वृन्दावनलाल वर्मा के उपन्यासों में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

Dr. Mulla Adam Ali
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Historical perspective in the novels of Vrindavan Lal Verma

Historical perspective in the novels of Vrindavan Lal Verma

वृन्दावनलाल वर्मा के उपन्यासों में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

इतिहास, सामाजिक विज्ञान का महत्वूपर्ण विषय है। साहित्य की विधाओं में व्यवहृत होते समय इसके साथ कल्पना का मिश्रण होता है इसलिए ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नाटक एवं ऐतिहासिक काव्य की प्रस्तुति में अंतर होता है। इतिहास किसी चरित्र का आदर्शात्मक अनुकरण प्रस्तुत नहीं करता, उपरोक्त विधाओं में इनकी प्रस्तुति सफलतापूर्वक होती है यही कारण है कि "चंद्रगुप्त" "पृथ्वीराज रासो" एवं "झाँसी की रानी" इस दृष्टि से सफल कृतियाँ मानी जाती हैं। यह चर्चा का विषय हो सकता है कि साहित्य की किस विधा में इतिहास की प्रस्तुति वास्तविक एवं कलात्मक होती है।

हिन्दी के उपन्यासकारों में वृंदावनलाल वर्मा जी का विशेष योगदान है। इन्होंने सामाजिक एवं ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना की। 'प्रेम की भेंट', 'प्रत्यागत', 'लगन', 'सोना', कुंडली चक्र, शबनम, हृदय की हिलोर, 'कभी न कभी' इनके सामाजिक उपन्यास हैं। इनके ऐतिहासिक उपन्यासों 1. गढ़ कुण्डार 1929, 2. विराटा की पद्मिनी 1933, 3. मुसाहिबजू 1946, 4. झाँसी की रानी 1946, 5. कचनार 1948, 6. मृगनयनी 1950, 7. टूटे काँटे 1954, 8. अहिल्याबाई 1954, 9. माधवजी सिंधिया 1956 और 'भुवनविक्रम' 1956 में राष्ट्रीयता, राजनीतिक स्वतंत्रता वीरता, आदर्श प्रियता, कर्त्तव्य निष्ठा, व्यक्तिगत त्याग की भावनाओं का प्रसार मिलता है। उनके जीवन की दो घटनाओं ने उन्हें ऐतिहासिक उपन्यास लिखने की प्रेरणा दी।

"उस समय मेरी आयु लगभग 11-12 वर्ष की थी, जब मैं झाँसी के जिले ललितपुर स्कूल की पाँचवी कक्षा में पढ़ता था। अंग्रेजी में लिखा मार्सडन कृत भारत वर्ष का इतिहास पढ़ाया जाता था। उसमें पढ़ा कि भारत 'गर्ममुल्क' है इसलिए यहाँ के निवासी कमजोर हैं और इसी कारण वे बाहर से आये ठण्डे देशों के लोगों के मुकाबले हारते चले गये । आगे कभी नहीं हारेंगे, क्यों कि ठण्डे देश वाले आ गये हैं- सदा बने रहेंगे। मेरा रोम-2 जल उठा। पुस्तक का वह सफ़ा नोच डाला। अभिभावक ने मेरी पिटाई की। जब उन्हें कारण मालूम हुआ तब पछताये और बोले- अंग्रेज लेखक ने गलत लिखा है। मैंने उसी दिन गांठ बांधी कि खूब पढूंगा और सही बातों का पता लगाकर कुछ लिखूंगा भी।"¹

दूसरी घटना, जब वे नवीं कक्षा के विद्यार्थी थे और अपने पंजाबी मित्र के यहाँ भोजन पर आमंत्रित थे। वहाँ उसने बुंदेलखण्ड और निवासियों की बड़ी निन्दा की। 'छ्यसाल वीरसिंह के पहले चंदेले-आल्हा उदल भी यहीं हुए थे। यहीं लक्ष्मीबाई हुईं। भारत के ऐसे प्रदेश की निंदा जहां मेरे मातापिता ने जन्म लिया और जहां की मेरी मिट्टी है...... प्रण किया कि इतिहास और परंपरा के पीछे पड़कर कुछ लिखूंगा।'²

यह बड़ी आश्चर्यजनक एवं खेद की बात है कि भारत वर्ष में इतिहास लिखने का नितांत अभाव रहा है। फ़ारसी और अंग्रेज़ी में ही प्रारंभिक इतिहास लिखे गये। कहने की आवश्यकता नहीं कि वे इतिहास भारत के लिए कितने निष्पक्ष होंगे?

वृंदावनलाल वर्मा के ऐतिहासिक उपन्यासें का मूल्यांकन करते समय कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।

1. इनके अधिकांश उपन्यास नायिका प्रधान हैं।

2. इनके उपन्यासो में रोमांस तत्व अधिक है।

विशेष बात यह है कि इनके ऐतिहासकि उपन्यासों में कल्पना की मात्रा अधिक नहीं है। उन्होंने किंवदंतियों एवं परंपराओं का भी प्रयोग किया है।

गढ़कुण्डार : इसके अधिकांश पात्र एवं घटनाएं ऐतिहासिक है। दृष्टिकोण की विषमता ही लेखक की मौलिकता है। हुरमतसिंह का राजा होना, सोहनलाल की सहायता प्राप्त करने कुण्डार आना तो ऐतिहासिक है। खंगार, बुंदेलों की चालों और उनकी मुसलमानों की मित्रता अपनी हार का कारण मानते हैं दूसरी ओर बुंदेले खंगारों के नैतिक पतन को। वर्माजी मध्यमार्ग ग्रहण कर दोनों को इसका दोषी ठहराते हैं। ऐतिहासिक तथ्यों और कल्पनाओं की समन्वित भूमि पर इस उपन्यास का सृजन किया गया है। इसमें 14 वीं शती की राजनैतिक उथल-पुथल में खंगारों का पतन एवं बुंदेलों का उत्थान दर्शाया गया है। रोमांस-तत्व का अधिक प्रयोग है।

विराटा की पद्मिनी : "उपन्यास कथित घटनाएं सत्यमूलक होने पर भी अनेक कालों से उठाकर एक ही समय की लड़ी में गूंथ दी गई हैं" (परिचय, वृंदावनलाल वर्मा पृ. 2) इसमें इतिहास, किंवदंतियाँ और कल्पनाओं का अद्भुत समिम्श्रण है। पद्मिनी, नायकसिंह ऐतिहासिक चरित्र है जिनका उल्लेख सरकारी कार्यालयों के वृत्तों (Record) में है। लेखक ने इसकी कहानी परगना मौठ, जिला झाँसी के निवासी श्री नन्दू पुरोहित से सुनी थी।

झाँसी की रानी : यह पूर्णता ऐतिहासिक रचना है। स्वयं वर्माजी ने लिखा है "मैंने निश्चय किया कि उपन्यास लिखूंगा ऐसा जो इतिहास के रंग रेशे से सम्मत हो और उसके संदर्भ में हो। इतिहास के कंकाल में रक्त और मांस का संचार करने के लिए मुझे उपन्यास ही अच्छा साधन प्रतीत हुआ।" (परिचय पृ. 4) वर्माजी अपनी जन्मभूमि बुंदेलखण्ड से अधिक प्रभावित थे। पारसनीक की पुस्तक "रानी लक्ष्मीबाई का जीवन चरित्र" में जब यह देखा कि रानी का शौर्य विवशता के कारण था और वह अंग्रेज़ की ओर से प्रबंध करती रही, पुनः दुखी होकर उसने युद्ध किया तो उनके हृदय को आघात पहुंचा। रानी के संबंध में इतिहासकारों की इस भांति को उन्होंने ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर दूर किया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि रानी का शौर्य स्वाभाविक था। कुछ काल अंग्रेजों को धोखा देने के लिए वह झाँसी का प्रबंध अपने हाथ में रखे रही जिससे अंग्रेज़ उन पर अविश्वास न करें और उन्हें युद्ध की तैयारी के लिए अवसर मिल जाय । इन बातों की पुष्टि

1. अली बहादुर का रोज़नामचा

2. ग़दर के ज़माने के तुराबअली दारोगा के बयान एवं विष्णुराव गोड़से के 'माझा प्रवास' के आँखों देखा हाल से होती है। रानी स्वराज और स्वतंत्रता के लिए लड़ी यह तथ्य उपर्युक्त सभी कथनों से प्रमाणित होती है। अंग्रेज़ों का अत्याचार, राज्य विस्तार की नीति भेद पैदा करने का प्रयास, गंगाधर का संगीत प्रेम आदि घटनाओं का उल्लेख प्रायः सभी इतिहास पुस्तकों में मिलता है। सभी पात्र लक्ष्मीबाई मोतीबाई, मोरोपंत, बाजीराव पेशवा, तात्याटोपे, खुदाबख्श, जवाहर सिंह आदि एंतिहासिक पात्र हैं। वर्माजी ने राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक विवरणों में इतिहास की रक्षा की है।

'कचनार मेरी अमर कंटक यात्रा का प्रतिबिंब है। वर्णित सब घटनाएं सच्ची हैं। केवल समय और स्थान का फेर है। उदाहरण के लिए डरू की घटना जो उसके भाई के वध से संबंध रखती है, धमोनी की नहीं, बल्कि उबोरा ग्राम से संबंध रखती है, बाकी सब घटनाएं ऐतिहासिक हैं' (परिचय, लेखक पृ 5)

मृगनयनी में दांपत्य जीवन को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया गया। इसकी प्रेरणा उनकी पाठिका द्वारा हुई। उसी के अनुरोध पर मृगनयनी और मानसिंह तोमर के ऐतिहासिक रूमानी कथानक पर उपन्यास की रचना की गयी। इसमें तत्कालीन भारत की राजनैतिक दशा को प्रस्तुत किया गया है। राजस्थान, मालवा और दक्षिण के बहमनी साम्राज्य के विघटन का उल्लेख मिलता है।

'अहिल्याबाई वर्माजी का ऐतिहासिक दृष्टि से सशक्त उपन्यास है। इसमें कल्पना, किंवंदतियों एवं परंपरा का शायद ही सहारा लिया गया। मल्हारराव होलकर के पुत्र खण्डेराव की पत्नी अहिल्याबाई महान ऐतिहासिक पात्र है। लेखक ने इस उपन्यास के अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों का अध्ययन किया जिनमें प्रमुख

1. ग्रांटडफ़ : हिस्ट्री आफ़ मराठास'

2. जी.एस. सरदेसाई : न्यू हिस्ट्री आफ मराठास

3. यदुनाथ सरकार : फाल आफ मोगल एम्पायर

4. इतिहास साची बातमी पत्र

5. होल्कर शाही चा इतिहास

6. उदयभान कृत अहिल्याबाई

उपरोक्त ग्रंथों से अपने आशय की सामग्री ग्रहण करना और उन तथ्यों को अपनी इच्छानुसार प्रयोग करना ही ऐतिहासिक उपन्यासकार का महत्वपूर्ण लक्षण है जिससे वृंदावन लाल वर्मा जी विभूषित हैं।

संदर्भ;

1. वृंदावनलाल वर्मा "उपन्यास कैसे लिखा जाय ?" साहित्य संदेश, जुलाई-अगस्त अंक 1956

2. वही ""

- सुरेशदत्त अवस्थी

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