अपनी बात : व्यंग्यकार मुकेश राठौर

Dr. Mulla Adam Ali
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"Kaun Banega Mukhya Atithi" is a satire collection book written by Mukesh Rathor

अपनी बात

    व्यंग्यकार का काम है विसंगतियों को उद्घाटित करना। विसंगतियां हर दौर में रही है, कल भी, आज भी, कल भी...। लेकिन, यह ऐसा दौर है जिसमें एक पकड़ों दस विसंगतियां हाथ लगती है। व्यंग्यविद कहते हैं "व्यंग्य प्रवृत्ति पर होना चाहिए, व्यक्ति पर नहीं।" वे सही कहते हैं, क्योंकि 'जीव मरता है, जीवन नहीं' टाइप व्यक्ति रहे न रहे, प्रवृत्ति जाती नहीं। सो प्रवृत्ति पर व्यंग्य बांके-तिरछे चलने वालों के नाम 'सामूहिक सूचना पत्र' सरीखा होता है।

      मैं ठेठ गांव-देहात का आदमी हूं। मेरी दृष्टि, मेरे विचार, मेरे विषय, मेरे पात्र... यूं समझिए कि मेरे व्यंग्यकरम का सारा खटकरम लोकजीवन आधारित है। यदा-कदा कभी नजर उठाकर ऊपर देखता हूं तो शिक्षा, साहित्य, खेल, राजनीति, घर के घोड़े और पड़ोस के गधों की भी कुछ बातें कर लेता हूं। मैं आम पाठक वर्ग को ध्यान में रखकर लिखता हूं। कहना न चाहिए कि कई व्यंग्यकारों का लिखा मुझे ही समझ नहीं आता, द्विवाचन, त्रिवाचन पश्चात व्यंग्यकार का मंतव्य समझ आता है। मानाकि व्यंग्य में व्यंजना होनी चाहिए लेकिन वह व्यंग्य ही क्या जिसे पढ़ने के लिए पाठकों को रुक-रुक कर सोचना पड़े, व्यंग्य तो वह है जिसे सरपट पढ़कर पाठक निकल जाए और बाद में सोचता रहे।

      लिखने को तो थोड़ी-घणी कविता, कहानी भी लिख सकता हूं लेकिन सूरदास की भांति "मेरो मन अनत कहां सुख पावै"। आत्मिक सुख तो व्यंग्य लिखने में ही मिलता है क्योंकि अपने जिया की पीर खुलकर व्यंग्य के माध्यम से ही कही जा सकती है, हिंदी गद्य की दीगर विधा में नहीं, ऐसा मेरा मानना है। सिस्टम की बदमाशियां पकड़ने के लिए व्यंग्य 'तीसरी आंख' का काम करता है। व्यंग्य जनजागरण का माध्यम है। हालांकि व्यंग्य के पितृपुरुष कबीर या परसाई जी की तरह लेखन का वैसा खुलापन आज नहीं है या फिर कहे कि हममें जोखिम उठाने का हौसला नहीं। आज अखबारों में छपने के लिए अखबारों के अग्रलेखों को आधार बनाकर प्रकाशन फ्रेंडली व्यंग्य रचा जा रहा है, जिससे व्यंग्य कालजायी होना तो दूर 'कलजयी' तक नहीं हो पा रहा है। रीड एंड फॉरगोट वाली स्थिति। अपने लिखे को आगे तक ले जाने के लिए व्यंग्यकार को पीछे माने चेहरे के पीछे का चेहरा, खबर के पीछे की खबर...तक जाना होगा। व्यंग्य सदा के लिए सबके साथ, सबकी बात करता है। व्यंग्य में हास हो, परिहास हो लेकिन उपहास नहीं।

   इसे मेरा सौभाग्य कह लीजिए कि मैं व्यंग्य प्रदेश यानी मध्यप्रदेश से आता हूं। जहां व्यंग्यपुरोधा हरिशंकर परसाई जी, शरद जोशी जी, ज्ञान चतुर्वेदी जी जैसे व्यंग्यकार हुए हैं, जो व्यंग्य मार्ग में मील के पत्थर बनें। जवाहर चौधरी जी, कैलाश मंडलेकर जी और ब्रजेश कानूनगो जी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। मैं देश, प्रदेश के व्यंग्यकार बंधुओं का आभारी हूं जिनसे व्यंग्य पर सलाह और स्नेह मिलता रहा है।

    लेखन कार्य समय की मांग करता है। मैं अपनी माताजी, जीवन संगिनी और बच्चों का भी आभारी हूं जो मुझे सहयोग करते हैं। छोटे भाई-बहू और मित्रों को भी साधुवाद जो मेरी लेखन उपलब्धियों पर प्रसन्न हो प्रतिक्रिया देते हैं।

    कोरोनाकाल में अपने दूसरे व्यंग्य संग्रह पर काम करते हुए मैंने मन बनाया था कि अब जब कभी भी तीसरा संग्रह लाऊंगा तो भूमिका बागपती खरबूजों के बदले ज्ञानपीठ लाने वाले व्यंग्यकार डॉ हरीश नवल जी से लिखवाऊँगा। इसे सर की सहृदयता कहूं या अपना सौभाग्य कि उन्होंने मेरा आग्रह सहर्ष स्वीकार किया बल्कि विदेश में रहते हुए तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद प्रेषित पांडुलिपि को अक्षरशः पढ़कर विस्तृत भूमिका वह भी समयबद्ध होकर कागज पर लिख भेजी, जो अब मेरे लिए एक संग्रहणीय दस्तावेज बन चुका है।

    मैं कृतज्ञ हूं विद्वान साहित्यकार और हाल में पुस्तकों का सैकड़ा जमाने वाले डॉ संजीव कुमार जी का जिन्होंने बिना शर्त, बिना पांडुलिपि देखे मेरे व्यंग्य संग्रह 'कौन बनेगा मुख्य अतिथि' को इंडिया नेट बुक के बैनर तले प्रकाशित करने की स्वीकृति दी और अपने वृहत पाठक वर्ग से जुड़ने का अवसर दिया। यह मेरा तीसरा व्यंग्य संग्रह है। इसमें संकलित रचनाएं अखबारी व्यंग्य होकर शब्द संख्या के बंधनों के चलते अपेक्षाकृत छोटी हैं। मैंने नश्तर के बरक्स सुई चुभोकर व्यवस्था की गुमडियों का मवाद बाहर लाने का छोटा सा प्रयास किया है। पाठक इन्हें पसंद करेंगे, ऐसा विश्वास है।

मुकेश राठौर

मो: 9752127511

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