बाल कहानी: पापा के जूते | दिल को छू लेने वाली कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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An Emotional Story Heart Touching Story in Hindi Papa Ke Jute

बाल कहानी पापा के जूते

Short Heart Touching Story In Hindi Papa Ke Joote: आज की कहानी एक पिता और उसके बेटे की है, दिल को छू लेने वाली हृदयस्पर्शी कहानी पापा के जूते। डॉ. फहीम अहमद की बाल कहानी पापा के जूते हिंदी में पढ़िए। हिन्दी कहानी पापा के जूते, बाल कहानी पापा के जूते।

Heart Touching Short Children's Story in Hindi : Bal Kahani in Hindi

पापा के जूते

      "पापा, आपने अच्छी भली मोटरसाइकिल बेचकर यह पुरानी साइकिल खरीद ली। दोस्त मुझे चिढ़ाते हैं कि तुम्हारे पापा कितने कंजूस हैं।रवि कल मुझसे कह रहा था कि तुम्हारे पापा फटे, पुराने जूते क्यों पहनते हैं। नए जूते भी नही ले सकते। "दस साल के राहुल ने अपने पापा से लिपटते हुए कहा।

         पापा राहुल के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, "तुम्हे अपने दोस्तों की बातों पर बिलकुल भी ध्यान नहीं देना चाहिए।मेरे पास एक जोड़ी जूते और हैं। अब मैं वही जूते पहन कर काम पर जाऊंगा। छोड़ो यह सब।देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं।" पापा ने अपने थैले से एक पैकेट निकालकर राहुल को थमाया। राहुल बोला, "अरे वाह,समोसे। मैं तो दो खाऊंगा।" राहुल को खुश देखकर पापा की आंखें चमक उठीं।

          राहुल के पापा रोज़ सुबह साढ़े सात बजे काम पर जाते और शाम सात बजे तक लौटते थे। अगले दिन सुबह जब पापा काम पर जाने को निकले तो पापा को दूसरे जूतों में देख राहुल की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। जब पापा चले गए तो राहुल मम्मी से बोला, "मम्मी,पापा के पुराने जूते कहां हैं? अब उनका यहां क्या काम? लाओ, मुझे दो। मैं कूड़ाघर में फेंक आता हूं।" मम्मी जूते ढूंढने लगीं। राहुल ने भी पूरा घर छान मारा पर जूते नही मिले।राहुल सोचने लगा कि जूते आखिर कहां गए। अब पापा आएं तभी पता चलेगा कि जूते कहां हैं।

       शाम होते ही राहुल पापा का रास्ता देखने लगा।पापा देर रात लौटे तब तक राहुल सो गया था।अगली सुबह पापा जल्दी काम पर चले गए।राहुल जब सोकर उठा तो उसने मम्मी से पूछा कि पापा के जूतों का कुछ पता चला आपको। मम्मी ने जानकारी न होने की बात बताई तो राहुल को लगा कि मम्मी जरूर कुछ छिपा रही हैं। इसी उधेड़बुन में राहुल नाश्ता करके घर से बाहर आया तो उसे पापा के दोस्त रेहान अंकल मिल गए।राहुल ने उन्हें सारी बात बताई तो वह बोले, "तुम्हारे पापा पहले एक फैक्ट्री में मुंशी की नौकरी करते थे। लेकिन कोरोना महामारी के कारण फैक्ट्री बंद हो गई।तुम्हारे पापा ने काम ढूंढने की बहुत कोशिश की लेकिन नौकरी नही मिली।पैसों की दिक्कत के चलते उन्हें अपनी मोटर साइकिल बेचनी पड़ी।ताकि परिवार के खर्चे पूरे कर सकें।"

          रेहान अंकल की बात सुनकर राहुल को बहुत दुःख हुआ।पापा ने परिवार के लिए इतनी मुसीबत झेली पर उनके चेहरे पर आज तक शिकन नहीं देखी।राहुल की सारी गलतफहमी दूर गई थी। लेकिन अभी भी एक सवाल उसके दिल को बेचैन कर रहा था कि पापा के पुराने जूते आखिर कहां गए।रेहान अंकल ने बताया,"जब तुम्हारे पापा को मनमाफिक नौकरी नही मिली तो मजबूर होकर वह एक कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करने लगे।जहां वह काम कर रहे हैं वहां पत्थरों और ईंटों पर बार बार चलना पड़ता है इसलिए वे पुराने जूते उन्होंने अब वहीं रख छोड़े हैं। रोज़ काम की जगह पहुंच कर वे अपने वही पुराने जूते पहन लेते हैं ताकि नए जूते खराब न हों।"

        रेहान अंकल की बातें सुनकर राहुल की आंखें भर आईं।उसके दिल में पापा के लिए सम्मान और अभिमान का रंग खूब गहरा हो गया।

डॉ. फ़हीम अहमद
असिस्टेंट प्रोफेसर हिन्दी विभाग, महात्मा गांधी मेमोरियल पी जी कॉलेज, चौधरी सराय, संभल (उत्तर प्रदेश)
drfaheem807@gmail.com

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