डॉ. प्रदीप उपाध्याय की पाँच हिंदी कविताएँ : Pradeep Upadhyay Poetry in Hindi

Dr. Mulla Adam Ali
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Dr. Pradeep Upadhyay Poetry in Hindi

Pradeep Upadhyay Poetry in Hindi

डॉ. प्रदीप उपाध्याय की पाँच हिंदी कविताएँ : कविता कोश में आज प्रस्तुत है डॉ. प्रदीप उपाध्याय द्वारा लिखी गई पाँच हिंदी कविताएँ 1. हे ईश्वर 2. एक चिंता 3. दिल की बात पूछकर तो देखो... 4. जरा सोचकर देखो 5. बेचारे मोहरे। हिन्दी कविताएं, हिन्दी राजनीतिक कविताएं, हिन्दी सामाजिक कविताएं, हिन्दी जागरूक कविताएं। Dr. Pradeep Upadhyay Poetry in Hindi, Hindi Poetry by Pradeep Upadhyay, Kavita Kosh, Hindi Kavita, Poetry in Hindi, Hindi Poems, Poetry Lover's, Poetry Slam, Poetry Community, Poetry Collection in Hindi...

डॉ. प्रदीप उपाध्याय की कविताएं

1. हे ईश्वर


हे ईश्वर

क्या तू सच में है!

फिर तुझे क्यूं नहीं सुनाई देती

एक सात साल की बच्ची की आवाज़

वह अपनी मां से कह रही थी

कि वह मरना नहीं चाहती

अभी उसकी मरने की उम्र नहीं है।


हे ईश्वर

क्या तेरा सच में अस्तित्व है!

यदि है तो क्यों नहीं सुनता

उन निरीह बच्चों का रूदन

जिनके गले रेते जा रहे थे

जो अपनी मांओं के गले से चिपटे हुए थे।


हे ईश्वर

क्या तू सच में सभी में समाया हुआ है

तो फिर क्यों नहीं तुझे अहसास होता है

दहशत और हिंसा के बीच

नुचते शरीर और बेदर्द यातना में

किसी का दुख, दर्द, तकलीफ़।


हे ईश्वर

क्या तू भी संवेदनशील है

तब तू क्यों नहीं आहत होता

निरीह, निरपराध, निर्दोष जनों के

बम, बारूद, बंदुकों का ग्रास बनने पर।


हे ईश्वर

यदि तू वास्तव में है

तो अपने होने का परिचय दे

भटके जनों को सद्बुद्धि दे

नफ़रत और अलगाव से मुक्ति दे।


2. एक चिंता


रावण तब भी था

अहंकारी, भ्रष्ट मति, अभिमानी

रावण अब भी हैं

दुष्कर्मी, भ्रष्टाचारी, अविवेकी

पहले एक अकेला रावण

विद्वान होकर भी अहंकारी दानव

राष्टहंता, कुलविनाशी,

श्रीराम के हाथों मोक्ष को पाया

फिर भी उसके रक्त बीज से जन्मने लगे

बहुतेरे कलियुगी रावण

और करने लगे शहरों में प्रवेश

एक को देखकर दूसरे भी जन्मने लगे

गली-मोहल्लों में जा पहुंचे रावण

गांव -कस्बों तक देखे गए रावण

डर है तो बस यही कि

रावण घर घर में जगह न पा लें

एक अकेले राम कैसे करेंगे इनका संहार!

जब छोड़ गया है रक्त बीज रावण!


3. दिल की बात पूछकर तो देखो...


चीते क्यों मर रहे हैं

क्या कभी पूछा है उनसे

तुम पूछोगे भी क्यों

हम तो यह सोचकर ही खुश हैं

कि हमारे जंगल फिर आबाद हुए


विदेशी चीते लाकर

फिर भी हर तरफ सवाल हैं

हमारे मन में भी सवाल हैं

विपक्ष के भी सवाल हैं

सरकार के अपने जवाब हैं

तो कारिंदों के उनके अपने

कोई कहता है कि यहां की


जलवायु उनके अनुकूल नहीं है

किसी का कहना है कि खान-पान ठीक नहीं

कोई कहता है कि गले के बेल्ट घातक हैं

कोई कहता है कि उन्हें खुले में छोड़ना चाहिए

कोई कहता है कि उन्हें बाड़े में ही रहने दें

यह सब तो चीते भी सुन रहे हैं

सबकी चालबाजियां समझ भी रहे हैं


फिर भी वे गमगीन तो हैं ही

उनके दिल की बात किसने समझी है

न अपने देश ने, न उनके देश ने

भला कौन अपनी मिट्टी छोड़कर

खुश रह पाया है

खुशी - खुशी जी पाया है

कभी उनके दिल की बात पूछकर तो देखो


4. जरा सोचकर देखो


तुम आदमी हो

तो अपनी आदमियत सिद्ध करो

सुना है कि आदमी में

बुद्धि और विवेक होता है

कहते हैं कि पशु-पक्षी में

बुद्धि और विवेक नहीं होता

यही बात आदमी को आदमी

जानवर को जानवर बनाती

लेकिन क्या यह सही है

तुमने भी कहां अपना आदमी होना

साबित किया है

तुम्हारे कारनामें, तुम्हारी हरकतें

तुम्हारे कुकृत्य, तुम्हारे कुकर्म

तुम्हें आदमी मानने नहीं देते

क्योंकि तुममें आदमियत

भी कहां बची है

जो तुम्हें कोई आदमी कहे

तुम्हारी लिप्सा, तुम्हारी पिपासा

तुम्हारा श्रेष्ठता का अभिमान

तुम्हें आदमी नहीं रहने देता

जर, जोरू और जमीन ही नहीं

धर्म और मजहब के नाम

पर झगड़े भी

तुम्हें आदमी नहीं रहने देते

इसीलिए भावनाएं शुन्य हो जाती हैं

संवेदनाएं मर जाती हैं

बच्चे, स्त्री, पुरुष भी हो जाते हैं

तुम्हारी लिए बस शिकार

क्योंकि तब तुम आदमी

नहीं रह जाते

जरा सोचकर देखो

बुद्धि और विवेक के बिना भी

पशु-पक्षी तुम जैसे क्यों नहीं होते!


5. बेचारे मोहरे


शतरंज के खेल में ही नहीं

सत्ता के खेल में भी

राजा सबसे पीछे ही रहता है

प्यादे ही आगे रहते हैं

प्यादों को ही लड़ना पड़ती है

जमीनी लड़ाई

प्यादों के साथ ऊंट, घोड़ा, हाथी भी

राजा के बचाव में न्योछावर होते हैं

राजा वजीर को भी लगाता है दांव पर

राजा तब भी खुद सीधे नहीं लड़ता

रानी को भी तो वह कर देता है आगे

उसे लगता है कि उसका बचा रहना जरूरी है

रानी की शक्ति से किसे इंकार

फिर भी रानी भी साधन ही तो है

राजा हमेशा साध्य बना रहता है

सभी राजा के लिए न्योछावर हैं

प्यादे लड़ते-मरते हैं

राजा आखिर राजा है

शायद इसीलिए

वह कभी आगे नहीं रहता

रहते प्यादे ही आगे हैं

और पिटते रहते हैं हरदम

इसी तरह चलता रहता है

शह-मात का खेल

और पिटते रहते हैं बेचारे मोहरे।


- डॉ. प्रदीप उपाध्याय

16, अम्बिका भवन, उपाध्याय नगर,

मेंढकी रोड, देवास, म.प्र.

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