इन दिनों हवाएँ : हिन्दी कविता - बी. एल. आच्छा

Dr. Mulla Adam Ali
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In Dino Hawayein Poem by B. L. Achha Ji

In Dino Hawayein Poem by B. L. Achha Ji

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इन दिनों हवाएँ


हवाएँ तो हवाएँ हैं

क्या तो इन दिनों और क्या उन दिनों।

मगर हवाएँ जी पी.एस से नहीं चलतीं

वे फैलती भी हैं

और फैलाई भी जाती हैं।

 हवाएं बनाई भी जाती हैं

हवाएँ निकाल भी दी जाती हैं।

पंचर ठीक करने वाला

 हवाएँ भर देता है ट्यूब में 

मगर यू-ट्यूबें हवा निकाल देती हैं

 साबुत ट्यूबों की। 

अभिव्यक्ति के लोकतंत्र

पहियों में भरी हवाओं से नहीं चलते

हवाएं तो बनानी पड़ती हैं

हवाएं निकालनी भी पड़ती हैं।

 यह मैकेनिकल मामला नहीं है 

हवाएँ अपना रुख तय नहीं करतीं

हवाओं के दिनमान और दिशामान

'खेला' के मत्स्यवेध की तरह

केवल मछली की आँख को साधते हैं।

बंधे हुए लोग 

हवाओं में बाँधने की कोशिश करते हैं

पर अनसधी गोटीवाले

 अपनों की ही हवा निकाल देते हैं।

ऐसे में बवंडर मचा देती हैं हवाएँ

मचान तक उखड़ जाते हैं

बात बात में शोर और रेलमपेल से

फड़फड़ाती हवाएं

कभी सनन बहतीं, 

कभी तंबू उखाड़ती 

हवाओं के नाट्‌य मंचन

 कभी हवाओं के जंतर-मंतर 

आंदोलन में गरमाती हैं।

हवाओं का तूफानी रोमांस

कभी नहीं कहता -

"हवा तुम धीरे बहो,

आते होंगे चितचोर।"

वे तो तनी मुट्ठियों के शोर होते हैं।

कुछ कहते हैं

हवा के साथ बहो 

तो कुछ के तंबू उखड़ जाते हैं 

कुछ को हवा लग जाती है, 

कुछ के पाल उड़ जाते हैं। 

कुछ मसाले उड़ा देते हैं हवाओं में

कुछ आंखें मलते रह जाते हैं ।

कभी कभी हवाबाजी करते कुछ

टिकते हैं बल्लियों -बांसों से

 हवाएँ जब लंबी खिंच जाती हैं थककर

वे भी हवाहवाई हो जाते हैं।

मौसम होता है हवाओं का

पर इन हवाओं की 

न मौसमोग्राफी होती है 

न ओशनोग्राफी

 वे भीड़ की डेमोग्राफी में

 अपने झंडे ताने

 रंगों से रंगों की खिलाफत करते

चमकीले नारों की पट्टी में

शब्दों की तीखी धारों में 

कभी सिंहासन बत्तीसी संग

कभी विरोध की छत्तीसी में।

ये हवाएँ आकाश से 

धरती पर नहीं आतीं

 ये बहाई जाती हैं धरती से 

धरती की उपरीली परतों पर।

हवाएँ धूम मचाती हैं 

खबरों में छपकर

कभी टीवियों में फड़फड़ाती 

कभी टीआरपी में बहसाती

माथे पर आकाश लिए।

ये हवाएं न तो ऊपरवाले का

महापंखा है, न वातानुकूल

ये हवाएँ चलती ही हैं

 जमाने और उखाड़ने के

दांव-पेचों से।

पर हवाएँ तो हवाएँ हैं

अपने अपने लोकतंत्र में

कभी तूफानी 

कभी घुप्प उमस में ठहरी- सी।


- बी. एल. आच्छा

फ्लैटनं-701टॉवर-27

नॉर्थ टाउन अपार्टमेंट

स्टीफेंशन रोड (बिन्नी मिल्स)

पेरंबूर, चेन्नई (तमिलनाडु)

पिन-600012

मो-9425083335

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