हिंदी भाषा संस्कृति की वाहिनी है या विज्ञान की?

Dr. Mulla Adam Ali
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hindi language in culture and sacience

हिंदी भाषा संस्कृति की वाहिनी है या विज्ञान की?

भाषा मनुष्य प्रतिपाद्य एक सामाजिक वस्तु है। मनुष्य अपनी सुविधा तथा प्रयोजन के लिए इसका शोध किया, इसका सुधार किया तथा परिमार्जन किया। भाषा के माध्यम से हृदय में तरंगित भावनाएँ तथा दिमाग में उत्पन्न विचार स्पष्ट होते हैं।

प्रत्येक भाषा के पीछे उसकी अपनी भौतिकता, संस्कृति, परम्परा, सामाजिकता, समाज जीवन की झांकी तथा संवेदना की एक विशेष गंध होती है, जो दूसरी भाषा से भिन्न होती है। जैसे उष्ण प्रदेश की भाषा में कठोरता एवं शीत प्रदेश की भाषा में कोमलता पायी जाती है। प्रत्येक भाषा में उसकी अपनी संस्कृति झलक पाना स्वाभाविक है।

भारत बहुभाषा-भाषी राष्ट्र है। अतएव यहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। साथ में अनेक बोलियाँ भी बोली जाती हैं। भारत वर्ष अनेक प्रांतों में विभाजित है, यहाँ अनेक जातियाँ, उप-जातियाँ पायी जाती हैं। समाज के समस्त धर्म यहाँ पाये जाते हैं। भारत एक जात्यातीत राष्ट्र है, भारत पर अनेक आक्रमण हुए, देश दासता को भोग चुका है। विदेशियों का शासन तथा शोषण दोनों भोग चुका है । उदा : मोगल तथा ब्रिटिश शासन। जिससे भारत की परम्परा तथा संस्कृति पर काफी प्रभाव पड़ा । फलस्वरूप भारत में 'एकता में अनेकता तथा अनेकता में एकता' पाई जाती है। यह भारत की एक विशेषता है।

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धर्म, जाति, प्रांत तथा भाषा में विभक्त, टुकड़े-टुकड़ों में बिखरे भारत को एक भावनात्मक एकता के सूत्र में जोड़ने वाली एकमात्र मजबूत कड़ी हिन्दी भाषा है। हिन्दी भाषा का जन्म भारत के चन्द प्रादेशिक बोलियों से हुआ है। लगभग 155 वर्षों का इतिहास खड़ी बोली को अस्तित्व में लाता और देश की राष्ट्र भाषा और विश्व भाषा तक ले गुजरता है। संस्कृत के बाद अगर कोई अखिल भारतीय संस्कृति को सक्षमता से व्यक्त करने की एकमात्र भाषा है, तो वह है हिन्दी भाषा । हिन्दी भाषा में हर प्रदेश के शब्द पाये जाते हैं, जो अपने प्रदेश की संस्कृति के प्रतीक हैं, जो संस्कृति के वाहक हैं। विश्व में भारत की पहचान हिन्दी से है। हिन्दी देश की भाषा है। यदि कोई भारत को ललकार रहा, उसके सम्मान को ठेस पहुंचा रहा है, तो प्रत्येक भारतीय की जिन्टा पर एकमात्र शब्द गूँज उठता है ‘जैहिन्द' यह अपनी संस्कृति का द्योतक है। हिन्दी हमारी अपनी संस्कृति की परिचायिका है । हिन्दी सिन्धु शब्द से भी जुड़ी है, जब कि वह नदी का नाम है हिन्दी सिन्ध शब्द से भी जुड़ी है, जबकि वह एक प्रांत है। हिन्दी भाषा की अपनी गौरवान्वित संस्कृति तथा परम्परा है, हिन्दी में अखंडता एवं समग्रता के पुट देख सकते हैं। जिसमें भारत के इतिहास की झांकि दृश्यमान है।

हिन्दी एकैक भाषा है, जिसमें भारत के प्रत्येक प्रान्त के साहित्यकार पाये जाते हैं। जैसे कि बंगाल से क्षितिमोहन सेन, मन्मथनाथ गुप्त, महाराष्ट्र से गोपाल शेवड़े, प्रभाकर माचवे तथा मुक्तिबोध, गुजरात से कन्हैयालाल मुंशी, तमिल के श्रीनिवासाचारी, शंकर राजु, आंध्र के बालकृष्ण राव, अड़िगपुड़ी, केरल के चंद्रहासन, पंजाब के यशपाल तथा उपेन्द्रनाथ अश्क, कर्नाटक के सरगु कृष्णमूर्ति, चन्दूलाल दुबे, तेजस्वी कट्टीमनी, तिप्पेस्वामी तथा परबतसिंह समोरेकर आदि हिन्दी की राष्ट्रीय एकता के प्रतीक हैं। साहित्य समाज का प्रतिबिंब, समाज से संस्कृति, हिन्दी में साहित्य सृजन। इससे स्पष्ट होता है कि हिन्दी भारतीय संस्कृति की वाहिनी है।

भारतीय संविधान के अनुसार हिन्दी भारत के बृहत् भू-भाग तथा अत्याधुनिक जनता की भाषा होने के कारण सारे देश की संपर्क भाषा, राजभाषा तथा राष्ट्र भाखा के रूप में सन् 14 सितम्बर, 1949 से ही प्रतिष्ठित कर दी गई है। हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में प्रचारित तथा प्रसारित करने में तत्कालीन धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक संस्थाओं का भी योगदान रहा है। जिनमें प्रमुख हैं ब्रह्म समाज, सनातन धर्म सभा, - आर्य समाज, प्रार्थना समाज, काशीनागरी प्रचारिणी सभा, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा, गुजरात विद्यापीठ देवधर, असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति गोहाटी, हिन्दी प्रचार सभा हैदराबाद, मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद् बेंगलूर, केरल हिन्दी प्रचार सभा त्रिवेंद्रम, कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति बेंगलूर, उड़ीसा राष्ट्रभाषा परिषद् पुरी, सौराष्ट्र हिन्दी प्रचार समिति राजकोट, मणिपुर हिन्दी परिषद् इम्फाल, नागरी लिपि परिषद् दिल्ली, अखिल भारतीय हिन्दी संस्था, संघ आदि। इंडियन नेशनल कांग्रेस ने राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी को विकसित किया। स्वतंत्रता संग्राम काल में हिन्दी देश में राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक थी।

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वास्तव में भारत में हिन्दी भाषी राज्यों की संख्या सारे देश की जनसंख्या की 40 प्रतिशत से भी अधिक है और भारत के 80 प्रतिशत लोग हिन्दी समझते हैं। ये सारे आधार यह पुष्ट करते हैं कि हिन्दी भाषा हमारी संस्कृति का प्रतीक मात्र नहीं, बल्कि संस्कृति की वाहिनी भी है। वह हमारी वैविध्यमय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। उसमें हमारे देश की सुगंध महकती है। तब तो हिन्दी निश्चित रूप से हमारी महान संस्कृति की वाहिनी है इसमें कोई संदेह नहीं ।

उपरोक्त समस्त ठोस प्रमाणों से यह सिद्ध हो जाता है कि भारत जैसे राष्ट्र के लिए हिन्दी ही विज्ञान का एक सशक्त माध्यम हो सकती है और है भी । विभिन्न भाषाओं में विभक्त भारत और भारतीयों को भावात्मक एक सूत्र में बांधने वाली एकैक भाषा हिन्दी है। जब हिन्दी भाषा समझने में कोई कठिनाई नहीं है तब तो हिन्दी के माध्यम से प्रत्येक भारतीय विज्ञान को पढ़ सकता है और समझ भी सकता है। यह आसान हो जाता है कि हिन्दी के माध्यम से प्रत्येक भारतीय तक याने नगर से गाँव वालों तक विज्ञान विषय पहुँचाया जा सकता है। क्योंकि भारत में अंग्रेजी समझने वाले 3 प्रतिशत से अधिक नहीं हैं। अन्य भाषाओं की तुलना में हिन्दी एकमात्र समर्थ भाषा, जिसमें विज्ञान को प्रसारित करने की संपूर्ण समर्थता तथा योग्यता है । वह एकदम सरल सुन्दर तथा मधुर भाषा है। उसकी बृहत् शब्दावली है। उसकी लिपि देवनागरी एकदम वैज्ञानिक है। विज्ञान को अपने हृदय में समेट कर अपनी शक्ति से यानी सामर्थ्य से उसे प्रकट करने की विशेष क्षमता है। विज्ञान कठिन विषय है यह मानी हुई बात है । परन्तु भारत जैसे राष्ट्र में हिन्दी ही उसकी वाहिनी बन सकती है, इसमें कोई शंका नहीं है।

विज्ञान एक आधुनिक व्यवस्थित ज्ञान का विषय है, जो मनुष्य जीवन का सुचारू सुविधामय तथा सुखमय बनाने के लिए आवश्यक है। जिसमें शोध अनुसंधान जैसे सूक्ष्म विषय होते हैं, जो विज्ञान विश्व की भिन्न-भिन्न भाषाओं में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, उस विज्ञान के विषय तथा सामग्री को हिन्दी में अनूदित कर भारतीय भाषाओं में उपलब्ध करना या प्रस्तुत करना सुलभ कार्य नहीं है। केवल यह कार्य हिन्दी भाषा मात्र कर सकती है, क्योंकि भारतीय हिन्दी को जितनी मात्रा में समझ सकते हैं, उतना अन्य भाषा को समझने में असमर्थ है।

अनुवाद प्रक्रिया द्वारा एक भाषा में निहित ज्ञान को दूसरी भाषा में प्रवाहित कर सकते हैं। यह अनुवाद कार्य केन्द्रीय हिन्दी अनुवाद साहित्य अकादमी दिल्ली तथा कर्नाटक में कर्नाटक साहित्य अकादमी बेंगलूर इनके द्वारा यह अनुवाद कार्य निश्चित दिशा में सुचारू ढंग से प्रचुर मात्रा में कार्य रत है। इस दिशा में क्रियाशील विद्वानों को इन अकादमियों द्वारा पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया जा रहा है। साथ में समय- समय पर संगोष्ठियाँ तथा कार्यशालाएँ आयोजित कर अनुवाद साहित्य पर चर्चा तथा उसके गुण-दोषों पर विचार-विमर्श किया जा रहा है।

हिन्दी भाषा अन्य भाषाओं की तुलना में सरल, मधुर तथा वैज्ञानिक भी है। विज्ञान साहित्य का अधिक भाग हिन्दी में अनूदित हो चुका है। अनुवाद कार्य अति तीव्र गति से अग्रसर है। जिसे भारतीय आसानी से समझ सकता है। विश्व का विज्ञान - साहित्य अधिकतर अंग्रेजी में उपलब्ध है। प्रत्येक भारतीय अंग्रेजी समझने में असमर्थ है। अतः उसका हिन्दी अनुवाद आवश्यक है। अनूदित साहित्य से प्रत्येक भारतीय विज्ञान युग से परिचित होगा और उसका लाभ उठाने में समर्थ होगा। यह कार्य केवल हिन्दी भाषा कर सकती है। अतः हिन्दी विज्ञान की वाहिनी बनने में कोई शंका नहीं है।

हाल ही में कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड़, हिन्दी विभाग तथा कर्नाटक अनुवाद साहित्य अकादमी के आश्रय में द्वि-दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। विषय था 'हिन्दी साहित्य का कन्नड़ में अनुवाद तथा कन्नड़ साहित्य का हिन्दी में अनुवाद' कई विद्वान अपने-अपने प्रपत्र पढ़े, खूब चर्चा हुई, जिसका ब्यौरा समाचार पत्रों में भी आया।

विज्ञान के विषय को लेकर अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद के लिए अनेक वैज्ञानिक अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश हैं। जिससे विज्ञान विषयक शब्द अंग्रेजी से हिन्दी में अनूदित मिलते हैं और अनुवाद प्रक्रिया में मदद मिलती है। अनुवाद प्रक्रिया हेतु केन्द्र तथा राज्य सरकार दोनों हर वर्ष बृहत् धनराशि व्यय करती है, जिसके बलबूते केन्द्रीय साहित्य अकादमी दिल्ली तथा कर्नाटक साहित्य अकादमी बेंगलूर कार्य तत्पर है, जिससे वैज्ञानिक उनति या प्रगति हो। राहुल सांकृत्यायन जैसे विद्वान रसायनशास्त्र जैसे कठिन विज्ञान विषय का हिन्दी में कई वर्ष पूर्व ही अनुवाद किया है। डॉ. तिप्पेस्वामी, डॉ. तेजस्वी कट्टिमनी जी ने भी आज-कल अनुवाद क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य कर खूब नाम कमा चुके हैं।

इस प्रकार हिन्दी भाषा विज्ञान का सशक्त माध्यम बनने में कोई संदेह नहीं, क्योंकि हिन्दी भाषा को ऐसी योग्यता तथा समर्थता प्राप्त है। हिन्दी भाषा में प्रत्येक विषय पर अनेक पर्याय शब्द भी प्राप्त हैं। हिन्दी का शब्द सागर विशाल ही नहीं वह असीम है। हिन्दी की देवनागरी लिपि विज्ञान विषय को सही उच्चारण के साथ सही अर्थ में प्रस्तुत करने में वैज्ञानिक दृष्टि से समर्थ है। आज हिन्दी भाषा केवल प्रान्तों में ही सीमित न रहकर वह देश की सीमा को भी तोड़ कर विदेशों में फैल चुकी है, यहाँ तक की सारे संसार में छा गई है और अंग्रेजी से भी टक्कर ले रही है। हिन्दी भाषा का वैश्वीकरण हो रहा है। वह दिन दूर नहीं है कि भविष्य में हिन्दी ही विश्व की सबसे श्रेष्ठ और जनप्रिय भाषा तथा विश्व की सबसे सशक्त और जनप्रिय लिपि देवनागरी बनेगी। समस्त संसार हिन्दी को अपनायेगा, हिन्दी समस्त संसार का गले का हार बनेगी। अंत में इतना अवश्य कह सकते हैं कि हिन्दी संस्कृति की वाहिनी मात्र नहीं, बल्कि वह विज्ञान की वाहिनी भी है।

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