Makhanlal Chaturvedi ke Kavya Me Rashtriya Chetana
माखनलाल चतुर्वेदी : राष्ट्रीय चिंतन (1889-1968)
आज भारतीय राष्ट्रीयता संकट स्थिति में है। आज के समाज में स्वार्थ और संकीर्ण व संकुचित भावना के कारण देश की एकता और अखंडता खतरे में पड़ी है।
राष्ट्र की अवधारणा नागरिकों में व बुद्धिजीवियों में ठीक तरह न होने के कारण राष्ट्र की कसौटी पर किसी समस्या को घिसकर देखना, सोचना और आचरण करना नहीं कर पा रहे है। अपने वैयक्ति सुख व समृद्ध जीवन के लिए देश को लूटना ही नहीं देश के सरहदों को भी संसार के अन्य देशों को बेचने के लिए-अधिकारी, राजनैतिक नेता और साधारण जनता तैयार हो रही है।
ऐसी स्थिति में स्वाधीनता संग्राम के समय 'भारतीय आत्मा' माखनलाल चतुर्वेदी ने राष्ट्र और राष्ट्रीयता पर लेख लिखकर जनता को दिशा-निर्देश किया जो आज भी प्रासंगिक है।
माखनलाल चतुर्वेदी ने राष्ट्र और राष्ट्रीयता के बारे में साधारण जनता को भी जल्दी समझ में आने के लिए प्रभावात्मक ढंग से बताया है। उन्होंने कहा कि जिस भूखंड के लिए सिर सौंपकर बलिदान किया करते हैं उसे राष्ट्र कहते हैं। अर्थात राष्ट्र की रक्षा के लिए बलिदान देना संस्कृति के गहने अर्थात इसका इतिहास, राष्ट्रपुरुषों के प्रति श्रद्धा, माता पुत्र का सम्बन्ध रखने वाली जनता दुर्गा के रुप में बैठना है तभी दुर्गा के समान वह जाति देश द्रोहियों का नाश कर सकती है। उन्होंने कहा "राष्ट्र- जमीन, झोंपड़ियों, नदियों, टीलों टेकड़ियों खदानों, गुफाओं, खेतो-खलिहानों आदि से बना वह सिंहासन है जिस पर संस्कृति के गहने पहनकर और साहित्य का राजदण्ड धारणकर अस्तित्व का मुकुट संवारे एक जाति की आत्मा रुपी दुर्गा अधिष्ठित होती है।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली: भाग 3, निबन्ध : 2: 50 नोट बुक के पन्नों से पृष्ट : 122)
माखनलाल चतुर्वेदी अंतर्राष्ट्रीयता के बारे में कहते हैं कि बचपन में जिस प्रकार बच्चों की परवरिश होती है। उसी प्रकार राष्ट्र की भी परवरिश करना चाहिए।
"जिस राष्ट्र का स्वर एक होता है, उसका स्वभाव भी अपनी उच्चतम सतह पर एक होता है। और उसके बचपन को झूले-झूलाकर जवानी के कंधो पर बोझ रखकर बुढापे की रक्षा करके और इस प्रकार उसमें रहने वाले मनुष्यों में भेद की रेखाएँ न खींचकर एक में मिला देते हैं।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग 3, निबन्ध : 2, राष्ट्र-एक-बाग-पृष्ठ: 39)
बलिदान ही राष्ट्रीयता है। इसका सुन्दर और प्रेरणात्मक उदाहरण पठान सैनिक का देकर माखनलाल चतुर्वेदी कहते हैं कि पठान सरहद की रक्षा करने में जान देता है। सरहद की समस्या की भाँति अंतरिक समस्यायें भी हैं उन्हें उस देश के नागरिकों को सुलझाने के लिए भी जान देने का संकेत करते हैं। माखनलाल चतुर्वेदी पठानों की राष्ट्रीयता की प्रशंसा करते हैं जो व्यक्तिगत जीवन को राष्ट्रीय जीवन के लिए समर्पित कर बलिदान करते हैं। अपने शरीर से सर कट जाने पर ही उनके हाथ का हथियार उतर जाता है।
"पठान लड़ाका होता है। उसका सिर उतार कर ही उसके हाथ का हथियार उतारा जा सकता है।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग 3, निबन्ध :2, पृष्ठ : 280)
उनकी दृष्टि में सरहद का सच्चा सिपाही पठान होता है उनकी वीरता और समर्पण भावना एवं इमानदारी की प्रशंसा करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी इस प्रकार कहते हैं।
"पठान एक मानव-प्राण को अपनी बंदूक पर चढ़े कारतूस से अधिक कीमत का नहीं मानता। किन्तु पठान ईमानदार होता है, निर्भीक होता है, ईश्वर का भक्त होता है, वचन का सच्चा होता है, प्राण-दान के लिए प्रस्तुत होता है, और शताब्दियों से वह सरहद पर खड़े- खड़े भारत की रक्षा करता आया है।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग 3, निबन्ध :2, पृष्ठ : 280, 281)
उसी प्रकार हर क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारी, कार्यकर्ता, कर्मचारी पठान की तरह समर्पण भावना से काम करे तो वह राष्ट्रीयता के पुजारी कहलाता है।
आज समाज में पाखंडी पंडितों की, भट्टाचार्यों की, निस्सत्व क्षत्रियों की कमी नहीं है। वे सब समाज का सर्वनाश कर रहे हैं। आज कर्मवीरों की आवश्यकता है।
नर रत्न :
माखनलाल चतुर्वेदी कहते हैं कि बाह्य शारीरिक सुन्दरता को देखकर मान्यता देना शूद्रों का लक्षण है। आज समाज में प्रत्येक व्यक्ति वैयक्तिक स्वार्थ के लिए काम करते हुए समाज का शोषण करते हुये अपने को कर्म वीर कहाता है। समाज हित में काम करने वाला ही कर्म- वीर है।
चर्म सेवी नहीं कर्मवीर को माखनलाल चतुर्वेदी ने नररत्न कहा है। चर्मसेवा करने वालों को उन्होंने शूद्र कहा है।
"पाखण्डी पण्डितों की हमें परवाह नहीं और भट्टाचार्य का हमें भय है। निस्सत्व क्षत्रियों की जो आज भी बन्धु विरोधी होकर समाज का सर्वनाश कर रहे हो, हमें आवश्यकता नहीं है। दुराचारी तथा पाखण्डी, स्वार्थी एवं मूर्ख महाजनों से भी हमारा कार्य नहीं चल सकता। सेवा धर्म के तत्वों की मूल चर्मसेवी शूद्रों के भी हम न रहने के दिन देखने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। हमें केवल कर्मवीर चाहिए, वह चाहे किसी भी जाति का हो। यदि उसमें सुधार-विचारों का महासागर लहरा रहा है तो अवश्य ही वह आदर्श नररत्न है।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग 2, निबन्ध :1, सुघार-विचार-घर्षण चाहिएः पृष्ठ : 20)
भारत माता की गोदी में जिन्होंने खेलकर माता की शान बढ़ायी है उनके सम्मान में भी उनके समान देश हित में काम करने से तुम महान बन सकते हो, उदाहरण के लिए राणा प्रताप, शिवाजी, बन्दा बैरागी, आजाद, भगतसिंह, चाफिवर ब्रदर्स, तिलक, गाँधी आदि ने इसी भारत माता की गोदी में बैठकर अपना सर्वस्व देश के हित में दे दिया।
"बन्धुओं। अपने को नीच मानकर, भारत रत्नगर्भ को उचित वस्तुओं के पाने का अनाधिकारी न समझो। जो जलवायु उच्चों ने सेवन किया है, वही उच्च बनने वालों ने किया है। जिस भारत माता की गोदी में तुम खेले हो उसी में वे भी खेले हैं यदि तुम में गुणों तथा विद्याओं का अभाव है, तो वह केवल तद्विषयों के चिरवियोग तथा अनश्यास से है। अभ्यास करो अवश्य ही विजयी होओगे। तुम गुणी, विद्वान, कला-कुशल सब कुछ हो ओगे।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग 2, निबन्ध :1, 7 सुधार-विचार-घर्षण चाहिएः पृष्ठ : 20)
आज देश में देश की सम्पत्ति को लूट कर एक ओर स्विस बैंक में जमा कर रहे हैं देशद्रोही। दूसरी ओर यहाँ की जनता भूख से दाने दाने के लिए तड़प रही है। इसलिए माखनलाल चतुर्वेदी सम्पत्ति को जन कल्याण हेतु उपयोग करने के लिए कहते हैं। समाज कल्याण में समाज सुधार में धन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
धन की परिभाषा :
आज सम्पत्ति को कुछ लोग अपनी मुठ्ठी में बान्धकर जनता का शोषण कर रहे हैं उसकी आलोचना करते हुये माखनलाल चतुर्वेदी कहते हैं।
“यह ठीक है, कि सम्पत्ति फेंकने के हेतु नहीं है। उसे लुटाओ मत, परन्तु दान का सुसमय पाकर छिपाओ भी मत।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग 2, निबन्ध : 1, 9 समाज-समीक्षा प्रवासी भाई पृष्ठ: 23)
माखनलाल चतुर्वेदी जी दान देना गुरुकुल के बालकों से सीखने की सलाह देते है। गुरुकुल के बालक दानी के प्रतीक है।
"यदि तुम दरिद्र हो, तो दान देना गुरुकुल के बालकों से सीखो, जिन्होंने अपना दूध और घी छोडकर शीघ्र ही सहस्रो रुपये एकत्र कर लिये।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग: 2, निबन्ध : 1, 9 समाज-समीक्षा-प्रवासी भाई पृष्ठ: 23)
साधारण आदमी और धनाढ्य को दानी बनने का तरीका : माखनलाल चतुर्वेदी जी-सुझाव देते हैं कि साधारण आदमी और धनाढ्य कैसे दानी बने।
“यदि तुम साधारण दशा के व्यक्ति हो तो अपनी कम-से-कम दो दिन की आय, मरते हुए बन्धुओं के हेतु, अफ्रीका भेजना स्वीकार करो और यदि तुम धनाढ्य हो तो यही समय है कि जब तुम समाज की सच्ची सेवा कर सकते हो। संकीर्णता न कर, कर्मवीर गाँधी का योग्य रीति से पूजन करो।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग: 2, निबन्ध :1, 9 समाज-समीक्षा-प्रवासी भाई पृष्ठ: 23, 24)
आज कल दान की परिभाषा संकुचित बन गयी है। करोड़ रुपयों को लूटना, सौ रुपयों का दान देना दान समझा जा रहा है। धर्म युक्त संपादन से दान देना जनता भूल गयी है।
दानी के प्रकार
माखनलाल चतुर्वेदी जी के अनुसार समाज में 5 प्रकार के दानी होते हैं।
1) तीसरे दर्जे का दानी
2) दूसरी कक्षा का दानी
3) प्रथम कक्षा का दानी
4) दानवीर
5) समाज का भूषण - मनुष्यों में देवता
"वही तीसरे दर्जे का दानी है, जो धन का दानकर समाज की सेवा करता है। उसे दूसरी कक्षा का दानी समझो, जो समाज के हेतु अपना मन दान कर चुका हो। उसे प्रथम कक्षा का दानी कहना चाहिए, जो निस्संकोच अपना तन दान में दे रहा हो। परन्तु उसे दानवीर कहना चाहिए, जो अपना तन, मन और धन दान में दे चुका हो। वह समाज का भूषण है अथवा वह मनुष्यों में देवता ही है।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग: 2, निबन्ध :1, 9 समाज-समीक्षा-प्रवासी भाई पृष्ठ: 24)
धर्म :
धर्म का अर्थ आज मजहब से किया जा रहा है जो गलत है, धर्म का अनुवाद नहीं किया जाता है। धर्म का अर्थ है धर्मों धारयते प्रजा : धर्म प्रजा को धारण करता है।
समाज का विकास, व्यक्ति का विकास धर्मावलंबन से होता है। धर्म इनसान को जीने का तरीका सिखाता है। धर्म ईश्वर प्राप्ति का सूचक है तो वह सदाचरण है। माखनलाल चतुर्वेदी ने धर्म की परिभाषा इस प्रकार दी है।
"यदि हमारा सबसे पहला आज कोई ईश्वर- प्राप्ति सूचक धर्म है तो वह सदाचरण है, जिसकी नींव ब्रह्मचर्य है।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग: 2, निबन्ध :1, 1 धर्म तत्व-इश्वर का नाम पृष्ठ: 13)
ब्रह्मचर्य का उद्देश्य है देश के लिए ही समर्पित जीवन जीना । धर्मावलंबन से अच्छेगुण प्राप्त होता है। बुरे गुण हो तो त्यागने की प्रेरणा मिलना चाहिए।
माखनलाल चतुर्वेदी जी के अनुसार धर्म से प्राप्त होने वाले गुण इस प्रकार है।
"एक समय वह था जब हमें नियमितता, स्वास्थ्य सुधार, गुणज्ञता, रहन-सहन तथा आचरण- शीलता आदि सब गुण सद्यर्म-सेवन से प्राप्त थे। किन्तु आज वैसा नहीं है।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग: 2, निबन्ध :1, धर्म तत्व-इश्वर का नाम पृष्ठ: 13)
वर्तमान के दिनों में ढ़ोंग धर्मावलंबन बढ़ता जा रहा है। इस भाव से माखनलाल चतुर्वेदी कहते हैं।
"अब हम स्वार्थी होकर न्यायी बनने का, आलसी होकर सुधारक बनने का विश्वासहीन हो कर सत्यवादी बनने का तथा नीचे विकारवर्द्धक, पुराने तथा मलिनविचारों में अधिक रहकर पूज्य बनने का ढ़कोसला गढ़कर धर्म का असली तत्व भूल जाते हैं।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग: 2, निबन्ध : 1, 1 धर्म तत्व - इश्वर का नाम पृष्ठ: 13)
माखनलाल चतुर्वेदी जी ने दिखाऊ भक्तों को धर्म के शत्रु माना है। "जगदात्मा के दिखाऊ भक्त आज भारतवर्ष के प्रत्येक गृह की शोभा बढ़ा रहे हैं। वे धर्म के शत्रु है।" (माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली, भाग: 2, निबन्ध : 1, 1 धर्म तत्व - इश्वर का नाम पृष्ठ: 13)
निष्कर्ष : निष्कर्ष के रुप में माखनलाल चतुर्वेदी के अनुसार देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए उन्होंने बताया कि पठान जैसे देश भक्तों की जरुरत है, और हरेक नागरिक को दुर्गा का रुप का अंश बनना चाहिए। भारतीय समाज के विकास के लिए पाखण्डी पण्डितों को, भट्टाचार्यों की जरूरत नहीं है, उसके लिए नर रत्नों की यानी कर्मवीरों की आवश्यकता है। वे चर्मसेवी का विरोध करते हुए उनका रहना समाज के लिए घातक रहा है। धन का उपयोग समय आने पर दान के रुप में उपयोग करने वालों की प्रशंसा की है। उन्हें तीसरे दर्जे का दानी, दूसरी कक्षा का दानी, प्रथम कक्षा का दानी दानवीर, समाज का भूषण के रुप में उपाधि दिये हैं। उन्होंने धर्म की परिभाषा देते हुए कहा कि सदाचरण ही धर्म है धर्मावलंबन के लिए ब्रह्मचर्य को अपनाना आवश्यक अंश है। ब्रह्मचर्य का मतलब है साधना करना, हासिल करना और देश के हित में समर्पित करना है। यही राष्ट्रीय चिंतन है।
इस प्रकार माखनलाल चतुर्वेदी की चिंतन धारा आज देश के लिए प्रेरणा दायक और अनुकरणीय है। यही विचार धारा आज देश की रक्षा कर सकती है।
- मंथनि. कनकय्या
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