुधार चर्चाओं, स्वतंत्रता आन्दोलन की तीव्र हवाओं में सभाओं और जुलूसों का प्रभाव भीष्म साहनी जी के मन मस्तिष्क पर भी पड़ा। जो आगे चलकर उनके लेखन में व्यक्त हुआ। भीष्म जी की प्रारंभिक शिक्षा गुरुकुल परंपरा के अन्तर्गत हुई। उनकी प्रारंभिक शिखा रावलपिण्डि में और उच्च शिक्षा लाहौर में हुई। बटवारे से पूर्व उन्होंने पैतृक व्यापार किया, उसके बाद अध्यापन, पत्रकारिता ओर 'इष्टा' नामक नाटक मण्डली में अभिनय से संबन्धित गतिविधियों से जुड़े रहे। बड़े भाई बालराज साहनी फिल्म नगरी मुंबई में जम चुके थे। भीष्मजी ने भी अपना भाग्य वहाँ जमाना चाहा, पर फिल्म नगरी उन्हें रास नहीं आयी । वहाँ से शीघ्र ही पंजाब आकर अध्यापन से जुड गये फिर दिल्ली विश्वविद्यालय में उन्हें प्रवक्ता के रूप में स्थायी नौकरी मिल गयी। इस बीच उन्होंने लगभग सात वर्ष विदेशी भाषा प्रकाश में अनुवादक के रूप में बताये। लगभग ढाई वर्ष तक 'नयी कहानियाँ' का सम्पादन किया। फिल्मों में अभिनय की चाह फिल्म 'मोहन जोशी हाजिर हो' और 'तमस' धारावाहिक से पूरी हुई।

भीष्म साहनी ने एक संवेदनशील कलाकार का दिल पाया था, जो उन पर सृजनात्मक दबाव बनाता रहा और इसी दबाव में उनकी कृतियों की लम्बी श्रृंखला चलती रही।

भीष्म साहनी जी की प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ :

उपन्यास :- झरोखे, कडियाँ, तमस, बसंती. कुंती. नीलू- नीलिमा निलोफर, मैयादास की मादी।

कहानी :- भाग्यरेखा, पहला पाठ भटकति राखा, पटरियाँ, बाइच, शोभायात्रा, निशाचर, पाली, डयन, नीली आँखें ।

नाटक :- माधवी. हानुगा, कबीरा खड़ा बाजार में, मुआवजे।

निबन्ध :- अपनी बात।

बाल साहित्य : गुलेल का खेल, वापसी।

भीष्मजी के प्रस्तुत कृतियों के ब्यौरे से स्पष्ट है कि उन्होंने अनेक विधाओं में लिखा। मगर वे चर्चित हुए अपने कहानियों के बल पर। बाद में उनके नाटकों के सफल मंचन और उपन्यास 'तमस' पर बने टी.वी. धारावाहिक ने उन्हें लोक प्रिय बनाया। 'हंस' में उनकी पहली कहानी 'नीली आँखे' प्रकाशित हुई। 'चीफ की दावत' से उन्होंने कहानी आलोचना के पृष्ठों में अपनी जगह बनायी।

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भीष्मजी की कहानियाँ वस्तुपरक यथार्थ का रचनात्मक साक्ष्य प्रस्तुत करती है, जहाँ सामाजिकता का तीखा बोध संवेदना का मूल आधार ही विभाजन की त्रासदी, सांप्रदायिक तनाव, मोहभंग, टूटे-भिखरते मानवीय मूल्य, राजनीतिक अन्तर्विरोध, मध्यवर्गीय जीवन की विडम्बनाएँ, व्यापक जीवन के बोध का अंग बन कर उनकी रचनाओं में प्रतीत होते है। काव्यानुभव में जीवन का सत्य पात्रों और परिस्थितियों के सच्चे सन्दर्भों के साथ अभिव्यक्त हुआ । उनके कहानियों में मध्यमवर्गीय जीवन के मूल्य परिवर्तन की स्थितियाँ, आगाएँ, आकांक्षाएँ, बदलाव, संघर्ष, जटिलताओं का सीधा प्रतिबिम्ब उतरती है।

भीष्म साहनी जी ने जिस किसी टुकड़े को कथा वस्तु में आ गया उसे गहरी संवेदनशीलता की ताप में लपेट कर सादगी और दायित्व के साथ रूपांतरित किया। भीष्म जी की कहानियों की विशिष्ट बात यह है कि पाठकों की चेतना में सीधे स्थापित हो जाती है। पाठक उनके काव्यानुभव में अपने योगदान के समझ से उत्तेजित हाए बिना नहीं रहते। पंजाबी, उर्दू और आंचलिक शब्दों के मिश्रण से प्रतिष्ठित भाषा व्यंग्य की धारा से सामाजिक स्थितियों में मानवीय संवदताओं को ठोस और मार्मिकता के साथ उतारती है।

भीष्म साहनी जी वैज्ञानिक समझ के साथ कलात्मक आधार देकर साहित्य में स्थानांतरित करने का सपना लेकर हिन्दी भाषा साहित्य में अवतरित हुए। वे सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक विषमताओं से गुजरते हुए अपने कथात्मक वातावरण का निर्माण किया उन्होंने विभाजन के बाद अनेक स्थितियों में पैदा हुए अनुभूतियों, संघर्ष के नये अनुभवों मानसिकता को यथार्थ के साथ व्यक्त किया। वैज्ञानिक विवे, सामाजिकबाध, सरल, सहज और सार्थ अभिव्यक्ति भीष्म साहनी जी को आधुनिक हिन्दी का स्मरणीय रचनाकार बनाती है।

- तैदला श्रीकांत

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