चलो बाजार चलो, चाँद के पास चलो - बी.एल. आच्छा

Dr. Mulla Adam Ali
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Chand Par Le Chalo : B. L. Achha

Chand Par Le Chalo

चलो बाजार चलो, चाँद के पास चलो

- बी.एल. आच्छा

     अभी चन्द्रयान उतरा ही नहीं था कि किसी चैनल पर पहली खबर सुनी। यही कि चन्द्रमा के भीतर कोयला है। पानी भी है। मुझे पहले ही खुटका था। सो पहली नजर में उभरे सारे सौन्दर्य बिम्ब हवा हो गये। अब तक चन्द्रमा का सौंदर्यशास्त्र कविता का बाज़ार बनता रहा। किसी जमाने में तो राज दरबारों के लिए उपमानों का ऑटोमेटिक पोस्ट आफिस। पर अब कहीं वर्ल्ड ट्रेड की दौड़ न बन जाए। बाज़ार की आँख सतह नहीं देखती। परतों के नीचे के खजाने को टटोलती है। 

        खुटका तो तब भी हुआ , जब माँ चाँद के काले हिस्से को चरखा चलाती बुढ़िया कहती थी।पर अक्ल में वो छलाँग कहाँ थी। इतना ही जानते थे की चरखा घर- घर पहुँच गया, तो अंग्रेजी मार्केट हिल गया। चरखा आजादी का प्रतीक और स्वदेशी का अर्थशास्त्र। बाद में तो प्रदर्शनीय मोन्यूमेन्ट बन गया। व्यंग्यकार ने इंस्पेक्टर मातादीन को चाँद पर पहुँचा कर थाना कायम करवा दिया।अभी तक चाँद को लेकर कितने गाने गिटार-सितार पर बजते रहे -'चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो।'पर सिनेमाई सौंदर्य-लोक अब विश्व के अर्थ- लोक में बदलकर चन्द्रमा को कोयले की नजर से घूरेगा!   

       अब जब सिनेमा का सौन्दर्य-लोक भी चार सौ से हजार करोड़ की बुकिंग- विंडो का मान-मीटर बन गया है, तो लगता है कि अर्थ के बिना सब व्यर्थ है। चाँद को बाजार बनाने की नीयत वालों से पूछो तो वे राजनीतिज्ञों की तरह सीधा- सट्ट जवाब देंगे-"तो राजनीति में साधु संत बनने आए हैं?" और कवियों को तो अर्थ के लाले पड़ते गये। चन्द्रमा के कल्पना- यान में भरमाया कवि चाँद को अधखाई रोटी की तरह घूरता रहा। अगरचे पारिश्रमिक मिल गया तो पूर्णमासी की पूरी रोटी। व्यंग्यकारों ने तो सड़क के गड्ढों से चन्द्रमा के काले धब्बों को तौल दिया। कुछ फिल्मी लहरिया नायक-नायिका थे, तो रमे रहे- "आधा है चन्द्रमा, रात आधी। रह न जाए तेरी-मेरी बात आधी।" ज्योतिषियों ने चन्द्रकुंडली से लोगों का जीवनमान बता दिया। अब कहीं चन्द्रमा खुद ही ज्योतिषियों को कुंडली दिखाने न आ जाए।

       अब तो मुझे चन्द्रमा पर बुढ़िया के चरखे के पार्ट टू- थ्री-फोर नजर आ रहे हैं। अब धरती के तकनीक- नायकों के सहारे पूँजी के निवेश-नायक चन्द्रमा पर जाएँगे। पहली बार चन्द्रमा पर नासा पहुँचा, तो प्लॉट बुकिंग और बाउन्ड्रीवाल पर बात कब्जे की बात चली। जरा तरक्की हुई तो चन्द्रमा के सौन्दर्य -बिम्बों से फिसलकर मिट्टी और चट्टान के परीक्षण तक गई। एलियन्स की अफवाहों के बीच पानी और हवा की पड़ताल हुई। आखिर धरती पर भी ये फंडे कम तो नहीं थे। तेल के कुँओं ने आपाधापी मचाई युद्धों में।अगरचे यह हवा लग जाए कि आदमी चन्द्रमा पर हजार साल जी सकेगा तो बड़ा उलटफेर हो जाएगा। 

    पालवाली नाव के बजाए चन्द्रयान के कमाऊ-गीत गाएँगे। दुनिया प्लेनेट- वीजा के लिए रातें जगाएँगी। मल्टीनेशनल ब्रह्मांडेशनल बनते जाएँगे। धरती के पूँजी- शिखर चाँद- बाज़ार की टोह लगाएँगे।तो अमेरिकी 'हिडन' जैसी उठाम-धड़ाम कवायदें भी फटके बिना नहीं रहेंगी।

        अब चन्द्रमा के काले दाग भी खनिज-खींचू बाजार बन जाएँगे।यों धरती को दस किलोमीटर छेदकर कुछ जीभें कमाई के लिए लपलपा रही हैं। अफगान युद्ध में भी नजरें लीथियम के भंडार पर गड़ी रहीं। यूरेनियम के बाजार तो तबले की संगत के साथ हारमोनियम पर राग जयजयवन्ती गा ही रहे हैं। पहाड़ों को चीरने और धरती को गोदने के तिजोरी-उत्सव ग्लोबल वार्मिंग के बावजूद आम हैं। 

       पर अब कविता के बिम्बों को छोड़िए, भावनाएँ भी स्वर्ण-रजत सिक्कों में ढल रही हैं। लगता है, चारुचन्द्र की चंचल किरणें पूँजी-शिखरों को चंचलाएगी।पर महाशक्तियों को अंदेशा ही रहेगा कि चंद्रमा पर इंडिया गुटनिरपेक्ष चुंबक न बन जाए।

- बी. एल. आच्छा

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