पौधारोपण के विषय पर छोटी सी बाल कहानी : बदल गया बदलू

Dr. Mulla Adam Ali
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A short story for children on the subject of plantation: Badlu has changed

Badal Gaya badlu bal kahani in Hindi

हिन्दी वृक्षारोपण बाल कहानी बदल गया बदलू : पौधारोपण आज कहानी बनकर रह गया है, वृषारोपण अभियान सिर्फ फोटो और पत्रिका में न्यूज के लिए ही चलाए जा रहे हैं, पर्यावरण संरक्षण पर आज कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है, बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा ने हवा का इंतजाम बालकथा संग्रह में इसी बात को बताते हुए बाल कहानी बदल गया बदलू लिखी है, बदल गया बदलू कहानी के माध्यम से पौधरोपण कर पर्यावरण बचाने का दिया संदेश। बच्चों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से यह कहानी सफल होगी, बच्चों को यह बात इस कहानी के माध्यम से समझ में आयेगी की पर्यावरण हमारे लिए क्यों जरूरी है और पर्यावरण की रक्षा क्यों करनी चाहिए।

वृक्षारोपण दिवस पर विशेष बाल कहानी

बदल गया बदलू

उस गाँव में आंधी आना कोई नई बात नहीं थी। कभी भी आ जाती थी, काली-पीली आंधी। पौधे उलट-पुलट हो जाते, बड़े पेड़ भी उखड़ जाते । कल भी आंधी आई। यह नई बात थी। क्योंकि वर्षा का मौसम आने पर बरसात होती, आंधियां बंद हो जातीं। अभी चार दिन पहले तेज बरसात हुई थी। गाँव के सब रास्ते पानी से लबालब थे। स्कूल जाने वाले बच्चे, खेत जाने वाले किसान सब पानी में चलकर जाते। गाँव के छोटे से मैदान के किनारे, रम्मन के मकान के पीछे खड़ा था नीम का एक पेड़। गाँव के लोगों की बैठक इस नीम के नीचे ही जमती थी। कल आई आंधी में यह बरसों पुराना नीम उखड़कर गिर पड़ा। क्योंकि बरसात का पानी पेड़ के पास खड़े रहने से जमीन गीली हो गई थी। गाँव के लोगों को इसका दुख हुआ। दुख मास्टर छबीलचंद को भी हुआ। उन्होंने उसी वक्त अपना यह दुख दूर करने की कोशिश शुरू कर दी।

अपनी योजना की रूपरेखा बनाकर अभी वे घर आये ही थे, उसी गाँव का वासी बदलू उनके पास आया। नीम का पेड़ उखड़ने से सब दुखी थे, पर बदलू के चेहरे पर खुशी थी और गुस्सा भी।

बदलू ने कुछ ऊँची आवाज में कहा - "देख लिया मास्टर जी प्रकृति का न्याय? मैं एक बार नीम का यह वृक्ष काटने आया था। आपने गाँव के लोगों को इकट्ठा किया और मुझे यह पेड़ नहीं काटने दिया। यदि मैं यह पेड़ काटकर बेच देता तो मुझे दो पैसे की आमदनी हो जाती। आपने मेरे पेट पर लात मारी, उसका यह पाप आपको लगा और पेड़ आंधी में उखड़ गया। अब तो झख मारकर किसी लकड़हारे को यह पेड़ बेचना ही होगा। क्योंकि पूरे गाँव के लोग मिलकर जोर लगायें तो भी पेड़ को अपनी जगह वापस खड़ा नहीं कर सकते ।"

"हाँ, बदलू, मैंने ही रुकवाया था इस पेड़ को कटवाना। उत्त समय गाँव के सरपंच और कई समझदार बुजुर्ग तीर्थयात्रा पर गये हुए थे। ऐसे में रम्मन और तुमने सोचा, अब कोई रोकने वाला नहीं है। पेड़ काटने से तुम्हें बहुत सारी लकड़ियां मित जाएँगी और रम्मन को अपने मकान के पीछे दरवाजा खोलने की जगह मिल जाएगी। यहाँ यह दुकानें बना लेगा। मैंने शर्त भी लगाई थी कि तुम इस पेड़ को काटीगे तो इसके बदले यहाँ-वहाँ सात पेड़ लगाओगे। न सिर्फ लगाओगे, बल्कि इनके बड़े होने तक इनका बच्चे की तरह पालन-पोषण भी करोगे। पर तुमने मेरी शर्त नहीं मानी थी। मेरे साथ गाँव के बहुत से लोग थे। इसलिए मैंने पेड़ को कटने से बचा लिया।

"पर आंधी ने इसे उखाड़ ही दिया। आप और गाँव के लोग कुछ नहीं कर सके।"

मास्टर छबीलचंद समझ गये थे कि बदलू उन्हें चिढ़ाने आया है, पर वे बड़े प्यार से बोले-ववतु, क्या तुम्हारे घर में कोई छोटा-बड़ा मेज है?

"ही, है। उसी मेज पर अपनी किताबें रखकर बच्चे अपना होमवर्क करते हैं। में भी जब चाय पीता हूँ, कप उसी मेज पर रखता हूँ।"

*क्या कभी ऐसा हुआ कि किसी की ठोकर लगी हो या कुछ और टकराने से मेज हिला हो और चाय का कप या पानी का गिलास नीचे गिर पड़ा हो।"

"ऐसा तो कई बार होता है। कप या गिलास नीचे गिरते हैं। चाय या पानी बिखर जाते है। कप-गिलास भी टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं।"

"कई बार ऐसा भी होता होगा कि तुम मस्ती में आकर मेज से कप या गिलास उठाकर फर्श पर पटक देते होंगे और उन्हें टूटता देखकर खुश होते होंगे।"

"मास्टर जी, मैं ऐसा क्यों करूँगा? कोई मूर्ख ही ऐसा करता होगा। कप या गिलास अपने आप टूटते हैं, तब भी मुझे दुख होता है।"

"मैं यही कहना चाहता था। पेड़ अपने हाथों से काटकर पर्यावरण का नुकसान करें, ऐसी मूर्खता हम क्यों करें। हाँ, कुदरत ने पेड़ उखाड़ दिया, यह दुख की बाल है। पर यह दुख दूर करने का हमारे पास एक फलदायी उपाय है। वह करने की मैंने योजना बना ली है। उसमें पाँच लोगों ने मेरा साथ देने की सहमति दे दी है। जैसे ही वर्षा का पानी सूखेगा, हम छह मिलकर जगह-जगह पौधारोपण करेंगे। उनके बड़े होने तक उनकी देखभाल भी करेंगे। तुम्हें यह जानकर हैरानी होगी कि उन छह में एक रम्मन भी है। उसे नीम उखड़ने का अब दुख था। वह स्वयं चलकर मेरे पास आया था।"

"मास्टर जी, छह ही क्यों? सातवां क्यों नहीं?"

"सातवें किसी ने अभी सहमति नहीं दी है।"

"मास्टर जी, सातवां आपके सामने खड़ा है।"

मास्टर छबीलचंद एक बार तो चौंक गये। फिर आगे बढ़कर बदलू को गले लगा लिया। बाद की बात इतनी-सी है कि इन सातों में बदलू ने ही यहाँ-वहाँ सबसे ज्यादा पौधरोपण किया।

- गोविंद शर्मा

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