भारत के धार्मिक स्थलों में पर्यटन : नगरी - नगरी द्वारे - द्वारे

Dr. Mulla Adam Ali
0

Nagari-Nagari Dware-Dware Book by Prempal Sharma

भारत के धार्मिक स्थलों में पर्यटन : नगरी नगरी द्वारे - द्वारे 

बी. एल. आच्छा

    'नगरी- नगरी द्वारे- द्वारे' प्रेमपाल शर्मा के यात्रा संस्मरणों की पुस्तक है। एक आस्था है, जो उन्हें भारत के प्रख्यात धर्मस्थलों तक खींच ले जाती है। भारत और भारतीयता का सांस्कृतिक भूगोल इनमें जीवन्त है। कुछ इतिहास, कुछ मिथक, कुछ शिल्प, कुछ पूजापाठ, कुछ दर्शक और पुजारियों के संवादी व्यवहार, कुछ उत्सवी रंगतों की सवारियां और कुछ छुअन भरे प्रसंग इनमें रचे- बसे हैं। ये यात्रा संस्करण केवल तीर्थाटन तक सीमित नहीं है, इनके भीतर जितना समाज जीवन्त है, उतनी ही भावसाध्य आराधना भी। प्रकृतेि दृश्यों का स्पन्दन भारत की सदाबहार भौगोलिक विविधता से मोहक बन जाता है। तब घंटियाँ केवल सोमनाथ- जगन्नाथपुरी या महकाल -वृंदावन-श्रीनाथद्वारा के मंदिरों-उत्सवों में ही नहीं बजती, भीतर भी उनकी प्रतिध्वनि झंकृत होती है।और यह आस्था राजस्थान की वीरभूमि चितौड़ को नमन कर आती है। सहयात्रियों के साथ, यात्रा के दौरान संपर्कित लोगों के साथ सौमनस्य का पाठ रच देती हैं। पर इन संस्मरणों में तीर्थों से संबंधित कथाएँ पाठकों के लिए पुनर्पाठ या पहला पाठ बन जाती हैं।

      'अथश्री जगन्नाथ पुरी यात्रा संस्मरण में वे यात्रा के प्रस्थान बिन्दु से दर्शन तक हर क्षण को दृश्य बनाते हैं। सहयात्री मित्रों के साथ खानपान से लेकर महाप्रभु चैतन्य की किम्वदन्तियों, समुद्र के नीले जल में दूधिया तरंगो की अठखेलियों, रथयात्रा के उत्सवी परिदृश्यों, मंदिर के स्थापत्य, पाकशाला, भोग के प्रसाद, मूर्तियों के विग्रह स्वरूप आदि का चित्रमय स्मरण करते हैं। 'नील माधव' यांनी विष्णु और उनके 'नील छत्र' है साथ अन्य देवी देवताओं के विग्रहों की भव्यता और बेजोड़ शिल्प से मोहित कर देते हैं। भगवान का रथ यानी 'पहाडे विजे', सोने की झाड़ू यानी 'छेरापंहरा', प्रत्यावर्तन यात्रा यानी 'बाहुड़ा यात्रा' का आंचलिक स्पर्श है। यही बात घंटा निनाद, वाद्ययंत्रों, मूर्ति शिल्प, पंडा-पुरोहितों के व्यवहार तक जाती है।

     इसी तरह कोणार्क सूर्यमंदिर की किम्वदंतियों, पुराकथाओं, कीर्तन मंडलियों का चित्रण मोहक है। लेखक ने इस सूर्य मंदिर की कथा के साथ वैज्ञानिक खगोलीय वेधशाला और शिल्पविज्ञान का भी परिचय दिया है-" पूरे मंदिर पर नीचे से ऊपर तक स्त्री पुरुष, पशुपक्षी, राजा-प्रतिहारी, सैनिक- सेवक तथा नृत्य गायन- वादन में रत मूर्तियां तथा पारिवारिक झांकियाँ उकेरी गयी हैं। "लेकिन लेखक ने साहसिक रूप से यहाँ के पंडों द्वारा भक्तों से जबरिया उगाही और अभद्र भाषा ,शारीरिक आघात का भी उल्लेख किया है। संकटमोचक के दरबार में इस अनैतिक व्यापार पर लेखक ने चोट की है। 'श्रीजगन्नाथ जी नवकलेवर कथा'में विग्रह मूर्ति के जीर्ण रूप के स्थान पर नवकलेवर उत्सव का वर्णन मोहक है। उड़िया में 'अंग फिटा' और हिंदी में नवकलेवर। हिन्दीतर प्रदेशों में हिंदी की वर्तनी और उच्चारण भी लेखक का ध्यान आकर्षित करते हैं।

     "श्रीराम की नगरी अयोध्या मे" शीर्षक संस्मरण अयोध्या की प्राचीनता, ऐतिहासिकता के अनेक संदर्भ चीनी यात्री ह्वेनसांग के माध्यम से दिये हैं। साथ ही अहिल्याबाई होल्कर जैसी रांनी द्वारा पुनर्निर्माण के प्रसंग भी। मंदिर संदर्भित कथाओं और उत्सवों के साथ सरयू नदी के दृश्यांकन भी लुभाते हैं।

      "आध्यात्मिक साहित्यिक तीर्थ श्री नाथद्वारा" के चित्रण में मंदिर के शिल्प, दर्शन व्यवस्था भोग आदि के साथ वैष्णव परम्परा का भी निदर्शन करते हैं। पुष्टिमार्ग के इस महातीर्थ और श्रीमद् वल्लभाचार्य की परम्परा के साथ कृष्णकथा के विभिन्न ग्रंथों और घटनाओं का उल्लेख किये बिना आगे नहीं बढते । यहाँ वे 'साहित्य मंडल 'संस्था के साहित्यिक आयोजनों की भव्यता के साथ वैष्णव भक्ति,अष्टछाप कवियों और ब्रजभाषा साहित्य के विशाल संदर्भ ग्रंथों के पुस्तकालय के अवदान का उल्लेख करते हैं। हिंदी के लिए समर्पित स्वर्गीय भगवतीप्रसाद देवपुरा को नमन हिन्दी के लिए आंदोलनरत व्यक्तित्व को नमन है।

   उज्जयिनी में महाकाल मंदिर, शिप्रा तट पर रामघाट, मंगलनाथ, काल भैरव, गढ़कालिका, सांदीपनि मंदिर एवं आश्रमों का दर्शन तो वर्णनपरक है,मगर उनसे संबंधित कुछ कथाएं पौराणिक पृष्ठों को खोलती है। इसी तरह दिल्ली के मंदिरों का परिचयात्मक विवेचन है,उनके इतिहास, शिल्प, निर्माण और ऐतिहासिकता के साथ।

     सौराष्ट्र के तीर्थ स्थलों में की दंतकथाओं में उस काल के समाजशास्त्र और अर्थ -बाजार की झलक मिल जाती है। पर लेखक वृंदावन में खूब रमा है। गोवर्धन तीर्थ स्थान में नंदगाँव की बाललीला है, राधा के बरसाना, गोवर्धन की कथा, कृष्णकुंड, गिरिराज पूजा, वाल्मीकि झरोखा में अछूत भक्त की कथा, परासौली में सूरदास की समाधि, रसखान की समाधि, रेवतीरमण और वृंदावन के प्रमुख मंदिरों का यथार्थ, भक्तिमय उल्लास इन संस्मरणों में उतर आया है। 'लला फिर आइ‌यो खेलन होरी' में तो ब्रजमंडल के हुरियारे उत्सवी रंगों और गोचारण सहित कृष्ण लीलाओं का रास इस वर्णन को मादक बना देता है।

   ये संस्मरण धार्मिक और ऐतिहासिक दर्शन- पर्यटन से संबंधित हैं। गुजरात के धार्मिक स्थलों की यात्रा एवं दर्शन में वे केवल तीर्थों की परिक्रमा ही नहीं करते , उनके पौराणिक इतिहास, किंवदंतियों, जन- आस्थाओं और पौराणिक कथानकों को पहले लाते हैं। इन संस्मरणों में तीर्थ यात्रा के शास्त्रीय संदर्भों के साथ सांस्कृतिक भूगोल और प्राकृतिक सुषमा को समाहित किए बिना नहीं रहते ।जिन वाहन चालकों और आश्रमों- धर्मशालाओं के कर्मचारियों के साथ उनका वास्ता होता है, उनसे रिश्ते जोड़ने की संवादी- कला भी उनके पास है। फिर भी बाजार, सामाजिक जीवन और उन स्थलों के अर्थशास्त्र की झलक तो दे ही जाते हैं। मितव्ययिता तो भरीपूरी ,मगर साथियों के साथ यात्रा की सहकारिता को भी आत्मीय सत्कार देते हैं।

     इन संस्मरणों में भक्ति साहित्य भी उमड़ आता है। शास्त्र अपनी झलक दे जाते हैं। ईश्वर के प्रति प्रणति- भाव एवं सूरदास- नरसी मेहता- संत तुकाराम के साथ प्रवाहित हो जाता है ।कथाओं के संवाद जीवंत बन जाते हैं। तीर्थस्थलों के आसपास के बाजारों की रौनक संवाद करती लगती है। साधु- संतों की चर्या, खानपान और विश्राम के लिए यात्री- सुविधा और अखाड़ों का परिदृश्य जीवन्त हो जाते हैं। प्रकृति को तो प्रेमपाल शर्मा उसी तरह हिलगाये रखते हैं, जैसे तीर्थाटन की आस्था को-" आकाश में चांद हमारे बांई ओर साथ साथ दौड़ रहा है। कभी वह पीछे रह जाता है, तो कभी ओझल और कुछ ही पलों में मेरी खिड़की से झांकने लगता है। इस तरह चंदामामा बराबर आंखमिचौली करते रहे। बस अपने गंतव्य की ओर दौड़ रही है।" जूनागढ़ और डाकोर के मंदिरों का दृश्यमान वैभव और आस्था का भावतरल रूप साकार हो जाता है। गिरनार में पहाड़ों पर चढ़ने का उपक्रम जैन, वैष्णव, नाथ या अन्य स्थलों को प्रणति किये बगैर आगे नहीं बढ़ता ।पर तीर्थ स्थानों पर लूट के गिरोहों पर प्रहार करने से वे चूकते नहीं हैं। ठगी के सोचे- समझे पुजारी- गिरोह के लिए वे खबरदार करते हैं‌, जो अनास्था बढ़ाते हैं।

      राजस्थान के तीर्थस्थलों में जहां चित्तौड़ के पास सांवलिया सेठ श्रीकृष्ण के प्रति मनभावन आस्था है, वहीं शौर्य के किले चित्तौड़गढ़ के रणबांकुरों को नमन भी। मेवाड़ की शौर्यगाथा कहती हल्दीघाटी और उसमें भाले की नोक के साथ महाराणा प्रताप का यशस्वी शौर्य चेतक की कथा को भी कह जाता है। लेखक जितना श्रीनाथजी सहित नाथद्वारा- राजसमंद के मंदिरों में रमा है, उतना ही महाराणा राजसिंह द्वारा निर्मित राजसमंद की मानवनिर्मित झील के सौंदर्य में भी। इन मंदिरों के साथ लोक विश्वास के सजल पक्ष भी हैं और चर्मरोग, लकवा आदि से मुक्त होने की जन- आस्था भी। लेखक ने मंदिरों और इतिहास से जुड़ी दंतकथाओं के इतिहास को भी इन संस्मरणों का अंतरंग बनाया है।

   ये संस्मरण धार्मिक- आध्यात्मिक आस्था के बावजूद व्यावहारिक उपयोगी जानकारियों से रूबरू करवाते हैं। संस्कृत ग्रंथों के श्लोकों, पुराकथाओं के उल्लेख, किम्वदन्तियों, ऐतिहासिक संदर्भों राष्ट्रीय गौरव की भावनाओं से पुष्ट हैं।ये साहित्यिक भले ही कम हों पर समाजशास्त्र, भक्ति और  समकालीनता की संधि पर बहुत उपयोगी बन पड़े हैं।

पुस्तक का नाम : नगरी - नगरी द्वारे - द्वारे

लेखक : प्रेमपाल शर्मा

प्रकाशक : नमस्कार बुक्स,नई दिल्ली

प्रकाशन वर्ष : 2021

मूल्य : ₹500/-

बी. एल. आच्छा

फ्लैटनं-701 टॉवर-27

स्टीफेंशन रोड (बिन्नी मिल्स)

पेरंबूर, चेन्नई (तमिलनाडु)

पिन-600012

मो-9425083335

ये भी पढ़ें; आत्मवृत्त में साहित्य के समकाल का कोलाज : माफ करना यार

Nagari-Nagari Dware-Dware Book by Prempal Sharma, Nagari-Nagari Dware-Dware Book Review in Hindi, Book Review, Pustak Samiksha, Samiksha, Hindi Pustak Samiksha, Yatra Varnan in Hindi...

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top