Hindi Diwas Special 2024 : राजभाषा हिंदी - Rajbhasha Hindi
राजभाषा हिंदी : हिंदी दिवस पर विशेष "राजभाषा हिंदी" पर आलेख, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस पर हिंदी भाषा के महत्व पर विशेष लेख "राजभाषा हिंदी", विश्व हिंदी दिवस और राष्ट्रीय हिंदी दिवस 14 सितंबर पर राजभाषा हिन्दी के महत्व पर बेहतरीन हिंदी आलेख "राष्ट्रभाषा हिन्दी", पढ़े और साझा करें।
राजभाषा हिंदी
भारत वर्ष 15 अगस्त, 1947 में स्वतंत्र हुआ और भारतीय संविधान ने 14 सितंबर, 1949 में हिंदी भाषा को 'राजभाषा' के रूप में स्वीकृत किया, क्योंकि भारत वर्ष के अधिकतम लोग हिंदी अच्छी तरह जानते हैं। हिंदी भाषा के गुण भी बहुत है।
भारत की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ की सांस्कृतिक और धार्मिक एकता है। यहाँ के यात्रा-स्थलों में देश के हर कोने-कोने से यात्री आते हैं और समान रूप से सम्मिलित होते हैं। यहाँ प्रांतीय विभिन्नता के दर्शन नहीं होते। इनका कार्य हिंदी भाषी पंडे और पुजारियों से ही चल जाता है। भारत के दक्षिण से लोग उत्तर में जाते हैं लेकिन उनमें भेद-भाव नहीं रहता। इस एकता मूल में सांस्कृतिक तथा धार्मिक भावना ही है। हिंदी भाषा सांस्कृतिक विरासत की प्रतीक है, इसी कारण से उसमें सांस्कृतिक और धार्मिक तत्व अधिक हैं। प्रशासनिक कार्यों में आसानी से हिंदी का प्रयोग कर सकते हैं। अतः हिंदी में ही राजभाषा बनने की सर्वाधिक क्षमता है।
अब हमारी सरकार ने इसे हर क्षेत्र में प्रचलित करने का प्रयास शुरू किया है। इसका विस्तृत प्रचार करना अब बहुत जरूरी है। इसके प्रचार के लिए हर कार्य क्षेत्र में जैसे दफ्तरों आदि में हिंदी में काम-काज की शुरुआत हुई है। आगे चलकर हिंदी भाषा अपना सही स्थान पायेगी और अपने देश की एकता को बनाये रखेगी। हिंदी भाषा को 'राजभाषा' पद तभी शोभा देगा जब सारे भारतवासी अपनी हिंदी भाषा के महत्व को जानकर इसे पूरी तरह अपनाएंगे।
भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। हमारे संविधान के चार प्रमुख स्तंभ हैं। प्रजातंत्र, 'धर्म निरपेक्षता, समता एवं सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय । इन तत्वों का जनता से गहरा संबंध है। इन्हें सार्थक तब ही बनाया जा सकता है जब सरकारी काम- काज जनता की भाषा अर्थात हिंदी में हो। काफी समय सभी काम-काज अंग्रेजी में करने और बचपन से ही अंग्रेजी भाषा को श्रेष्ठ मानने की मानसिकता की वजह से हिंदी में काम कम हो रहा है। हमारे इन्हीं व्यवहारों ने हिंदी की जटिलता को और अधिक बढ़ा दिया है। सरकार द्वारा कर्मचारियों की इस झिझक को दूर करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं। कार्यालयों में हिंदी की परीक्षाओं के उत्तीर्ण होने पर नकद पुरस्कार दिया जाता है। हिंदी सप्ताह तथा हिंदी दिवस मनाकर लोगों में अपनी राष्ट्रभाषा का प्रसार किया जाता है। इस दौरान कई तरह की प्रतियोगिताएँ आयोजित कर सफल कर्मचारियों को पुरस्कृत किया जाता है। यह अच्छी शुरुआत है फिर भी हिंदी भाषा में काम-काज अभी 25 प्रतिशत ही है।
अंग्रेजी शब्दों का हमारी भाषा में इतना प्रभाव है कि एक वाक्य में दो-तीन शब्द अंग्रेजी के अवश्य होते हैं। इसके रहते हुए हिंदी का प्रयोग तब तक नहीं हो पाएगा जब तक वह सरल, सुबाध एवं स्वाभाविक न हो। इस समय हम सरकारी काम-काज में अनुवाद का सहारा ले रहे है। अंग्रेजी साहित्य का धीरे-धीरे हिंदी अनुवाद किया जा रहा है. परंतु सरलता व स्वाभाविकता के अभाव की वजह से अनुवाद की भाषा जटिल होती जा रही है। यदि सभी स्तर पर अनुवाद के स्थान पर हिंदी में सोचना व अपने विचारों को प्रकट करना आरंभ किया जाए तो इससे कुछ हद तक समस्या सुलझ सकती है। ऐसा करने से वाक्य-रचना सीधी-सादी होगी।
हिंदी भाषा की जटिलता को दूर करने के लिए आवश्यक कि सरकारी काम- काज की हिंदी भाषा में सरलता तथा स्वाभाविकता लाई जाए। कठिन शब्दावली की जगह आसान व जल्दी से समझ में आनेवाली शब्दावली का प्रयोग किया जाए। केवल वर्ष में एक बार 'हिंदी-दिवस', 'हिंदी सप्ताह' व 'हिंदी पखवाड़ा' मनाकर हिंदी का प्रचार व प्रसार नहीं हो सकता। हिंदी में काम करना आसान है बस शुरू करना हमारे हाथ में है। यह जरूरी नहीं कि आप केवल बड़े पत्राचार आदि हिंदी में करें जो कि कठिन है।
सभी कार्यालयों में अधिकांश कर्मचारियों को हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त है, किंतु सभी के सहयोग के बिना वे इसका प्रयोग नहीं करते। कार्यालयों के वरिष्ठ अधिकारियों को चाहिए कि जो कर्मचारी हिंदी में काम करना चाहते हैं उन्हें पूर्ण सहयोग दें तथा अन्य कर्मचारियों को इसके लिए प्रोत्साहित करें।
सरकारी काम-काज की भाषा कृत्रिम, जटिल और बोझिल नहीं होनी चाहिए। हिंदी राजभाषा को लोकप्रिय बनाने और सरकारी काम-काज में इसे सहज, सरल और बोधगम्य बनाने की दृष्टि से ही भारत सरकार के राजभाषा विभाग ने 17 मार्च, 1976 को आदेश जारी किए कि सरकारी कार्यालयों में बोल-चाल की भाषा का प्रयोग किया जाए और यदि अंग्रेजी शब्दों के सही पर्याय नहीं मिल पा रहे हो तो उन अंग्रेजी शब्दों को ही देवनागरी में लिख दिया जाए।
आज का युग सूचना एवं प्रौद्योगिकी का युग है। जिसमें कम्प्यूटर का सर्वत्र बोल- बाला है। दिन-प्रतिदिन नए-नए तकनीकी शब्द प्रचलित होते जा रहे हैं। इसलिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमें इन शब्दों के कृत्रिम पर्याय गढ़ने की आवश्यकता नहीं है। किसी भी भाषा से जो शब्द आ रहे हैं, हमें उन्हें ग्रहण करना चाहिए। इससे भाषा सुदृढ़ होती है और इसकी जीवंतता व प्रवाह में वृद्धि होती है। भारत सरकार के तकनीकी और वैज्ञानिक शब्दावली आयोग ने जिन शब्दों के पर्याय तैयार कर लिए हैं, आवश्यकता पड़ने पर उनका प्रयोग किया जाये। इससे भाषा में एकरूपता बनी रहेगी। शिक्षण संस्थाओं और विश्वविद्यालयों की पाठ्य पुस्तकों तथा प्रेस माध्यमों में इनका प्रयोग किया जाना चाहिए।
राजभाषा हिंदी के संबंध में सबसे खेदजनक स्थिति यह है कि हम इसका प्रयोग करने में कतराते हैं। इस संबंध में हमारी हीनता का प्रमुख कारण है हमारी मानसिक दासता और किसी न किसी बहाने अंग्रेजी को बनाये रखना। आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। आज कंप्यूटर का युग है, किंतु खेद की बात यह है कि उपलब्ध इलेक्ट्रानिक यांत्रिक सुविधा का प्रयोग ही नहीं हो पा रहा है। जब प्रयोग ही नहीं होगा तो आधुनिक यांत्रिक सुविधाओं का विकास ही कैसे हो सकेगा। हमें आज हिंदी में उपलब्ध नवीनतम यांत्रिक सुविधाओं का प्रयोग बढ़ाने में रुचि लेनी चाहिए। आवश्यकता केवल इच्छा-शक्ति की है।
- श्री एन. वेंकट रमण
ये भी पढ़ें; राष्ट्रीय हिंदी दिवस : जनसंचार माध्यम और हिंदी