Bal Kavita Nani Ke Ghar : नानी के घर बाल कविता - दिनकर स्वरूप

Dr. Mulla Adam Ali
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Nani Ke Ghar : Children's Poem by Dinkar Swaroop

नानी के घर 

बचपन में बच्चों की बातें

ऊहा - पोह भरी वो बातें


कभी चाँद थाली में, लखना,

कभी ताल जल तल पर लखना,

कभी चाँद बिल्कुल ना दिखना -


नानी के घर चला गया वो !

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सूरज धरनि कोर से दिखना, 

संध्या धरनि छोर जा छुपना,

सिर्फ हमें ही क्यों प्रकाश दे-


नानी के घर चला गया वो !

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वर्षा आई बूँदें लायी, पवन बही

ठंड लगी बहती पुरवाई हं हं हं 

तन भींगा मन उमग भयी तो--


नानी के घर चली गयी वो !

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नभ के आँगन झुण्ड पखेरू ,

इक दूजे से बहलाते मन ,

कभी पंख से पंख मिलाकर -


नानी के घर चले गये वो !

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दूर देश परियों के घर हैं -

बहुत सजीले उन के पर हैं,

नानी के घर में रहतीं वो --


पलक झपकते आ जातीं वो !

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देखो-देखो परियाँ आयीं

नानी का संदेशा,,, लायीं 

दे कर हम को सभी दुआऐं-


नानी के घर चलीं गयीं वो !

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बचपन में बच्चों की बातें

ऊहा-पोह भरी वो बातें

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रामस्वरूप दिनकर

आगरा

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