Ramcharitmanas : रामचरितमानस में शिवचरित्र - स्तुति राय

Dr. Mulla Adam Ali
0

Shiv Charitra in Ramcharitmanas

रामचरितमानस में शिवचरित्र

कहते हैं "जब वर्तमान आंखें चुराने लगे तो हमें अतीत में झांक कर देखना चाहिए" गोस्वामी जी का 'रामचरितमानस' वही अतीत का पन्ना है जो वर्तमान में सबसे अधिक प्रासंगिक है। ' तुलसी साहित्य' और 'रामचरितमानस' पर आज सिरे से चर्चा की आवश्यकता है, जिससे आधुनिक संदर्भ में उसकी प्रासंगिकता समझी जा सके। बीतने वाली शताब्दियों ने आने वाली पीढ़ी को निरंतर दाय रुप में दिया है, अन्यथा वह न जाने कब का इतिहास का एक भूला हुआ प्रसंग बन कर रह जाता। समग्र भारतीय जीवन और उसकी चेतना को समग्र दृष्टि से प्रस्तुत करने वाले साहित्य का नितांत अभाव उस युग को खटक रहा था, जिसकी सफल पूर्ति 'रामचरितमानस' के द्वारा हुई।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने अन्य सभी रामकथा काव्यों से भिन्न अपनी कथा का प्रारम्भ किया है। तुलसी दास ने 'मानस' का प्रारम्भ "शिवकथा" से किया है। तुलसीदास जी ने मानस का प्रारम्भ 'शिवकथा' से किया इसके पीछे पांच कारण है , पहला कारण है- "रामभक्ति महत्त्व वर्णन" । 

'रामचरितमानस' आस्था और श्रद्धा का संयोग है और ईश्वर कि भक्ति कैसे की जानी चाहिए और कैसी होनी चाहिए वह शिवकथा के माध्यम से बताया गया है। क्योंकि शिव से बड़ा भक्त राम का कोई नहीं हो सकता। शिव कल्याण के प्रतीक हैं । भगवान शिव रामकथा के प्रणेता और आचार्य है फिर भी वह पृथ्वी त्याग कर दंडकारण्य जैसी शापित भूमि पर कुम्भज से कथा श्रवण को आते हैं। कुम्भज जड़ है ,ससीम है और अजन्मा भगवान शिव कुम्भज के निकट कथा श्रवण करने आते हैं। यह एक भक्त की भक्ति है -

"एक बार त्रेता जुग माही।

सम्भु गए कुंभज रीषि पाही।।

संग सती जग जननी भवानी।

पूजे रिषि अखिलेश्वर जानी।।

रामकथा मुनिवर्ज बखानी।

सुनी महेस परम सुखु मानी।"

भगवत रस को एक मात्र चरम साध्य मानने की वृत्ति का परिचायक है।

'शिवकथा' से प्रारंभ करने के पीछे दुसरा कारण है - "राम या ईश्वर के प्रति शंका का परिणाम"।

तुलसीदास के समय में समाज में संदेह विद्यमान था। कबीर आदि निर्गुण संत दशरथ पुत्र " राम" और निराकार ब्रह्म "राम" में अंतर कर रहे थे। गोस्वामी जी ने शिवकथा के माध्यम से इस प्रश्न का उत्तर भी दिया है और संदेह करने का दुष्परिणाम भी दिखाया है। इसमें सती दशरथ पुत्र राम को एक साधारण मानव समझने की भूल भी कर बैठती हैं। उन्हें वह सच्चीदानंद ब्रम्ह नहीं मानती और इस अविश्वास का परिणाम यह हुआ कि उन्हें दण्ड - स्वरूप सती रुप का परित्याग करना पड़ा और पार्वती रुप में जन्म लेना ही पड़ा। तात्विक दृष्टि से सती दाह वस्तुतः संशय दाह है।

 वह संशय जिसके द्वारा प्रेरित मानव विश्वास की धरा पर नहीं उतर पाता है। सती से पार्वती की यात्रा , संदेह से विश्वास की यात्रा है । सती के माध्यम से पिता के संस्कारों का कन्याओं पर प्रभाव दिखाया गया है।सती दक्ष पुत्री है उनमें वैभव का अभिमान है , पार्वती पर्वत पुत्री है उनमें सहनशीलता से जुड़े संस्कार है । एक संदेह करती है , एक विश्वास करतीं हैं। अतः सती से पार्वती की यात्रा संदेह से विश्वास की यात्रा है।

'रामचरितमानस' को शिवकथा से प्रारंभ करने के पीछे तीसरा कारण है - " वैष्णव - शैव धर्म समन्वय" । तुलसीदास समन्वयवादी कवि हैं।' रामचरितमानस ' में वक्ता श्रोता के रूप में शिव - पार्वती की योजना समन्वय भावना से ही प्रेरित है। विनय पत्रिका की हरिशंकरी स्तुति में भी यह सिद्धांत प्रतिफलित हुआ है । हां, यह समन्वय राम भक्ति के केन्द्र से हुआ है।शैव - शक्ति - वैष्णव , तुलसी के समय में ये तीन धार्मिक सम्प्रदाय प्रबल थे । उनमें परस्पर विरोध था। तुलसी ने उनमें समन्वय स्थापित किया। शिव - शक्ति और राम या विष्णु की स्तुतियों में प्रायः एक समान विशेषताएं बतलायी गयी है। राम परम आराध्य हैं। इस लक्ष्य को दृष्टि में रखकर राम , शिव और पार्वती से क्रमशः कहलाया गया है- 

१) "संकर प्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास ।

 ते नर करहि कलप भरि घोर नरक महुं बास।।"


२) "जहं लगि साधन वेद बखानी।

 सब कर फल हरि भगति भवानी।।


३) नाथ कृपा मम गत संदेहा।

 राम चरन ऊपजेउ नव नेहा।।

इस तरह राम शिव और पार्वती के माध्यम से तीनों सम्प्रदायों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध को दिखाया गया है। 

चौथा कारण - "लौकिक एवं आध्यात्मिक अर्थ का भेद" । मानस में शिव कथा के माध्यम से तुलसी ने लौकिक अर्थात सांसारिक एवं आध्यात्मिक अर्थात आत्मा और परमात्मा का सम्बंध , मन को जानने वाला दिखाया है। सती सांसारिकता में फंस कर रह जाती है इसलिए ईश्वर का दर्शन होने पर भी वह सत्य को समझ नहीं पाती। अंतर्मूखी शिव आत्मानन्द में निमग्न हैं। उन्हें ईश्वर के दर्शन होते हैं और वह प्रसन्न चित्त चले जाते हैं। इसी लौकिक से आध्यात्म की यात्रा है शिवकथा।

पांचवां कारण - श्रद्धा का वास्तविक स्वरुप संसार के समक्ष प्रगट करने के लिए यह लीला प्रस्तुत की गई है।भक्त का ईश्वर पर कैसी श्रद्धा होनी चाहिए तथा भक्ति किस प्रकार की होनी चाहिए इस कथा के माध्यम से गोस्वामी जी ने प्रस्तुत किया है।

स्तुति राय

शोध छात्रा,
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी
मो० न० - 9569302834

ये भी पढ़ें;

भारतीय भाषाओं में राम साहित्य की प्रासंगिकता : लोकतंत्र का संदर्भ

वर्तमान समय में राम की प्रासंगिकता

Ramcharit Manas, Tulsi Ramayan, Goswami Tulsidas Ji, The Glory of Lord Shiva in Ramcharitmanas by Goswami Tulsidas, Shiva in Valmiki Ramayana, Shiva in Ramayan, Lord Shiva in Valmiki Ramayana and Tulsidas Ramcharitmanas, Prayer To Lord Shiva By Tulsidas Author Of Ramcharitmanas, 'Tuslidas' wrote Ramcharitmanas after Lord Shiva's order, Essay on Ramcharitmanas, Shivji Ka Vivah, Shiv Parvati Vivah, Ramcharitmanas Bal Kand, Ramcharitmanas in Hindi..

रामचरित मानस में शिवजी, तुलसी रामायण, तुलसीदास कृत रामचरितमानस, रामचरित मानस, शिव पार्वती का विवाह, शिवजी का विवाह, शिव-पार्वती संवाद रामचरितमानस, शिव-पार्वती विवाह चौपाई रामायण, शिव पार्वती कथा संग्रह, रामचरितमानस बालकाण्ड।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top