महंगाई पर कविता : उफ! महँगाई | Mehangai Par Kavita | Inflation Hindi Poem

Dr. Mulla Adam Ali
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Mehangai Par Kavita in Hindi : Inflation Hindi Poem

Mehangai Par Kavita in Hindi

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महंगाई पर बाल कविता उफ! महँगाई : Mehangai Par Kavita - Inflation Poem in Hindi

उफ ! महँगाई


उफ! कैसी आई महँगाई।

पापा को मिलता जो वेतन

महँगाई में है नाकाफी।

इसीलिए सबकी जरूरतों

से होती है नाइंसाफी।

आसमान छूती फीसें हैं

कैसे अब हम करें पढ़ाई?

बजट बनाने में मम्मी को

आ जाता हर बार पसीना।

पैसे न हों पास तो लगता

है फिर लंबा बहुत महीना।

कब तक और करेंगे हम सब

महँगाई से हाथापाई।

महँगाई में नहीं करेंगे

गैरजरूरी हम फरमाइश।

जूते और नए कपड़ों की

हमको करनी नहीं नुमाइश।

हम बच्चों को भी प्यारी है

अपने घर की सदा भलाई।


- फहीम अहमद

असिस्टेंट प्रोफेसर हिन्दी, एमजीएम कॉलेज,

संभल, उत्तर प्रदेश

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