विरासत का बीज: एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संस्कारों और सोच की कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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The Seed of Heritage : The story of traditions and thoughts from one generation to another, Dr. Trilok Nath Pandey, Short Story.

Virasat Ka Beej

virasat ka beej laghu katha

"विरासत का बीज" एक भावनात्मक हिंदी कहानी है जो एक पिता और पुत्र के संवाद के माध्यम से सच्चे संस्कार, गलतियों से सीखने और नई सोच की विरासत को उजागर करती है।

विरासत का बीज

एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संस्कारों और सोच की कहानी

- डॉ. त्रिलोक नाथ पांडेय

गाँव के बीचोंबीच, सूरज की आखिरी किरणों में नहाया, एक विशाल पीपल का पेड़ खड़ा था — समय का गवाह, इतिहास का पहरेदार। उसी पेड़ के नीचे राघव अपने सात साल के बेटे अर्जुन को लेकर बैठा था।


हवा में चिड़ियों की चहचहाहट और पत्तों की सरसराहट संगीत सा बह रहा था।


"पापा," अर्जुन ने हल्की - सी आवाज़ में पूछा,

"ये पेड़ कितना पुराना है?"


राघव मुस्कुराया, "बेटा, जब तुम्हारे दादा जी के दादा जी बच्चे थे, तब उन्होंने इसे लगाया था। सोचो, कितने लोग आए, कितनी पीढ़ियाँ गुजरीं, पर ये पेड़ आज भी डटा हुआ है।"

अर्जुन ने हैरानी से आँखें फैलाईं,

"तो पापा, क्या ये पेड़ भी गलती करता होगा?"


राघव हँस पड़ा,

"पेड़ भी गलती करता है, बेटे।परंतु हमारे जैसा नहीं। अगर पानी कम मिले या धूप ज़्यादा हो, तो इसकी शाखाएँ सूख जाती हैं। पर वह हार नहीं मानता। फिर से नई कोंपलें निकालता है। गलती इंसान की तरह पेड़ के जीवन का भी हिस्सा है।"


अर्जुन सोच में डूब गया।


तभी आँगन से दादी की आवाज़ आई,

"राघव! देखो, बच्चा बिगड़ न जाए। अब के बच्चे तो जरा-सी छूट मिले तो सिर पर चढ़ जाते हैं!"


राघव मुस्कुरा कर बोला,

"दादी, 'बाँध-बाँध कर भी कोई पौधा बड़ा नहीं होता, उसे खुला आकाश चाहिए।' प्यार की खाद होगी तो ये बच्चा भी मजबूत बनेगा।"


दादी ठुनकते हुए बोलीं,

"हमारे समय में तो बेंत खा-खा कर ही अक्ल आती थी!"


राघव ने शरारती मुस्कान के साथ कहा,

"और दादी, आप खुद तो कहती थीं — 'जहाँ प्यार बरसता है, वहीं फूल खिलते हैं।'"


दादी झेंपते हुए मुस्कुरा दीं, "हाय राम, ये लड़का तो तर्क में भी बाजीगर निकला!"


अर्जुन ने उत्साहित होकर पूछा,

"पापा, आप मुझसे कभी नाराज़ नहीं होंगे?"


राघव ने गंभीर होकर कहा,

"बेटा, ग़लती पर नाराज़ नहीं होंगे, पर सिखाएँगे। नाराज़ होकर अगर हम तुम्हें डराएंगे, तो तुम सच्चाई से मुँह मोड़ोगे। लेकिन अगर तुम्हें गले लगाएँगे, तो तुम अपनी ग़लती खुद समझोगे।"

अर्जुन ने मासूमियत से पूछा,

"अगर मैं बहुत बड़ी गलती कर दूँ?"


राघव ने उसका हाथ थामते हुए कहा,

"तो भी बेटा, हम तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेंगे। 'भूल सुधारने का मौका देना, सबसे बड़ा संस्कार है।'"


थोड़ी देर चुप्पी छाई रही। हवा में हल्की ठंडक घुल गई थी।


फिर राघव ने अर्जुन से कहा,

"सोचो बेटा, अगर हम वही सब कुछ वैसे का वैसा आगे बढ़ाते रहें, जो पहले गलत था, तो आगे जाकर क्या होगा?"


अर्जुन ने आँखें सिकोड़कर सोचा और फिर बोला,

"सब गड़बड़ हो जाएगा!"


राघव ने गर्व से उसकी पीठ थपथपाई,

"बिलकुल सही! 'पुरानी नींव पर नया महल तभी टिकता है, जब नींव को दुरुस्त किया जाए।'"


अर्जुन खुश होकर बोला,

"पापा, मैं भी अपनी गलती से सीखूँगा और दूसरों को भी सिखाऊँगा!"


दादी ने दूर से सुनते हुए दुआ दी,

"सदा खुश रहो, बेटा। तुम्हारे विचारों में ही हमारा भविष्य है।"


पीपल के पत्तों ने ज़ोर से सरसराना शुरू किया, मानो कुदरत भी इस नन्हे बीज के सपनों पर आशीर्वाद बरसा रही हो।


राघव ने चुपचाप मन ही मन संकल्प लिया —

"जो संस्कार समय के साथ नहीं निखरते, वे भविष्य का बोझ बनते हैं। मैं अर्जुन को नयी सोच, नयी दिशा दूँगा। यही मेरी असली विरासत होगी।"


चाँदनी धीरे-धीरे धरती पर उतर रही थी, और उस पीपल की छाया में एक नयी पीढ़ी, एक नयी सोच चुपचाप आकार ले रही थी।


"अच्छे संस्कार और सही सोच ही सच्ची विरासत हैं, जिन्हें समय के साथ सँवारना और संजोना ज़रूरी है।"

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