दियासलाई बाल कविता हिंदी में : Diyasalai Bal Kavita In Hindi

Dr. Mulla Adam Ali
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Diyasalai Bal Kavita In Hindi by Dr. Faheem Ahmad

Diyasalai Bal Kavita In Hindi

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दियासलाई

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इतनी आग कहाँ से पाई ?


ऊपर तो कुछ नजर न आया,

अन्दर ज्वालामुखी छिपाया।

तपन मिली है तुम्हें कहाँ से,

क्या सूरज से आग चुराई ?...


छोटी सही तुम्हारी काठी,

टिके ना तेरे आगे लाठी।

अगर तुझे गुस्सा आ जाए,

तो पहाड़ भी कर दे गई।...


कभी जला देती फुलझड़ियाँ,

कभी पटाखों वाली लड़ियाँ।

बाँट उजाले की सौगातें,

दुनिया को है राह दिखाई।...


दीप जला अँधियारा हरना,

चूल्हा फूंक पेट को भरना।

अपने इन्हीं नेक कामों से,

सबकी करती रहो मलाई।...


- डॉ. फहीम अहमद

असिस्टेंट प्रोफेसर,हिंदी विभाग,
महात्मा गांधी मेमोरियल पीजी कॉलेज,
सम्भल (उत्तर प्रदेश) 244302
drfaheem807@gmail.com

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