गोविंद शर्मा की लघुकथा संकलन से 15 लघुकथाएँ हिन्दी में

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi 15 Short Stories by Govind Sharma : Hindi Laghu Kahaniya

fifteen short stories in hindi

हिन्दी की छोटी सी लघुकथाएं : खाली चम्मच चौथा लघु-कथा संग्रह है गोविंद शर्मा जी का, इस संग्रह में 121 लघु कहानियां हैं आपके लिए इस आर्टिकल में पंद्रह लघुकथाएं 1. इज्जत के लिये 2. कचरा 3. भोजन 4. सामाजिकता 5. कितना अच्छा आदमी 6. शिक्षा 7. पक्की छत 8. आम, गुलाब और आदमी 9. पदयात्री 10. अंतिम रिपोर्ट 11. धनाभाव 12. माध्यम 13. बड़ी हो गई 14. राष्ट्रीय पक्षी 15. कंजूस। ज्ञानवर्धक, शिक्षाप्रद, प्रेरणादायक ये 15 छोटी सी लघुकथाएं पढ़े और साझा करें।


15 Moral Short Hindi Stories : Hindi LaghuKathayein

इज्जत के लिए हिन्दी लघुकथा : Short Story For Respect

1. इज्जत के लिये (For respect)

दोस्त से मिलने उसके घर गया तो देखा, उसके घर के दरवाजे के ठीक पास कूड़ा पड़ा है। मुझे बड़ी हैरानी हुई। उससे कहा- तुम तो बड़े सफाई पसंद हो, फिर भी कूड़ा घर के दरवाजे पर डाल रखा है।

यह हमने नहीं डाला। यह हमारे पड़ोसी का काम है। पड़ोसी का है? तुमने उसे ऐसा करने से रोका क्यों नहीं? इज्जत के लिये।

अर्थात् तुम उसे रोकते तो वह तुम्हारी बेइज्जती कर देता ?

वह बोला नहीं। मैंने पीछा नहीं छोड़ा तो बोला- तुमने कूड़ा तो देख लिया, पर उसकी क्वालिटी नहीं देखी। उसमें महंगे-विदेशी चाकलेटों के खाली रैपर, महंगी शराब की खाली बोतल, ब्रांडेड शर्ट बनाने वाली कंपनी का खाली डिब्बा है। मैं तो कभी इन चीजों के उपयोग का सपना भी नहीं देख सकता। पड़ोसी अमीर है। उसका यह कचरा मेरे घर के आगे से गुजरने वाले लोग देखते हैं तो यही समझते हैं कि इनका उपयोग मैं करता हूँ। इज्जत तो बढ़ती ही है।


Kachara Laghu Kahani : Garbage Short Story in Hindi

2. कचरा (Garbage)

वहाँ नया बाजार बन गया था। नई दुकानें सज गई थी। ग्राहक आने लगे थे। पर दुकानदार संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगा, ग्राहक कम आ रहे हैं, उसका कारण दुकानों के बीच एक दो प्लाटों का खाली होना है। उन खाली जगहों पर कूड़ा-कचरा फेंका जाता था। शायद इस कचरे को देखकर ग्राहक इधर कम आते हैं। पहले कचरे के खिलाफ खुसुर-फुसुर हुई। फिर एक दो दुकानदार मुखर हो गये। दुकानदारों ने फैसला किया कि दुकानें बंद करके नगरपालिका चलते हैं और मांग करते हैं कि कोई ऐसी व्यवस्था की जाए कि यहाँ कचरा न फेंका जाए। सभी तैयार हो गये, तभी एक दुकानदार ने कहा- फिर तो हमें भी अपनी-अपनी दुकान का कचरा फेंकने के लिये दुकान छोड़कर कहीं दूर जाना पड़ेगा।

उसके बाद यह हुआ कि सब अपनी-अपनी दुकान मे चले गये और काम में लग गये।


Bhojan Laghu Kahaniya : लघुकथा भोजन

3. भोजन (Food)

मुझे मिष्ठान-पकवान से भरी थाली पकड़ाते हुए कहा गया कि आजकल, पंडितों के पास यजमान के घर आकर जीमने का वक्त नहीं है। आप ही किसी पंडित के घर दे आओ। मैं थाली लेकर निकला तो गली में एक जगह बैठे बारह तेरह वर्ष के दो बालक दिखाई दिये। उन्होंने मेरे हाथ में पकड़ी थाली को जिस हसरत से देखा, वह नजर मुझे... कुछ कह नहीं सकता। मेरे पाँव वहीं रुक गये। न वे बोले, न मैं। मैंने वह थाली उनके सामने रखदी। भोजन पर टूट पड़े- वाक्य को साकार होते उस दिन देखा। खाने की उनकी रफ्तार देखकर सोचा, यदि इसी गति से मेरे बच्चे भोजन करें तो कभी स्कूल जाने में देर न हो, मैं भी यदि इसी रफ्तार से खाऊँ तो दफ्तर जाने में कभी लेट न होऊँ, कभी रेल या बस न छूटे....।

वे खा चुके तो मैंने पूछा- कैसा था भोजन? स्वाद लगा?

मेरे प्रश्न पर दोनों ने एक दूसरे को देखा और जोर से हँस पड़े। मैं फिर बोला- इसमें हँसने की क्या बात है? बताओ, भोजन कैसा लगा।

उनकी हँसी रुक गई। एक के मुँह से निकला- बाबूजी, भोजन तो जब भी, जो भी मिल जाता है, अच्छा ही होता है, स्वाद ही होता है।


सामाजिकता छोटी सी लघुकथा : Short Story Sociality

4. सामाजिकता (Sociality)

कल ही आया था चुनाव परिणाम। इस बार गुप्ता जी हार गये थे। उनका पुराना प्रतिद्वन्द्वी गोयल जीत गया था। रामजी राम उठे और छड़ी उठाकर चलने लगे तो पुत्र ने टोक दिया- इस धूप के वक्त आप कहाँ जा रहे हैं? गुप्ता जी के यहाँ, हमदर्दी जताने।

कोई जरूरत नहीं। जाना है तो बधाई देने गोयल जी के यहां जाइए। बेटे, तुम जानते ही हो, गुप्ता जी के यहाँ मेरा कितना आना जाना है। इस दुख की घड़ी में जरूर जाना चाहिए। पिछली बार हारने के बाद गोयल जी के यहाँ एक मर्ग होने पर गुप्ता जी और उनके काफी साथी शोक प्रकट करने गये थे। यही हमारी सामाजिकता है।

शोक प्रकट करना अलग बात है। अब यदि आप गुप्ता जी के यहाँ गये तो विजेता गोयल जी नाराज हो सकते हैं। आपका तो क्या बिगाड़ेंगे, मेरा तबादला किसी ऐसी-वैसी जगह करवा देंगे।

फिर भी गुप्ता जी के यहाँ जाने के लिये रामजी राम चल पड़े। बीच रास्ते में डॉ. निर्निमेष का क्लीनिक आया तो रामजी ठिठक गये। कुछ सोचा और क्लिनिक के आगे की चौकी पर धम से बैठ गये। डाक्टर परिचित थे। उन्होंने उसी वक्त अपने आदमी भेजकर रामजी को भीतर बुलवाया। रामजी तो कहते रहे कि मुझे कोई तकलीफ नहीं, पर डॉक्टर ने उन्हें बेड पर लिटा ही दिया। डॉक्टर निर्निमेष हँसमुख थे, बोले- मंदिर जाने पर भगवान मिले, न मिले, डॉक्टर के यहाँ जाने पर शरीर में रोग जरूर मिल जायेगा।

रामजी कई दिन अस्पताल में रहे। न कोई काम, न कोई तकलीफ । इसलिये बिस्तर पर पडे-पड़े, सामाजिकता का जोड़-घटाव करते रहे कि कौन- कौन मिलने आया, कौन-कौन नहीं। स्वयं, गुप्ता जी से मिलने नहीं जा सके, इसके लिये थोड़ा दुखी थे और खुश भी।


Kitna Achha Aadmi Short Story : कितना अच्छा आदमी लघुकहानी

5. कितना अच्छा आदमी

बिजली का खंभा। गर्मी के मौसम की दुपहरी। खंभे पर बैठे दो परिन्दे अपनी खुद की बातें कर रहे थे। एक बोला- मुझे याद है, बचपन में यहाँ बहुत पेड होते थे। हम कभी इस पेड़ पर तो कभी उस पेड़ पर फुदकते रहते थे। जब जी चाहता पत्तों के बीच दुबक जाते। अब तो कहीं-कहीं दूर-दूर पेड़ हैं। यह आदमी की करतूत है।

नहीं-नहीं, आदमी को दोष मत दो। उसने हमारे लिये बहुत कुछ किया है।

क्या किया है? यही न कि नये-नये डिजायन के पिंजरे बना दिये, चिड़िया घर बना दिये।

अरे नहीं, अब तू बैठा कहाँ है? लोहे के खंभे पर। यह न होता तो कहाँ बैठता? उसने हमारे लिये जगह-जगह लोहे के खंभे खड़े कर दिये। एक खंभे से दूसरे तक तार बांध दिये। कितने ही पक्षी हों, एक लाइन में बैठ सकते हैं। झूल सकते हैं। कूद सकते हैं। आते-जाते लोगों को देख सकते हैं, खुद को दिखा सकते हैं।

घाँसले बना सकते हैं?

भइया, विकास की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है। किसी जगह खेत बनालो और पेट भरने के लिये अनाज उगा लो या फिर उस जगह मकान बनालो, नये-नये शहर बसा लो।

विकास, किसका हो रहा है?

हम तो आदमियों वाली बातें करने लगे। वे भी विकास की मांग करते हैं। जब कुछ का विकास हो जाता है, तो वे खास बन जाते हैं। बचे हुए आम कहलाते हैं और इस असमान विकास पर सवाल करते हैं। विकसित हो चुके और अधिक विकास के लिये आपस में लड़ते हैं और सब्जबाग दिखाकर आम आदमियों को अपने-अपने पक्ष में करते हैं। पर यह तो आदमी की अपनी लड़ाई है। हमारे पेड़ लिये तो हमें खंभे दे दिये, तार दे दिये। कितना अच्छा है आदमी।


Laghukatha Shiksha : Short Story Education

6. शिक्षा (Education)

बड़े साहब को लगा उनके कमरे के बाहर नौकर किसी से बहस कर रहा है। साफ सुनाई नहीं दे रहा था। कुछ देर बाद वे स्वयं ही बाहर आगये। देखा, उनके एक पुराने शिक्षक को नौकर वापस भेज रहा है।

क्या बात है मास्टरजी, आप आये और मुझसे मिले बिना ही वापस जा रहे हैं?

हाँ, मिलने के लिये ही आया था। पर इस भैया का कहना है कि आप अति-व्यस्त हैं। अंदर जाना मना है।

बड़े साहब को गुस्सा आ गया। नौकर से बोले, अबे बंदर की औलाद, तुझे मैंने यह बात आलतू-फालतू लोगों को कहने के लिये कहा था। क्या इन्होंने बताया नहीं कि ये मेरे मास्टर जी रह चुके हैं।

जी बताया था। पर....

पर क्या? मूर्खराज तू पढ़ा तो नहीं, पर ये भी नहीं जानता कि शिक्षा देने वाला गुरु महान होता हे। उन्हीं की दी गई शिक्षा ही हमें उच्चकोटि का इंसान बनाती है।

साहब मुझे इनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ कि इन्होंने आपको शिक्षा दी है।

अरे घामड़, पागल, गधे जब इन्होंने कहा तो भी विश्वास नहीं हुआ। क्यों? सर, इन्होंने मेरे से बहुत ही शिष्टता और तमीज के साथ बात की। मुझे भैया भैया कहते रहे। मैंने इनको वापस चले जाने के लिये कह दिया, फिर भी इन्होंने मुझे गाली नहीं दी।

यह सुनकर बड़े साहब तो चुप हुए ही, मास्टर जी की गर्दन भी झुक गई।


Pakki Chhat Hindi Laghu-Katha : पक्की छत लघुकहानी इन हिन्दी

7. पक्की छत

वे पूरे पाँच साल बाद उस बस्ती में वोट मांगने आये। कच्ची झोंपड़ियों में रहने वाले लोग उनके सामने घेर कर लाये गये थे। उन्होंने कहा- वह दिन दूर नहीं, जब तुम सबके सिर पर पक्की छत होगी...।

अभी वे अपनी बात पूरी नहीं कर पाए थे कि एक बोल पड़ा- यह वादा तो आपने पाँच साल पहले भी किया था।

मैं भूला नहीं हूँ। दो साल पहले मैंने इस पर काम भी शुरू कर दिया था। तुम्हें याद होगा, दो साल पहले मैंने तुम्हारी झोंपड़ियों के पास से निकलने वाले फ्लाई ओवर का शिलान्यास किया था। जब वह बनकर तैयार हो जायेगा, तब उसके ऊपर तो दूसरे लोगों की गाड़ियाँ फर्राटा भरेंगी, पर उसके नीचे तो तुम्हारी आबादी ही रहेगी। वह छत इतनी पक्की होगी कि उसका आंधी-तूफान तो क्या भूकंप भी कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। बजाओ ताली....।


लघु-कथा आम, गुलाब और आदमी : Aam, Gulab aur Aadmi Kahni Short

8. आम, गुलाब और आदमी

आदमी के एक तरफ आम रखा था, दूसरी तरफ गुलाब का फूल। आदमी उन्हें देख कर बोला- लोग भी कैसे मूर्ख हैं। हँसी आती है उनकी बात पर आम को फलों का राजा कहते हैं और गुलाब को फूलों का राजा। फूल की पंखुरी- पंखुरी बिखेर देता हूँ अरे, राजा तो हम आदमियों के होते हैं। तुम काहे के राजा...।

पहले आम बोला- तुम चाहे चूस लेना मुझे। पर फलों में ऐसा कोई फल नहीं है, जो मुझे चुनौती दे। हालांकि कई फलों की कीमत मुझसे ज्यादा होती है।

उधर से गुलाब बोला- दुनिया में मुझसे महंगे और दुर्लभ फूल हैं। पर मेरी राजगद्दी मेरे पास ही रहती है। कोई दूसरा फूल उसे छीनने का प्रयास नहीं करता है।

तुम्हारे राजा? एक भी ऐसा राजा बता दो, जिसे हर वक्त अपनी गद्दी छिन जाने का खटका नहीं रहता है। गद्दी पाने या बचाने के लिये खून-खराबा न करना पड़ा हो। फिर तुम्हारे यहाँ राजतंत्र हो या लोकतंत्र - हर गद्दीधारी को सुरक्षा घेरे में बंद रहना पड़ता है। हम पेड़ पर लगे हों या पौधे पर टंकें हों या फिर ढेर में हों, आपस में कभी नहीं लड़ते। असली राजा तो हम ही हैं, हम चाहे खुद फना हो जाएं, हमारी गद्दी छीनने कोई नहीं आता है। इसलिये हम पर नहीं, खुद पर ही हँसलो महाशय... ।


पदयात्री हिन्दी कहानी लघु : Pad-Yatri Kahani in Hindi

9. पदयात्री

91 वर्षीय भूतपूर्व जी ने मुख्यमंत्री से मिलने का समय मांगा तो तुरंत मिल गया। मिलने पहुँचे। अपने आप नहीं, चार भाइयों द्वारा पहुँचाया गया।

कहिये आपका स्वास्थ्य कैसा है? मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ?

मुख्यमंत्री जी, आप ही मेरे लिये कुछ कर सकते हैं। शरीर में मोटापा खूब बढ़ गया है। उसने कुछ रोगों को भी मेरे शरीर में बुला लिया है।

आप अपने यहाँ के बड़े से बड़े अस्पताल में इलाज करवाइये। यह सुविधा देने की घोषणा तो हम आम लोगों के लिये भी कर चुके हैं। आप को तो भूतपूर्व के नाते सदा से ही उपलब्ध है।

आप ठीक कहते हैं। सब डॉक्टर एक ही बात कहते हैं कि मोटापे से दूर होने के लिये पदयात्रा करें।

यह भी ठीक है। अपने प्रदेश की कुछ मांगों की मंजूरी के लिये अपनी पार्टी के कुछ सदस्य यहाँ से दिल्ली तक की पदयात्रा का कार्यक्रम बना रहे हैं. आप उनमें शामिल हो जाइए। पदयात्रा के साथ डॉक्टर, नर्स वगैरह वाहन यात्रा करेंगे ही।

नहीं, डॉक्टरों ने कहा है- सुविधा के साथ पदयात्रा करें, इसलिये मैं आपके पास आया हूँ, कोई छोटा-मोटा, मेरे लायक सरकारी पद मुझे दीजिए। पदयात्री बन जाऊँगा तो स्वास्थ्य में सुधार हो जायेगा।

मुख्यमंत्री ने एक लंबा सांस लिया और कहा- इसे कहते हैं जनसेवा की भावना। इस उम्र में भी जनता की सेवा करने की आपकी इच्छा मरी. नहीं। देखता हूँ, आपके लिये क्या कर सकता हूँ।

मुख्यमंत्री ने हाथ जोड़ दिये। चार भाई आए और उन्हें उठा ले गये।


Antim Report Hindi Kahani Short : Final Report Short Story

10. अंतिम रिपोर्ट (Final Report)

सर, पूर्व मुख्यमंत्री, हमारे यहाँ कई दिनों से आई सी यू में दाखिल थे, आज अभी अभी...।

ठहरो... ठहरो, अभी नहीं। वर्तमान मुख्यमंत्री जी, उनका हाल जानने के लिए अस्पताल की ओर रवाना हुए हैं। जब तक वे उनका हाल जानकर, उनके स्वास्थ्य के लिए हिदायत देकर चले न जाएँ, तब तक नहीं। ठीक है सर।


Lack of Funds Short Hindi Story : Hindi Kahani

11. धनाभाव (Lack of funds)

अफसर जी परेशान हो गये- लोगों को एक ही जवाब देते-देते। कभी खुद लोग तो कभी छुटभैये नेताओं द्वारा घेर कर लाये गये लोग कोई न कोई मांग लेकर उनके चैम्बर में कुछ ज्यादा ही पहुँचने लगे। वह अपने बाबू से पूछते तो यही जवाब मिलता कि सर धनाभाव के कारण हम यह मांग पूरी करने में असमर्थ हैं। अब तो मंत्री जी ने भी लोगों का एक मांग पत्र अफसर जी को भेजा, इस टिप्पणी के साथ कि यह काम तुरंत करवाएँ। बाबू ने फिर वही जवाब दिया तो अफसर जी झल्ला गये। बोले, धनाभाव का क्या सबूत है?

सर, इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि अपने से पहले इस कार्यालय में जो अफसर जी थे, उन्होंने और मेरी जगह जो बाबू था, दोनों ने मिलकर कुल छह महीने में पैंतीस करोड़ का माल बना लिया था। अपने दोनों को यहाँ आये डेढ साल होने को है और माल बनाने का आंकड़ा छह करोड से आगे नहीं निकला है।


Medium Short Story in Hindi : Madhyam Kahani

12. माध्यम (Medium)

मुझे ये काफी 'अजीब लग रहा है। आप अपने आपको बहुत बड़ा हिन्दी सेवी मानते हैं और अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिलवा रहे हैं।

आपको यह अजीब इसलिये लग रहा है कि आपको देश-दुनिया की कोई खबर नहीं हैं। आजकल हिन्दी के नाम पर ज्यादातर सम्मेलन विदेशों में हिन्दी से अनजान लोगों के बीच किये जाते हैं। विदेशी विश्वविद्यालयों में हिन्दी की पढ़ाई को बड़ी उपलब्धि माना जाता है। इससे भी ज्यादा अंग्रेजी भाषा भाषियों के हिन्दी की ओर बढ़ रहे आकर्षण को महत्त्व दिया जा रहा है। अपने बच्चों में हिन्दी के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिये ही उन्हें अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिलवा रहा हूँ।


बड़ी हो गई हिंदी कहानी लघु : Short Hindi Kahani

13. बड़ी हो गई (She grew up)

आठ साल की पिचिका की दादी उसके पास रहने आ गई। दादी को पिचिका और पिचिका को दादी- अच्छी लगने लगे। एक दिन दादी ने देखा, पिचिका खूब गीली मिट्टी में खेल रही है। दादी ने किंचित गुस्से में कहा- यह क्या कर रही हो? न जाने तुम कब बड़ी होवोगी।

पिचिका को हँसी आ गई। बोली- दादीजी, आपको पता नहीं है क्या? मैं बड़ी हो गई हूँ। जब से घर में मेरा छोटा भाई आ गया है। वह मुझसे से कोई चीज छीनता है और मैं रोकती हूं तो सब कहते हैं- देदो उसे, तुम बड़ी हो। कभी किसी बात को लेकर तो कभी किसी बात को लेकर मुझे कहते रहते हैं- तुम बडी हो, यह तुम्हें मारता है तो उसे वापस मत मारो। वह छोटा है तुम बड़ी हो। वह मम्मी के साथ ही जायेगा और पापा के साथ भी। तुम घर में रह सकती हो, क्योंकि तुम बड़ी हो। वाह दादी, आप पूछ रही हैं कि मैं बड़ी कब होऊँगी।


हिन्दी लघुकथा राष्ट्रीय पक्षी : Short Story National Bird

14. राष्ट्रीय पक्षी (National Bird)

बहुत घमंड है तुम्हें अपने सामान्य ज्ञान पर। बताओ, हमारे राष्ट्रीय पक्षी का क्या नाम है?

कोई एक हो तो बताऊँ। कौन याद रखे इतनों के नाम।

दिखा दिया अपना ज्ञान? अरे सभी देशों में एक ही होता है राष्ट्रीय पक्षी। अपने देश में भी एक ही है मोर।

हाँ-हाँ, मेरा ध्यान इससे भी तेज उड़ने वालों की तरफ चला गया। किस की तरफ ? कव्वा, गिद्ध, बाज...।

अरे नहीं, मैंने उन राष्ट्रीयों के बारे में सोचा था, जो आज इस दल में है, कल उस दल की तरफ उड़ान भरते हैं। कभी इस राष्ट्रीय दल में तो कभी उस राष्ट्रीय दल की मुंडेर पर बैठे दिखाई देते हैं। कई बार तो ये यहाँ से वहाँ उड़ते समय, बीच रास्ते में ही वापस आ जाते हैं। कई- कई तो ऐसे होते हैं कि आज उड़कर उस राष्ट्रीय दल में जाते हैं, स्वागत करवाते हैं और पहनी हुई माला के फूल अभी मुरझाते भी नहीं कि किसी और दल में उड़ जाते हैं। कई तो ऐसे भाग्यशाली होते हैं कि सुबह उडान भरते हैं। दोपहर में मंत्री पद पर ले लेते हैं और शाम को उड़न खटोले में बैठे नजर आते हैं। कुछ वर्षों तक एक ही राष्ट्रीय दल में रहते हैं, पर अपने पंख यूँ फैलाए रहते है कि इधर उर्दू या उधर उहूँ। इन्हें दलबदलू तो तुम जैसे लोग मानते हैं। हाँ, ये चाहे किसी की मुंडेर पर बैठे हों, रहते सदा राष्ट्रीय ही हैं।


कंजूस लघु कहानी : Miser Short Story

15. कंजूस (Miser)

पिता के पास पैसे की कमी नहीं थी। पर बेटे को वे उसके छुट्टपन से बचत करने की शिक्षा देने लगे थे। पहले तो बेटा समझा नहीं, पर जैसे ही वह थोड़ा बड़ा हुआ, कभी किसी चीज को तो कभी किसी चीज को लेने के लिये जिद्द करने लगा। मजबूर होकर पिता देते तो सही, पर पूरे लेक्चर के साथ। उसका सार यही होता कि कम से कम खर्च किया जाना चाहिए।

बेटा बड़ा होता गया। एक दिन पिता के सारे व्यापार का मालिक बन गया। पिता बीमार रहने लगे। अलग अलग बीमारियों के लिये अलग अलग डाक्टरों को दिखाना जरूरी हो गया। अब बेटा वह सब सीखने का दावा करने लगा, जो उसे छुट्टपन से ही सिखाया जा रहा था। पिता को जब चार डॉक्टरों को दिखाने की जरूरत होती, दो को ही दिखाता। जरूरत की पूरी दवाइयाँ भी नहीं खरीदता। अपने तो नहीं, पिता के कुछ खर्चों में कटौती करने लगा। पर देखो, पिता ने एक बार भी यह कह कर शाबासी नहीं दी कि मेरी कही बहुत सी बातों का अब असर हुआ है तुम पर।

- गोविंद शर्मा

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