कुनाल मीना की कविता मेरे उसूल : Mere Usul Kavita

Dr. Mulla Adam Ali
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Mere Usul Kavita

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मेरे उसूल


करते रहे गुमराह मुझे सब

और खुद वफादार निकले।

दगाबाज कौन है क्या पता?

मगर कैसे दिल का गुबार निकले?

जिन्हें मिला भी नही कभी मै

और खुद को मीलों दूर रखा।

आखिर वही सब के सब

मेरी वसीयत के दावेदार निकले

जिंदगी की जंग लडी थी मैंने

बडी ही संजीदगी के साथ

मगर क्या करू मेरे ही साथी?

मेरे कातिल और गद्दार निकले

दुश्मन की हर चाल का हमे

पता तो पहले ही था मगर

मेरे उसूल ही शायद

मेरे गुनहगार निकले।


- कुनाल मीना

दौसा, राजस्थान

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