महापंडित राहुल सांकृत्यायन : Mahapandit Rahul Sankrityayan

Dr. Mulla Adam Ali
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Mahapandit Rahul Sankrityayan

Mahapandit Rahul Sankrityayan

महापंडित राहुल सांकृत्यायन

महापंडित राहुल सांकृत्यायन की जन्म शताब्दी समारोह अप्रैल 1992 से 9 अप्रैल 1993 तक भारत में बड़े उत्साहपूर्वक समारोह आयोजन किए गए हैं। 9 अप्रैल 2023 को 130वीं जन्मदिवस मनाया गया। इस संदर्भ में राहुल सांकृत्यायन का संक्षिप्त परिचय इस लेख में प्रस्तुत किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश के पंदहा गाँव में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का जन्म 9 अप्रैल 1893 ई. में हुआ। और मृत्यु 14 अप्रैल 1963 ई. में हुई। राहुल सांकृत्यायन बाल्यकाल का नाम केदारनाथ पाण्डेय था। इनके पिता का नाम गोवर्धन पाण्डेय और माता का नाम कुलवंती था। वे चार भाई, एक बहन थे। राहुल सांकृत्यायन ही जेष्ठ थे। बाल्यावस्था में ही बहन का देहांत हो गया। बौद्ध होने के पूर्व राहुल सांकृत्यायन 'दामोदर स्वामी' के नाम से पुकारे जाते थे। 1930 में इन्होंने बौद्धधर्म ग्रहण किया, तब राहुल कहलाने लगे। राहुल नाम के आगे 'सांकृत्यायन' संबोधन इसलिए लगा कि पितृकुल सांकृतय गोत्रीय है।

राहुलजी का बाल्यजीवन बिहार में व्यतीत हुआ। नाना पण्डितराम शारण्याटकजी सेना में नौकरी कर चुके थे। वे नाना के मुख से सुनी हुई फौजी जीवन की साहस एवं धैर्य से परिपूर्ण कहानियाँ, शिकार के अद्भूत वृत्तान्त, देश के विभिन्न प्रदेशों का रोचक दर्पण अजंता - एलोरा की कहानियां, नदियों, झरनों एवं प्राकृतिक सौन्दर्य के दर्पण आदि ने राहुल सांकृत्यायन के आगामी जीवन की भूमिका तैयार कर दी। उस समय तीसरी कक्षा में पढ़ाई जानेवाली उर्दू पुस्तक में पढा हुआ 'नवाजिन्दा बाजिदा' का शेर 'सैरकर दुनिया की माफीन ज़िन्दगी फिर कहां ज़िन्दगी गर कुछ रहीसी नौजवानी फिर कहां, यह कविता की प्रक्रियाँ राहुल सांकृत्यायन को घुम्मकडी बनने को प्रेरित करने लगी। उन्होंने लंका, नेपाल, तिब्बत, लद्दाख, जापान, कोरिया, कंपूरिया, सोवियत भूमि, इग्लैण्ड, ईरान, चीन की यात्राएं की।

वे 1921 में राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेकर सत्याग्रही बने। जेल की यात्रा की। बक्तर जिला कांग्रेस के मंत्री बने। कम्युनिष्ट पार्टी के सदस्य बने। 1938 से 44 तक किसान मजदूरों के लिए आंदोलन, सत्याग्रह, भूख हड़ताल आदि राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय योगदान दिया।

राहुल सांकृत्यायन बहुभाषीविद और महापंडित थे। संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, जपानी, सिंहली, रूसी, अंग्रेज़ी, हिन्दी आदि विविध भाषाओं पर इन्हें अद्भुत अधिकार था । इतिहास, भूगोल, दर्शन, राजनीति, समाज शास्त्र, धर्म, साहित्य आदि विविध विषयों पर 150 से अधिक पांडित्य पूर्ण ग्रंथों की रचना करके इन्होंने हिन्दी भाषा तथा साहित्य की श्रीवृद्धि करने के साथ-साथ अपनी अपूर्व मेधा का भी परिचय दिया है।

"सिंहसेनापति" "और जय यौधेय" (उपन्यास) "वोल्गा से गंगा" (कहानी संग्रह) घुमक्कड शास्त्र तथा "एशिया के दुर्गम भूखंडों" (यात्रा साहित्य) पाँच भागों में निबंध "मेरी जीवन यात्रा" (आत्मकथा साहित्य) "दर्शन-दिग्दर्शन " (धर्म तथा दर्शन) 'मध्य एशिया इतिहास" (इतिहास), तिब्बती व्याकरण (व्याकरण) आदि राहुल की कतिपय उल्लेखनीय कृतियां प्रस्तुत कर लुप्तप्राय निधि का उद्धार किया है। जनताका राज्य मेहनतकश मजदूर और किसान यह सब उनकी रचनाओंके आधार बने हैं । लेख, निबंधों तथा वक्ताओंकी संख्या अध्ययन, विस्तृत जीवन अनुभव था। वर्तमान जीवन के अछूते प्रसंगों का भर्मस्पर्श उद्घाटन, असाधारण के स्थान पर साधारण को प्रमुखता दी है।

राहुल सांकृत्यायन का घुमक्कडी (यात्रा) दर्शन :

1) घुमक्कडी जीवन का सार है - उसमें प्राप्त अनुभव और प्रयोग दोनों हैं। मनुष्य अथवा मनुष्य की पीढ़ियों 'यात्रा' के फलस्वरूप अनुभव संचित करती हैं। राहुल के यात्रानुसार और यात्रानुभव ने उन्हें एक 'यात्रा दर्शन' प्रदान किया है। उन्होंने अनुभव किया था कि एक ही स्थान पर स्थिर होने से मनुष्य की दृष्टि सीमित हो जाती है। भ्रमण के फलस्वरूप उसे विशद जगत और जीवन का परिचय मिलता है। तथा उसमें 'वसुदेव कुटुम्बकम्' की भावना जागृत होती है।

2) राहुल सांकृत्यायन की धारणा है कि संसार में यदि कोई सनातन धर्म है तो वह 'घुमक्कडी' है। मानव जीवन का विकास ही घुमक्कडी पर आधारित है। आदमी नर-नारी यदि किसी नदी या तालाब के किनारे एक स्थान पर पड़े रहते, तो संसार की आज की प्रगति कभी देखने में न आती। बड़े-बड़े मतों के प्रवर्तक क्रांतिकारी महापुरुष इस धर्म के अनुयायी थे। शंकराचार्य, महात्मा बुद्ध, महावीर, गुरु नानक, स्वामी दयानन्द, प्रभु ईसा और मुहम्मद महान घुमक्कड 'घुमक्कडी' ने उन्हें महान बनाया। राहुल ने स्वयं अनुभव- स्त्रीय और प्रगति मूल इस यात्रा प्रेम 'घुमक्कडी' को जीवन पर्याप्त तक परम धर्म के रूप में ग्रहण किया। महापंडित राहुल सांकृत्यायन का जीवन दर्शन : थे।

राहुल सांकृत्यायन ने महावीर के समन्वयवादी तथा वृद्ध क्रांतिकारी दर्शन की सम्यक् स्थापना एवं पारस्परिक तुलना पर ध्यान अधिक नहीं दिया है। बौद्धमत की 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय'" भावना को आर्थिक पक्ष प्रदान करने का श्रेय राहुल सांकृत्यायन की व्यवस्था को है। उन्होंने अपनी जीवन पद्धति के समर्थन में चार्वाक दर्शन को भी इसी प्रकार - पुनर्व्यख्या की है। चार्वाक ईश्वर, परलोक अजर-अमर के दर्शन को निरोध कर वर्तमान जीवन ही में सुख शांति लाभ करने की प्रेरणा दी है। इसी जीवन दर्शन को राहुल सांकृत्यायन ने साहित्य में प्रतिपादित किया है। वे साम्यवादी विचार धारा के प्रबल समर्थक थे।

- जी. आर. नरसिम्हराव

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