Ashok Srivastav 'Kumud' Poetry
🤦 बदनामियां 🤨
पत्थरों को प्यार से
तराशा था कभी
वही पत्थरों के बुत
हमें तमाशा बना गये
दिल के हसीन राज
सरे आम हो गये
भरते थे दम हमराज का
वही बदनाम कर गये
बदनामियों का सिलसिला
क़ायम है इस कदर
मेहरबानियां हमारी
बदनाम हो गई
चर्चा उस गली में भी
जहां ना गये कभी
आवाज उन चेहरों से
ना देखा जिन्हें कभी
जो रुबरु थे हमसे
ज़माने में चुप रहे
अनजान थे हमसे
चर्चा वही किये
दिल से दुआ निकलती
हर उस तंगदिल को
मक्करियो ने जिनकी
बदनाम कर दिया हमको
बदनामियों से अब हमें
लगता नहीं है डर
डर है जहां में फिर से
ना गुमनाम हो जाऊं
अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"
राजरुपपुर, इलाहाबाद
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