Shahanshah Alam : शहंशाह आलम की कविताएँ और जीवन परिचय

Dr. Mulla Adam Ali
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Shahanshah Alam Poetry in Hindi : Shahanaha Alam Biography

Shahanshah Alam Poetry in Hindi

शहंशाह आलम की कविताएँ : कविता कोश में आपके लिए प्रस्तुत है शहंशाह आलम की 5 कविताएँ "जो बचा रहे होंगे मेरे सपने", "रहना", "आवाजाही", "हँसना" "क्या मेरा कोई घर है" और शहंशाह आलम का व्यक्तित्व एवं कृतित्व। पढ़े और साझा करें।

Shahanshah Alam Ki Kavitayen : शहंशाह आलम की कविता "जो बचा रहे होंगे मेरे सपने"

1. जो बचा रहे होंगे मेरे सपने

कम हो रहा है नमक

जिस भी समुद्र का

उसे बचा रही है नट की स्त्री

अपने चेहरे के पसीने में

रस्सी पर कलाबाज़ी दिखाते


सूत्रधार भी कोई नया सूत्र 

पकड़ना चाहता है

बिना किसी भय के


जबकि भय सबको घेरता है


नीम का वह पेड़ गिराया गया

बनिए के इस भय की वजह से

कि पेड़ में भूत बसा करते हैं


साइकिल चलाना सीख रहा लड़का

हवा से बातें करता है डर को झटकारता

अपना कोई बातूनी दोस्त जानकर


सपने हमेशा घर की औरतें बचा लेती हैं


और जो बचा रहे होंगे मेरे सपने

वे ही पार कर रहे होंगे बारिश होती नदी को।

◆◆

Shahanshah Alam Poetry in Hindi: शहंशाह आलम की हिंदी कविता "रहना"

2. रहना

एक कवि कहीं भी रह सकता है

कोई राजा किसी कवि को 

नहीं रहने देना चाहे 

अपने शहर में

तब भी वह रह ही लेगा 

राजा के शहर में 

उसी के विरुद्ध धातु रचता हुआ

उसी के विरुद्ध धातु उगलता हुआ


कवि रह लेगा जीवंत बिलकुल

दर्ज़ी के धागे में

नाव के पाल में

लोहार के घन में


टूटे बेकार ट्रक के पहियों में से

निकल रहे कोंपल में

सड़ चुके पेड़ के दीमक में

ख़राब हो चुके अनाज के घुन में


कवि रह लेगा 

किसी घसियारिन के

घास काटनेवाले औज़ार में

बढ़ई के रंदे में

कुम्हार के चके में


कवि रह लेगा

भोर में

साँझ में

बारिश में

कोहरे में


रोटी में

भात में

दाल में

नमक में


कवि रह लेगा

बाघ की गुर्राहट में

हिरण के कुलाँच में


यह सच है

बिलकुल सच

कि एक राजा 

किसी भी देश के मानचित्र में

क़तई नहीं रह पाएगा 

किसी कवि की तरह।

◆◆

Poetry by Shahanshah Alam : शहंशाह आलम की कविता "आवाजाही"

3. आवाजाही

यहाँ पर खुल रही है

आवाजाही समय की


जैसे खुलते हैं पट

नींद के

घर के

आत्मनुभूति के

आकाश के

आतुर उत्कट आत्मीय


समय जो रहता है

कभी पहाड़ पर

कभी ढलान पर


कभी अनंत पर

आत्मविभोर हो-होकर


जबकि हम तो

ढल रहे होते हैं

झर रहे होते हैं


जबकि हम तो

मचल रहे होते हैं

अपने सुखों में

अपने दुखों में

शंका से समय को देखते।

◆◆

Shahanshah Alam Ki kavita: शहंशाह आलम की हिंदी कविता "हँसना"

4. हँसना

हँसने के लिए सबसे अच्छी जगह

ढूँढ़ रखी है मैंने आपकी ऊब से

आप ही को बचाने के लिए


आप हँसना लगभग भूल जो गए हैं


हँसने वाली वह जगह बिलकुल दृश्य में है

उस हँसने वाली लड़की के बेहद नज़दीक़ भी

जो हंसगति से चलती है पृथ्वी पर


मेरा यह हँकारा चाहें तो स्वीकार लें 

मेरा यह आमंत्रण चाहें तो अस्वीकार लें

अपने हँसने के विस्थापन को छोड़कर


यह सच है, उस हँसमुख लड़की का हँसना 

इन दिनों संभव है आपको ऊबा ही रहा हो

क्योंकि वह दिल्लगीबाज़ लड़की ठहरी

आप ऊब को ही अपनी हँसी बनाने वाले जन


ठट्ठा मारना तो जैसे आप भूल ही चुके हैं

ऊबे हुए यारों के बीच उठ-बैठकर


यह बात

किसी विनोद में

दिल्लगी या मज़ाक़ में 

नहीं लिखी जा रही यहाँ


राजनीति, इतिहास, भूगोल

सब यही बताता आया है

आपका आग्रह तक

कि अब आप ख़ुश रहना भूल चुके हैं


हँसना तो ख़ैर आपने सीखा ही नहीं उस लड़की से

या मेरे हँकारा या मेरे आमंत्रण से या हँसी-दिल्लगी से


हँसना जबकि मेरे लिए

और उस लड़की के लिए 

सहज रहा है किसी हँसोड़ के जैसा


तभी कह रहा हूँ आइये

कविता के इस एकांत में

वेगपूर्वक हर्षध्वनि निकालिए प्रसन्नचित्

जिसे आप भूल चुके हैं दिनों-महीनों से।

◆◆

Shahanshah Alam Ki Kavitayen : शहंशाह आलम की कविता " क्या मेरा कोई घर है"

5. क्या मेरा कोई घर है

क्या मेरा कोई घर है

या आपका या इसका-उसका


कोई घर कहाँ दिखाई देता है सच में घर जैसा

घर अब आखेटस्थल लगता है शिकार से भरा

जो जगह बची रह गई है वह क़त्लगाह लगती है


ज़्यादातर घर अब

जंगल का समाज बन रहा है

जंगल की सभा लग रही है


मेरा यह कहा कथन एक झूठ कथन लग रहा हो

तो लगने दीजिए, यह झूठ है, तब भी इसमें सच यही है

हर घर एक अरण्य, एक जंगल बन रहा है चतुराई से

जिस घर में यानी जिस अरण्य में, जिस जंगल में

हम एक नई पाठशाला बना रहे बाईसवीं सदी की


इस नई पाठशाला में मैं भी, आप भी

यह-वह भी एक नया पाठ

आरंभ कर रहे अपने-अपने बच्चों के लिए

विषय यही है कि :

हमारे अलावे बाक़ी बचे लोग

बेहद ख़तरनाक जानवर जैसे हैं

बाक़ी सब लोग हमारे शत्रु हैं

जिनसे बस घृणा की जा सकती है


अगर यह झूठ कथन है मेरा

आपका तो हमेशा सच कथन होता है

तब फिर मेरे बच्चे से किसी उस्ताद ने

ऐसा क्यों कहा कि तुम मलेच्छ लोग

हमारे भारत को छोड़कर चले क्यों नहीं जाते

किसी दूसरे मुल्क किसी दूसरी जगह


यह इक्कीसवीं नहीं

बाईसवीं सदी की तैयारी चल रही है

मेरे, आपके, इसके-उसके घर में

समय और हवा, सब मुनासिब-माकूल जो है

ऐसे घर के लिए

ऐसे अरण्य के लिए इन दिनों


सच जो बचा रह गया है

यही बचा रह गया है

इतना भर बचा रह गया है

आप ख़ुद को पढ़ा-लिखा, ख़ुद को जेंटलमैन जो कहते रहे हैं

मुझे गालियाँ देते रहे हैं, मेरे बच्चों को घृणा, मेरे देश को एक नई क़ैद


आप ने समझा क्या है, आप जो बड़े प्रगतिशील, वैज्ञानिक सोच वाले

कहे और सुने जाने का ढोंग रचते रहे हैं, जबकि आप हैं बेहद दकियानूस


आप जैसे धर्मात्मा की कृपा जिसे चाहिए, उसे अपनी कृपा ज़रूर दीजिए

लेकिन मेरे घर पर, मेरे देश पर कृपा इतनी भर कीजिए, इतना एहसान कीजिए

घर को घर रहने दीजिए और देश को देश आने वाली सदियों के लिए।

◆◆

Shahanshah Alam Biography in Hindi

Shahanshah Alam Biography in Hindi

शहंशाह आलम : व्यक्तित्व एवं कृतित्व

शहंशाह आलम

जन्म : 15 जुलाई, 1966, मुंगेर, बिहार

शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी), विद्यावाचस्पति (मानद)

प्रकाशन : 'गर दादी की कोई ख़बर आए', 'अभी शेष है पृथ्वी-राग', 'अच्छे दिनों में ऊँटनियों का कोरस', 'वितान', 'इस समय की पटकथा', 'थिरक रहा देह का पानी', ‘आग मुझमें कहाँ नहीं पाई जाती’, ‘ख़ानाबदोशी’, ‘मेरी बाँसुरी मेरी भाषा है’, ‘कल का मौसम बढ़िया होगा' कविता-संग्रह छपे हैं। न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन की ख़ास प्रस्तुति ‘समकाल की आवाज़’ सीरिज़ में चयनित कविताओं का प्रकाशन। 'कवि का आलोचक', ‘कविता की प्रार्थनासभा’, ‘कविता का धागा’ तीन आलोचना की किताबें प्रकाशित। ‘आकाश की सीढ़ी है बारिश’ बारिश विषयक कविताओं का संपादन। ‘बारिश की भाषा’ साझा कविता-संकलन का अतिथि संपादन। 'गर दादी की कोई ख़बर आए' कविता-संग्रह बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत। 'स्वर-एकादश' कविता-संकलन में कविताएँ संकलित। 'वितान' (कविता-संग्रह) पर पंजाबी विश्वविद्यालय की छात्रा जसलीन कौर द्वारा शोध-कार्य। दूरदर्शन और आकाशवाणी से कविताओं का नियमित प्रसारण। हिन्दी की सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित। बातचीत, आलेख, अनुवाद, लघुकथा, चित्रांकन, समीक्षा भी प्रकाशित। पटना दूरदर्शन के लिए आलोचक खगेंद्र ठाकुर, उपन्यासकार अब्दुस्समद, कथाकार शौकत हयात, साहित्यकार उद्भ्रांत, कवि प्रभात सरसिज, कवि मुकेश प्रत्यूष, कवि विमलेश त्रिपाठी आदि से बातचीत। उर्दू, मैथिली, बांग्ला, पंजाबी, असमिया, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं में कविताएँ अनूदित।

पुरस्कार/सम्मान : बिहार सरकार का राजभाषा विभाग, राष्ट्रभाषा परिषद पुरस्कार के अतिरिक्त ‘नई धारा रचना सम्मान’, 'कवि कन्हैया स्मृति सम्मान', ‘सव्यसाची सम्मान’, ‘हिंदी सेवी सम्मान’, ‘कोलकाता हिंदी मेला सम्मान’ सहित दर्जन भर से अधिक महत्वपूर्ण पुरस्कार/सम्मान मिले हैं।

संप्रति : बिहार विधान परिषद् के प्रकाशन विभाग में कार्यरत।

संपर्क : हुसैन कॉलोनी, नोहसा बाग़ीचा, नोहसा रोड, पूरब वाले पेट्रोल पाइप लेन के नज़दीक, फुलवारीशरीफ़, पटना-801505, बिहार।

मोबाइल : 09835417537, 9199518755

ई-मेल : shahanshahalam01@gmail.com

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