बालशौरि रेड्डी : व्यक्तित्व और कृतित्व

Dr. Mulla Adam Ali
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Balshauri Reddy : Vyaktitva evam Krititva

Balshauri Reddy : Vyaktitva evam Krititva

बालशौरि रेड्डी : व्यक्तित्व और कृतित्व

दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार-प्रसार में वरिष्ठ लेखक, हिंदी एवं तेलुगु के यशस्वी साहित्यकार, चंदामामा के पूर्व संपादक, प्रसिद्ध बाल साहित्य सर्जक, अनन्य हिंदी साहित्य साधक डॉ. बालशौरि रेड्डी का जन्म 1 जुलाई 1928 को आंध्रप्रदेश के कडपा जिले के गोल्ल्ल गूडूर के एक मध्यवित्तीय कृषक परिवार में हुआ। गंगिरेड्डी और ओबुलम्मा का इकलौता संतान है बालशौरि रेड्डी। चार वर्ष की उम्र में ही रेड्डी जी की माँ गुजर गयी थी। माता न होने के कारण रेड्डी जी का बचपन अत्यन्त दुःख पूर्ण था।

डॉ. रेड्डी की शिक्षा पाँचवी कक्षा तक उनके गाँव गोल्ल्ल गूडूर में हुई। फिर उन्होंने मैट्रिक तक नेल्लूर के सेंट जोसेफ हाई स्कूल में पढ़ा।

डॉ. बालशौरि रेड्डी जी ने हिंदी शिक्षा सबसे पहले आंध्र प्रदेश के कड़पा नगर के एक विद्यालय के चपरासी से प्राप्त की। चपरासी होने पर भी वे हिंदी के बड़े पण्डित थे। सन् 1946 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के रजत जयंती का उद्घाटन करने के लिए महात्मा गाँधी जी मद्रास आये थे। रेड्डी जी भी स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय स्वयं सेवक होने के कारण उस समारोह में भाग लिये थे। गाँधी जी के भाषण से प्रेरित होकर रेड्डी जी हिंदी सीखने लगे। ठाकुर प्रसाद सिंह, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा आदि की प्रेरणा ने भी उन्हें हिन्दी सीखने के लिए प्रोत्साहित किया।

डॉ. रेड्डी जी का विवाह 14 जून 1951 ई. में सुभद्रा देवी के साथ हुआ, जो सुशिक्षित तथा संपन्न है। सुभद्रा जी अत्यंत सुंदर तथा मिलन स्वभाववाली नारी हैं। वे तेलुगु और हिंदी के ज्ञाता भी हैं। वे साहित्य सृजन में रेड्डी जी को प्रोत्साहन देती रहती थी।

बालशौरि रेड्डी मद्रास के हिंदी सभा के प्रशिक्षण महाविद्यालय में प्राध्यापक तथा प्राचार्य रहे। वे सन् 1966 से 1989 तक तेईस वर्षों तक 'चंदामामा' नामक हिंदी बाल मासिक पत्रिका के संपादक थे।

व्यक्तित्व :

दक्षिण भारत के प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यकार तेलुगु भाषी, दक्षिण भारत व उत्तर भारत के बीच एक साहित्यिक सेतु डॉ. बालशौरि रेड्डी की रचनाएँ उनके व्यक्तित्व का उत्तम प्रमाण हैं। वे अत्यंत स्पष्टतावादी एवं संवेदनशील व्यक्ति हैं। वे मिलनसार, हँसमुख तथा परिश्रमी भी हैं। वे अत्यंत सहज एवं सरल व्यक्ति हैं। हिंदी सेवा के लिए कई पुरस्कार प्राप्त होने पर भी उन्होंने विनम्रता की उपेक्षा नहीं की। रेड्डीजी के चरित्र के बारे में विद्वान ईश्वर करूण की राय - "निश्छल और बच्चों जैसा निर्दोष चेहरा प्रफुल्लित व्यवहार और सदैव मुस्कराने वाले डॉ. रेड्डी पहली ही दृष्टि में मिलने वाले को प्रभावित कर देते हैं" डॉ. दामोदर खड़से के अनुसार - "डॉ. बालशौरि रेड्डी का चुंबकीय व्यक्तित्व ऐसा ही है कि मिलने वाले व्यक्ति फिर-फिर मिलने की चाह लेकर उन तक पहुँचते हैं और व्यक्तित्व में एक विशिष्ट विकास हासिल करते है"

बालशौरि रेड्डी जी आत्मीयता-निश्छलता और ममता से ओतप्रोत व्यक्तित्व के धनी हैं। ये सब उनके यश के कारण बन गये। नये लेखकों को लेखन कार्य में प्रोत्साहन देने के लिए रेड्डी जी सबसे आगे हैं। बाल मनोविज्ञान को सामने रखकर लिखने वालों में रेड्डी जी का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। 'चंदामामा' बाल पत्रिका के सहारे उन्होंने बच्चों को भारत की संस्कृति और परंपरा से परिचय कराया। उन में अच्छे मानवीय गुणों के विकास करने में रेड्डी जी ने ज्यादा ध्यान दिया है।

कृतित्व :

साहित्य जगत में बालशौरि रेड्डी का योगदान सराहनीय है। रेड्डी ज ने उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध, समीक्षा आलोचना आदि साहित्यिक विधाओं के माध्यम से दक्षिण भारत की संस्कृति को हिंदी पाठकों तक पहुँचाने का काम किया है। मौलिख लेखन के साथ-साथ अनुवादों के माध्यम से भी उन्होंने दक्षिण और उत्तर के भेद को मिटाने का प्रयास किया है।

डॉ. बालशौरि रेड्डी ने मुख्यतः तेरह उपन्यासों की रचना की है। 'शबरी', 'जिंदगी की राह', 'यहबस्ती : ये लोग', 'भग्न सीमाएँ', 'बैरिस्टर', 'प्रकाश और परछाई', 'स्वप्न और सत्य', 'धरती मेरी माँ', 'लकुमा', 'प्रोफेसर', 'वीरकेसरी', 'दावानल' और 'कालचक्र'।

'शबरी' सन् 1959 में रचित डॉ. बालशौरि रेड्डी का प्रथम उपन्यास है। यह भगवान श्री रामचंद्र और शबर जाति के नायक की पुत्री शबरी के जीवन पर आधारित एक पौराणिक उपन्यास है। इसके कथानक का आधार रामायण और रामचरित मानस हैं। 1962 में रचित 'जिंदगी की राह' रेड्डी जी का सामाजिक उपन्यास है। इस में आंध्र प्रदेश के विजयवाडा नगर के एक परिवार की कथा है। मध्यवर्गीय हिन्दू समाज की वैवाहिक समस्या इसका मुख्य विषय है। "यह बस्ती : ये लोग" सन् 1963 में रचित एक सामाजिक उपन्यास के साथ-साथ एक आँचलिक भी है। यह सबसे पहले "जीवन सूत्रम" नाम से तेलुगु भाषा में प्रकाशित हुआ था। यह एक छोटा सा उपन्यास है। इस में वर्णित महानगर मद्रास है। महानगरीय का व्यंग्यात्मक चित्रण इस उपन्यास की विशेषता है। हैदराबाद वातावरण से संबंधित उपन्यास "भग्न सीमाएँ" 1965 में लिखा है। इस उपन्यास का मुख्य पात्र डॉ. राजेंद्र है।

बेमेल विवाह, बहुविवाह आदि सामाजिक कुरीतियों को दूर करना 1967 में डॉ. रेड्डी लिखित बैरिस्टर उपन्यास का मुख्य उद्देश्य हैं। "प्रकाश और परछाई" सन् 1968 में रचित डॉ. बालशौरि रेड्डी का पहला ऐतिहासिक उपन्यास है। यह एक लघु उपन्यास है। यह आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध सम्राट कृष्णदेव राय और उनके महामंत्री तिम्मरुसु की कथा है। शोषण, आधुनिक जीवन की विसंगतियाँ, संयुक्त परिवार की आस्था आदि सन् 1968 में रचित "स्वप्न और सत्य" उपन्यास की प्रमुख समस्याएँ हैं। "वसुधैव कुटुम्बकम" की अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक चेतना रेड्डी जी 1969 में रचित "धरती मेरी माँ” उपन्यास की विशेषता है। बाह्य अनेकता में आंतरिक एकता के साथ कर्तव्य और प्रेम में मैत्री भी इस उपन्यास में हम देख सकते हैं।

सन् 1969 में लिखित 'लकुमा' रेड्डी जी का दूसरा ऐतिहासिक उपन्यास है। इस में आंध्र प्रदेश के कॉडवीडु राज्य के रेड्डी साम्राज्य के सम्राट कुमारगिरि रेड्डी और नर्तकी लकुमा के बीच की प्रणय गाथा है। पाश्चात्य जीवन के मोह में पडे हुए लोगों की मनोदशा, बदलते गुरु-शिष्य संबंध आदि अत्यन्त मार्मिक ढंग से रेड्डी जी ने 1971 में रचित 'प्रोफेसर' में चित्रित किया है। भूमण्डलीकरण, उपभोक्तावाद, बाजारवाद आदि के कारण मानवीय संबंधों में कई परिवर्तन आ गये हैं। उनका जीवन्त चित्रण 'प्रोफेसर' में मिलता है।

डॉ. रेड्डी जी ने आंध्रप्रदेश के विजयनगर साम्राज्य, तमिलनाडु के तंजौर एवं मदुरै राज्यों के राजाओं के बीच हुए युद्धो को अत्यन्त कलात्मक ढंग से 'वीर केसरी' नामक उपन्यास में वर्णन किया है। इतिहास और कल्पना का सुन्दर समन्वय हम इसमें देख सकते हैं। सन् 1979 में रचित 'दावानल' उपन्यास आंध्र प्रदेश में घटित पलनाडु युद्ध पर आधारित है। पाठकों को आध्र प्रदेश के इतिहास का परिचय देने में लेखक ने ज्यादा ध्यान दिया है। 2002 में रचित 'कालचक्र' उपन्यास में विज्ञान और तकनीकी के विकास के कारण आधुनिक मानव से सभी आदर्श और मूल्य नष्ट हो गये हैं। इन विषयों को हम 'कालचक्र' में देख सकते हैं।

डॉ. बालशौरि रेड्डी हिंदी के एक सिद्धहस्त कहानीकार भी हैं। उनका कहानी संग्रह है 'बैसाखी'। इस में कुछ सत्रह कहानियाँ संकलित हैं। वे हैं- 'बैसाखी', 'शान्ति के पथ पर', 'पापीचिरायु', 'भूख हड़ताल', 'अज्ञान की ओर', 'ज्ञानोदय', 'अतृप्त कामना', 'टूटती सीमाएँ', 'अनुत्तरित प्रश्न', 'बी इण्डियन-बाई इण्डिन', 'प्रकाश की ओर', 'चाँदी का जूता', 'दिल का काँटा', 'पछतावा', 'स्वप्न और सत्य', 'जब आँखे खुली', और 'घर और गृहस्थी'।

रेड्डी जी का 'बैसाखी' एक सामाजिक कहानी है, यह पति द्वारा तिरस्कृत होने पर भी उसको सही रास्ते पर लाने के लिए परिश्रम करती हुई एक पत्नी की कहानी है। 'भूख हड़ताल' आत्मकथात्मक शैली में रचित एक सामाजिक कहानी है। 'ज्ञानोदय' के द्वारा रेड्डी जी ने समाज में व्याप्त अनाचार को दूर करने का प्रयास किया है। 'अतृप्त कामना' द्वारा उन्होंने गरीब लोगों के सुखी बनने की अतृप्त कामना के बारे में कहा है। 'पापी चिरायु' और 'प्रकाश की ओर' में लेखक ने जमीन्दारों द्वारा गरीब किसानों को लूटना, सरकार से कर्ज लेकर उसका दुरुपयोग करना, पीने के पानी की कमी आदि समस्याओं पर विचार किया है। 'चाँदी का जूता' समाज के सम्मुख महान बनने वाले लोगों के खोखलेपन को व्यक्त करने वाली कहानी है। 'दिल का काँटा' बहन द्वारा किये गये विश्वासघात का चित्रण करने वाली कहानी है। 'पछतावा' मानव मन का विश्लेषण करने वाली कहानी है। 'जब आँखे खुली', 'घर और गृहस्थी' शहर और गाँव के जीवन का मार्मिक चित्रण देख सकते हैं।

डॉ. रेड्डी जी की कहानियों में विभिन्न सामाजिक समस्याएँ हम देख सकते हैं। दाम्पत्य विघटन, गरीबी, अकेलापन, किसान और नारियों की समस्याएँ आदि इनमें प्रमुख हैं। यहाँ इन समस्याओं को दूर करके जनता को नया जीवन जीने के लिए प्रेरणा देना लेखक का उद्देश्य है।

डॉ. बालशौरि रेड्डी एक प्रसिद्ध बाल साहित्यकार भी हैं। बच्चों के लिए कई रचनाएँ लिखी हैं। उनकी प्रसिद्ध बालोपयोगी रचनाएँ - 'तेलुगु की लोक कथाएँ', 'आन्ध्र के महापुरुष', 'सत्य की खोज', 'तेनाली राम के नये लतीफे', 'बुद्ध से बुद्धिमान', 'न्याय की कहानियाँ', 'आदर्श जीवनियाँ', 'आमुक्त माल्यदा', 'आंध्र की लोक कथाएँ', 'दक्षिण की लोक कथाएँ' और 'तेनाली राम की कहानियाँ'।

'तेलुगु की लोक कथाएँ' लोक कथाओं का संग्रह है। इसके द्वारा आंध्र प्रदेश के रहन-सहन संस्कृति, सभ्यता आदि के बारे में संपूर्ण भारतीयों को परिचित कराना रेड्डी जी का उद्देश्य है। 'सत्य की खोज' बाल एकांकियों का संग्रह है। 'आंध्र के महापुरुष' निबन्धों का संग्रह है। यह आंध्र वाङ्मय के विकास के लिए प्रयत्नशील महान पुरुषों के जीवन पर आधारित है।

बच्चों को हँसाने तथा ध्यान दिलाने के लिए रेड्डी जी ने तेनाली राम को एक पात्र के रूप में चुना। इसके फलस्वरूप 'तेनाली राम के लतीफे' तेनाली राम के नये लतीफे और तेनाली राम की कहानियाँ नामक बालोपयोगी हास्य कहानी संग्रहों का निर्माण किया गया। 'बुद्ध से बुद्धिमान' तेरह हास्य कहानियों का संग्रह है। इसमें दक्षिण के प्रसिद्ध विद्वान परमानंद और उनके शिष्यों के बुद्धपन की कहानियाँ मिलती हैं। 'न्याय की कहनानियाँ' बालोपयोगी कहानी संग्रह है। 'आदर्श जीवनियाँ भी एक बालोपयोगी रचना है। इसमें महान पुरुषों की जीनियों को ऐसा प्रस्तुत किया गया है कि बच्चे उन्हें पढ़कर देश के सच्चे नागरिक बन जाएँ। 'आमुक्त माल्यदा' रेड्डी जी का एक बाल उपन्यास है। 'आन्ध्र की लोक कथाएँ' और 'दक्षिण की लोक कथाएँ' आन्ध्र प्रदेश तथा भारत के अन्य दक्षिण प्रदेशों में प्रचलित प्रसिद्ध लोक कथाओं के संग्रह हैं।

डॉ. बालशौरि रेड्डी एक सफल समीक्षक भी हैं। उनकी समीक्षात्मक रचनाएँ मुख्यतः दक्षिण भारत विशेषकर आन्ध्र प्रदेश की संस्कृति एवं साहित्य से संबन्धित हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं- 'पंचामृत', 'आंध्रभारती', 'तेलुगु साहित्य का इतिहास', तमिलनाडु, कर्नाटक, वीरेश लिंगम पंतुलु, तेलुगु साहित्य के निर्माता और तेलुगु वाङ्मय विविध विधाएँ।

आंध्र भारती बीस शोधपरक निबंधों का संग्रह है। तेलुगु साहित्य का इतिहास समीक्षात्मक निबन्धों का संग्रह है। तमिलनाडु और कर्नाटक में रेड्डी जी ने तमिलनाडु और कर्नाटक की जनता के जीवन, इतिहास, संस्कृति आदि का वर्णन किया है। 'वीरेशलिंगम पंतुलु' आन्ध्र प्रदेश के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं राजनीतिज्ञ वीरेशलिंगम पंतुलु की जीवनी है। तेलुगु साहित्य के निर्माता और तेलुगु वाङ्मय विविध विधाएँ रेड्डी के समीक्षात्मक निबंध संग्रह हैं।

डॉ. बालशौरि रेड्डी एक प्रसिद्ध अनुवादक भी हैं। उनका कार्यक्षेत्र हिंदी और तेलुगु साहित्य है। विभिन्न देश, भाषा, जाति, आचार-विचार आदि को जोड़ने का एक मात्र माध्यम अनुवाद है। रेड्डी जी की अनूदित रचनाओं के मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-तेलुगु से हिंदी में अनुदित रचनाएँ और हिंदी से तेलुगु में अनूदित रचनाएँ।

रेड्डी जी ने तेलुगु से हिंदी में कई उपन्यास, कहानी, नाटक और एकांकी का अनुवाद किया है। तेलुगु से हिंदी में ग्यारह उपन्यासों का अनुवाद किया है। वे हैं- रुद्रमा देवी, अल्पजीवी, राजशेखर चरित्र, कवियत्री, नारायण भट्ट, नियति के पुतले, चन्द्रगुप्त का स्वप्न, कौसल्या, कौमुदी पुण्य भूमि, आँखें खोलो और मैं मरना नहीं चहता। रेड्डी जी ने पाँच तेलुगु कहानी संग्रहों को हिंदी में अनुवाद किया है। वे हैं-अटके आँसू, तेलुगु की उत्कृष्ट कहानियाँ, तेलुगु की बीस कहानियाँ, तेलुगु की श्रेष्ठ कहानियाँ और स्वर्ण कमल। तेलुगु नाटक और एकांकी संग्रहों का अनुवाद भी रेड्डी जी ने किया है। वे हैं- मनोरमा, विनोद तरंगिनी, तेलुगु नाटक, नई धरती और शुभ निमंत्रण।'

रेड्डी ने हिंदी से तेलुगु में भी अनेक रचनाओं को अनूदित किया हैं। वे हैं- तेरवेनुका, रामायण कालमलो भारतीय संस्कृति आदि बेश्या अनूदित काव्य संग्रह है। किशोर साहू के परदे के पीछे उपन्यास का तेलुगु अनुवाद है तेरवेनुका। रामायण कालमत्रो भारतीय संस्कृति (समीक्षात्मक रचना) डॉ. शान्त कुमार नानूराम व्यास कृत 'रामायणकालीन भारतीय संस्कृति का अनुवाद है।'

डॉ. रेड्डी जी एक सफल संपादक भी हैं। वे सन् 1966 से 1989 तक चेन्नई से प्रकाशित चंदामामा बाल पत्रिका के हिंदी संस्करण के संपादक थे। बच्चों को हँसाना तथा ज्ञान बढ़ाना इसके उद्देश्य है। इसके बाद डॉ. रेड्डी जी कुछ समय तक चेन्नई से प्रकाशित 'दक्षिण भारत' हिंदी प्रचार समाचार, चमकता सितारा आदि के संपादक भी थे।

बालशौरि रेड्डी जी कई उपाधियों से विभूषित हुए हैं। उनमें कला व संस्कृति संस्था, मथुरा से साहित्य वारिधि, पुष्पगिरि पीठाध्यक्ष श्री शंकराचार्य से वाङ्मय रत्नाकर, आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी से हिंदी रत्न, साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्य वाचस्पति आदि प्रमुख हैं। उनकी समग्र साहित्य सेवा को ध्यान में रखकर सन् 1988 में वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, तिरुपति ने उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि देकर सम्मानित किया है।

निष्कर्ष : हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रचार एवं विकास में कई दक्षिण भारतीयों ने अपना विशिष्ट योगदान देने वालों में डॉ. बाललशौरि रेड्डी प्रमुख हैं। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं। एक लेखक के रूप में उनकी प्रतिभा कभी भी साहित्य की किसी एक विधा विशेष में सीमित नहीं रही। वे एक सफल उपन्यासकार, कहानीकार, बाल साहित्यकार, आलोचक, अनुवादक एवं संपादक भी हैं।

बहुभाषा ज्ञान, पांडित्य, साहित्य-सर्जन तथा सर्वोपरि उनके स्नेहिल स्वभाव और विनम्रता ने रेड्डी जी को हिंदी क्षेत्र का अजातशत्रु बनाया है। दक्षिण भारत और उत्तर भारत की सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता के मिलन बिन्दु रेड्डी जी का देहांत 15 सितंबर 2015 में हुआ। फिर भी हिंदी और तेलुगु साहित्य नीलाकाश में रेड्डी जी का साहित्य ध्रुवतारा के भाँति चमकता रहेगा।

संदर्भ सूची :

1. बालशौरि रेड्डी और उनका साहित्य : एक अनुशीलन- डॉ. जी. मल्लेशम,

2. ईश्वर करुण, "डॉ. बालशौरि रेड्डी का जीवन्त व्यक्तित्व व जीवन कृतित्व" केरल ज्योति,

3. डॉ. शशिप्रभा जैन "बालशौरि रेड्डी के उपन्यासों में वस्तु एवं पात्र परिकल्पना,

4. शैल सक्सेना, “बालशौरि रेड्डी" युग स्पंदन,

5. डॉ. एस. तंकमणि अम्मा, "भारतीय भाषाओं के समन्वयक साहित्यकार डॉ. बालशौरि रेड्डी" केरल ज्योति, आदि पुस्तक पत्र पत्रिकाएँ।

- चेन्नकेशव रेड्डी

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