बच्चों के लिए तीन बाल कविताएँ : कबूतर | जुदा रहे पहचान | रानी बिटिया हँसी बहुत | Bal Kavitayen

Dr. Mulla Adam Ali
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Bal Kavitayen in Hindi : Chhote Bacchon Ke Liye Poem

बच्चों के लिए तीन कवितायें

बाल साहित्य : बच्चों के लिए तीन कवितायें : डॉ. फहीम अहमद 

बाल कविताएं बच्चों के लिए : बच्चों के लिए तीन सुंदर बाल कविताएं हिंदी में। कबूतर पर बाल कविता, जुदा रहे पहचान बाल कविता, रानी बिटिया हँसी बहुत बाल कविता। फहीम अहमद की तीन कविताएं बच्चों के लिए। इस लेख में बच्चों के लिए बहुत मजेदार बाल कविताएं लेकर आए हैं जो बचपन में आप पढ़े गए बाल कविताओं का याद दिलाती है। कविताएँ जो बच्चों (14 वर्ष से कम आयु के ) के मनोरंजनार्थ लिखी जाय बाल कविताएं कहलाती हैं जो खासकर बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर लिखी गई कविताएँ है। बाल साहित्य की परंपरा हिंदी साहित्य में बहुत समृद्ध है। बाल कविता बच्चों के मनोविज्ञान के अनुरूप हैं। आइए पढ़ते हैं बच्चों के लिए लिखी गई तीन बाल कविताएँ। Bal Geet & Kavita, Children's Songs in Hindi, Hindi Poems for Children, Hindi Poems for Kids, Kids' Poems, Bal Kavita In Hindi..

बाल कविता कबूतर : Poem on Pigeon in Hindi - कबूतर पर बाल कविता - Kabutar Bal Kavita

कबूतर


सुबह-सवेरे छत पे आए

मेहमान ये बिना बुलाए

संगी-साथी को भी लाए

एक झुण्ड में साठ कबूतर।


छत पे पड़े हुए हैं दाने

बिखराए मेरी अम्मा ने

आए सारे साधी खाने।

खाते हैं मिल-बांट कबूतर


बिन टीचर स्कूल चला है

नया जमाना नई कला है

प्यारा-सा परिवार भला है

करते सारे ठाठ कबूतर।


लाए अपने-अपने बस्ते

आपस में ही करें नमस्ते

पढ़ें गुटर-गूँ हँसते हँसते

रटते अपने पाठ कबूतर।


इनको मुर्गा कौन बनाए

और प्यार से जो समझाए

या गालों पे चपत लगाए

खाएँ किससे डॉट कबूतर?


Bal Kavita Judha Rahe Pehchan : बाल कविता जुदा रहे पहचान - Children's Poetry

 जुदा रहे पहचान


भोली भाली सूरत मेरी

पर मम्मी कहती शैतान।


नन्हा हूँ कुछ कह न पाता

लगती मुझको बात बुरी

ऐसा लगता मेरे दिल पर

जैसे लगती तेज़ छुरी।


कुछ गलती हो जाए तो

सब झटपट खींचें मेरे कान


बोलो कम तुम पढ़ो ज्यादा

जब-तब यह फरमान सुनूँ।

ऐसी उलझन में आखिर मैं

कैसे प्यारे व बुनूँ?


कभी न कोई मुझसे पूछे

क्या मेरे दिल के अरमान।


मैं चाहूँ ऐसा घर जिसमें 

रोकटोक का काम न हो।

हवा सरीखी आज़ादी हो

व तनाव का काम न हो।


मैं चाहूँ दुनिया में मेरी

सबसे जुदा रहे पहचान


Bal Kavita Rani Bitiya Hansi Bahut : बाल कविता रानी बिटिया हँसी बहुत - Children's Poem Rani Bitiya

रानी बिटिया हँसी बहुत


रानी बिटिया हंसी बहुत

बरगद की दाढ़ी का झूला

झूल रहा बंदर सब भूला।

गिरा फिसल कर नीचे वह तो

बना अचानक जैसे बुत।


रानी बिटिया हँसी बहुत


शहद बाँटते भालू चाचा

खाकर उसे हिरन जब नाचा

भालू चाचा हंसे जोर से

आई खुशियों वाली रुत।


रानी बिटिया हँसी बहुत


चूल्हे पर है चढ़ी पतीली

लेकिन उसकी लकड़ी गीली।

बड़ी देर से पकते चावल

बोल रहे खुदबुद खुदबुद


रानी बिटिया हँसी बहुत


चाचा लाए गरम जलेबी

खाने दौड़ी नटखट देवी।

टपका रस उसके कपड़ों पे

भूल गई सारी सुधबुध


रानी बिटिया हँसी बहुत


- डॉ. फहीम अहमद

असिस्टेंट प्रोफेसर हिन्दी, एमजीएम कॉलेज,

संभल, उत्तर प्रदेश

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