हिंदी कविता : बिखरती धूप

Dr. Mulla Adam Ali
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Bikharti Dhoop : Kavita

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Dhoop Bikharti Hindi Kavita

बिखरती धूप


धूप बिखरती आज धरा पर सूखापन अब लगता है,

मौसम शुष्क हवा भी सूखी आँचल सूना लगता है।

शुष्क हवा से पत्ते बिखरे टहनी टूटी डाली डाली से,

मौसम के तलघर में खुश्बू का डेरा अब नही लगता है।

धूप बिखरती आज धरा पर सूखापन अब लगता है।


लाख चिरोजी गोंद कंदमूल फल चारो तरफ ये बिखरे है,

जंगल के हर कोने में मेवा चर्तुर्दिक इन्हीं के नखरे है।

बेल लता और पत्ते सब सूखे बेनाम हुए अब उड़ते है,

वसुन्धरा के आँचल में अब सबकुछ अच्छा लगता है।

धूप बिखरती आज धरा पर सूखापन अब लगता है।


तोता मैना और कबूतर धूप से देखो कतराते है,

वृक्षों की शाखों पर बैठे और कोटर में इतराते है।

तीखी धूप बिखरकर चमकी शाखों से छनकर गिरती है,

जंगल के आँगन में देखो मौसम सुखमय लगता है।

धूप बिखरती आज धरा पर सूखापन अब लगता है।


गरमी वर्षा शीत ऋतु सब प्रकृति के उपहार है ये,

समय-समय पर सब अच्छा लगता धरती का श्रृंगार है ये।

इनसे सीखो प्रेम की भाषा देकर भी कुछ पाना सीखो,

पर्यावरण की झोली में ऋतुओं का संसार सहज ही लगता है।

धूप बिखरती आज धरा पर सूखापन अब लगता है।


- कमलसिंह चौहान

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