Manikarnika Ghat : मानुष प्रेम भय‍उ बैकुंठी - स्तुति राय

Dr. Mulla Adam Ali
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Manikarnika Ghat : Manush Prem Bhaeu Baikunthi

Manush Prem Bhaeu Baikunthi

Manush Pem Bhaeu Baikunthi : Manikarnika Ghat - Manikarnika Mahashamshan Ghat - वाराणसी के गंगानदी पर स्थित मणिकर्णिका घाट प्रसिद्ध है। इस घाट की विशेषता है कि यहां पर लगातार हिन्दू अन्त्येष्टि होती रहती है घाट पर चिता की आग बुझाने का नाम ही नहीं लेती लगातार जलती रहती है। मणिकर्णिका घाट पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के शोध छात्रा स्तुति राय का लेख पढ़िए और इस घाट के बारे में रोचक जानकारी प्राप्त कीजिए। 

"मानुष प्रेम भय‍उ बैकुंठी"

"मणिकर्णिका" ये सिर्फ एक शब्द नहीं है और नाही सिर्फ एक स्थान जहां मृत देह को पूरी तरह अपदस्थ कर दिया जाता है। ये वो स्थान है जहां मृत्यु की भयावहता नहीं सौंदर्य की सुरभिता रहतीं हैं। महादेव जहां स्वयं विराजमान हो। कलकल करती मां जान्हवी ऐसा लगता है सीधे महादेव की जटा से निकल रही हों। कहते "मणिकर्णिका" का नाम "मणिकर्णिका" इसलिए पड़ा क्योंकि यहां माता सती के कान की मणि गिरी थी, तो जहां माता सती और महादेव हो और पंचतत्व से मिलकर बना यह शरीर अपने तत्वों में वापस बदल रहा हों, जिसे महादेव की गोद में जलना और भागीरथी में मिल जाना है। मुझे लगता है कि यह दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह है जो जलती देह को दिखाकर जीवन के सारतत्व को समझा देती है। रामचरितमानस में तुलसीदास ने सती रूप को अंहकार स्वरूप माना है और महादेव को भक्त तो जहां अहंकार का नाश हो और आत्मा स्वयं को सच्चिदानन्द ब्रम्ह का भक्त मान ले वो "मणिकर्णिका" है। "मणिकर्णिका" अर्थात भय, मोह , पीड़ा, चिंता, आसक्ति, अर्थानुरक्ति, कामाक्षी इन सबसे मुक्ति है "मणिकर्णिका"। अगर हम अपनी दृष्टि को व्यापक करें तो मणि अर्थात आत्मा और कर्णिका अर्थात देह, तो जहां आत्मा को देह से मुक्ति मिलें और वो महादेव के गणों में शामिल हो जाए वो "मणिकर्णिका" है। और अंत में जो मैंने महसूस किया है नाव पर बैठकर इस घाट को देखना, सच बताऊं तो कभी मुझे भय नहीं लगा लेकिन अपनों को याद कर मैंने जानबूझकर अपने अंदर भय पैदा किया लेकिन वास्तविकता यही है कि वहां लगातार बजते ढोल जो मृत्यु का उत्सव मना रहे हैं, रंगीन दिखते कपड़े, एक नदी जहां सदियों से किसी ना किसी सभ्यता का जन्म हुआ हैं और अग्नि जिसे दुनिया की सबसे बड़ी खोज माना गया है, जिससे सभ्यता का विकास माना गया है काष्ठ जो प्राणवायु देता है ये सब मिलकर जीवन जीने की कला सिखा रहें,जीयो, जीवन को उत्सव की तरह , रहो तो नदी की तरह जिसमें इतना सामर्थ्य हो कि जन्म दे सके सभ्यता को, रंगीनी जीवन की जिन्दादिली है, बस यही तो चाहिए एक जीवन जीने के लिए। तो दोस्तों अगर कभी भी जीवन नीरस लगें तो बिना ज्यादा सोचें एक बार आ जाइए "मणिकर्णिका" यकीन मानिए उसके बाद सांस ख़त्म होने के बाद "मणिकर्णिका" पहुंचने तक जीवन कभी नीरस नहीं लगेगा। और हां "मणिकर्णिका" कोई श्मशान नहीं है यह वो स्थान है जहां जीवन उत्सव सिखाती है। यहां जीवन का अंत नहीं आरंभ होता है।

- स्तुति राय
शोधार्थी
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी

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