Hindi Bal Kavita : सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी की हिंदी बाल कविता - समझ न पाई

Dr. Mulla Adam Ali
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Samajh Na Payi Hindi Bal Kavita by Dr. Surendra Dutt Semalty

बाल कविता

"समझ न पाई"

- डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी

जाड़ों में क्यों सूरज दादा,

आने में देरी करते जादा!


समझ न पाई ए जो बातें,

छोटी-बड़ी क्यों दिन-रातें!


ग्रीष्म आग उगलती धूप, 

शीत में भाता उसका रूप!


शिशिर ऋतु का हवा-पानी,

बदलता ग्रीष्म में कहानी!


 बादल - कुहरा - पाला - ओस,

सर्दी में दिखाते पूरा जोश!


ग्रीष्म में धूप लगती आग,

घर के अन्दर जाते भाग!


लू थपेड़े तन को झुलसाते,

मुॅह पर पट बांध कर जाते।


सूखा कभी बाढ़-सुनामी,

कभी तूफान पर जवानी!


ऐसी और बहुत सी बातें,

होती रहती हैं दिन-रातें!


नानीजी आप ही समझायें,

औरों को क्यों पूछने जायें।


परिवर्तन प्रकृति का गुण,

भूल बड़ी समझें अवगुण!


प्रकृति चक्र बुरा न करता,

कष्टों को वह सबके हरता।


रहे सदा जो एक समान,

जीवित रह न पाये इंसान!


जैसे जरूरी भोजन तत्व,

परिवर्तन का वही महत्व।


प्राकृतिक प्रकोप जो होते,

बीज उनके मानव हैं बोते!


करते प्रकृति से छेड़छाड़,

तभी आती सुनामी - बाढ़!


काटते हैं पेड़ों को व्यर्थ,

तभी घटनायें होती अनर्थ!


शुद्ध रहे ध्वनि वायु जल,

सुखमय होगा निश्चित कल।


पौधरोपण भी बहुत जरूरी,

होंगी सब अभिलाषायें पूरी।


चलेंगे जो प्रकृति के साथ,

हटेगी दूर प्रकोपों की रात।


रहा न तब कुछ भी अधूरा,

ज्ञान मिला नानी से पूरा।

- डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी

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