ईश्वर पर कविताएँ : भगवान पर कविता - Poem on God

Dr. Mulla Adam Ali
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Poem on God in Hindi : Bhagwan Par Kavita

ईश्वर पर कविताएँ

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ईश्वर (कविता)


क्या तमाशा है।

ये क्या मजाक है

जब चाहे बनाया

जब चाहे मिटा दिया

एक तरफ सुन्दर-सुन्दर स्त्रियां

धन, आभूषण, महल, चौबारे

फूल-पत्ते और दूसरी ओर

स्वर्ग, मोक्ष

एक ओर अभय तो दूसरी ओर डर

कहीं कर्म का उपदेश

कहीं भाग्य के सहारे

खूब देकर सब लिया

रुलाते रहे, हंसाते रहे

और मन बहलाते रहे अपना

ढीली डोर करते कभी खींच लेते

हम कुछ भी नहीं तुम सबकुछ

इतना बड़ा अन्याय

मन दिया, पेट दिया

लोभ, मोह, अहंकार दिया

जी भर के खेला

मन भरगया तो सब छीन हनशस

बात कुछ जमी नहीं

कठपुतल बनाकर तमाशा देखने वाले

उचित नहीं है यह

तुम्हे पजा तो खुश

नहीं तो सर्वनाश

तख्त लेकर तख्ता थमा दिया

मजा तो तब आता

जब हम और तुम बराबरी से टकराते

भगवान और भक्त के इस खेल से

तुम भी उका गये होंगे

तो आओ जरा बराबरी से

तुम नहीं या हम नहीं

हम डर कर पूजते रहे

और तुम रम्भा, उर्वशी, मेनका के संग

स्वर्ग में सुखों को भोगते रहे

हम जप-तप से आपके लिए

सुख-साधन जुटाए

और आप अपने पाप हम पर लाद दे

ये ठीक नहीं

हमें भी मौका मिले एक बार

ईश्वर बनने का

और तुम बनो आदमी

हम भी ले कुछ अनन्द

और तुम भोगो धरती के कष्ट

आदमी बनकर तमाशा देखना बंद

कर दोगे

तुम जन्म लो शक्तियों सहित

और हमें रोता बिलकखता भेजो

ये कहां का न्याय है

हे प्रभु, हे ईश्वर

आदमी के साथ ये अन्याय

कहां तक उचित है

हे खुदा, गॉड, भगवान कहलाने वाले

तुमने कीमती पदार्थों को जमीन

में छिपा कर हमें अकेला

छोड़ दिया जंगलों में वस्त्रहीन

हमने ज्ञान-विज्ञान से पदार्थ

खेज निकाले और चांद सितारों

तक पहुंच गये

हमने बुद्धि, बाहुबल, धैर्य से

कपड़े, इमारते, भवन, वायुयान

भौतिक साधनों का अविष्कार किया

हमने वेद ग्रंथों की रचना की

हमने आपको भी खोज निकाला

आपने उजड़ा अधूरा खण्डहर दिया

हमने उसे सम्पूर्ण आलीशान महल

कर दिया

इतने सब के बाद भी हम

आदम रहे और आप ईश्वर

हम हमेशा आपकी कृपा के मोहताज

और आप हमारे ईश्वर

हम इस अन्याय को वर्षों

सहन करते रहे

किन्तु अब और नहीं

विद्रोह का समय आ गया है।

- देवेन्द्र कुमार मिश्र

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