Poem on Independence Day in Hindi | स्वतंत्रता दिवस पर कविता | सीमा के इधर उधर

Dr. Mulla Adam Ali
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Independence Day Special Hindi Kavita

Poem on independence day in hindi

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सीमा के इधर उधर

दिन चार जिए मानव नश्वर

बल तृष्णा जब फूटे अंकुर 

कुछ खींच लकीरें हड़पे ये

जंगल पर्वत नदिया सागर


नफरत का सागर लहराए

छल बल का चोला पहनाए

दूजे की जमीं हड़पने को

मानव मानव को तड़पाए 


कुछ आतिश शोले दिखें उधर

कुछ आतिश गोले फटें इधर

जख्मी इंसां से बहे लहू

अक्सर सीमा के इधर उधर


सैलाब लहू जब इधर उधर

चीखों का मंज़र उधर इधर

इक हूक उठे हर इक दिल में 

आतिश शोले क्यों इधर उधर


क्या रंग अलग है रक्तों में 

क्या नमी अलग है अश्कों में 

आहों में है क्या अलग तपन

क्या दर्द अलग है जिस्मों में 


माँ के आँसू क्या अलग उधर

राखी विरहा क्या अलग इधर

दिल में उठते क्या दर्द अलग

बेवापन में क्या अलग असर


कुछ खोए से अरमान उधर

सोई सी कुछ है चाह इधर

हर तरफ समस्या एक तरह

अनबूझ पहेली देख जिधर


खाली आए थे हाथ अगर

ना ले जाना कुछ साथ अगर

इक प्रश्न उठे हर जन मन में 

अक्सर सीमा के इधर उधर

- अशोक श्रीवास्तव 'कुमुद'

राजरूपपुर, प्रयागराज (इलाहाबाद)

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