नैतिक लघु कहानियों का अद्भुत संग्रह : आठ श्रेष्ठ लघु कहानियां हिन्दी में लघुकथाएं

Dr. Mulla Adam Ali
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Govind Sharma's Eight Motivational Short Stories in Hindi : Laghukatha Lekhan

Eight Motivational Short Stories

आठ ज्ञानवर्धक व रोचक लघु कथाएं : रोचक हिन्दी लघु कथाएं : आठ दिलचस्प लघु कहानियाँ 1. लघुकथा मुफ्तखोरी 2. लघु कहानी सेल्फी 3. लघु-कथा सहारा 4. छोटी सी लघुकथा निरूत्तर 5. हिन्दी में लघु कथाएं कागज के फूल 6. शिक्षाप्रद लघुकथा बहुमत 7. प्रेरणापद लघुकथा लाजवाब 8. ज्ञानवर्धक लघुकथा समानता का तकाजा। गोविंद शर्मा जी का चौथा लघुकथा संग्रह खाली चम्मच से ये आठ लघुकथाएं आपके लिए प्रस्तुत है, 121 लघु कहानियों का संकलन खाली चम्मच में सभी प्रकार के लघुकहानियाँ हैं, जैसे भेदभाव, झूठे दिखावे आदि सभी को उजागर करती ये लघुकथाएं।


8 Best Short Stories in Hindi : Choti Kahaniyan

मुफ्तखोरी लघुकथा हिन्दी में : लघुकहानी मुफ्तखोरी

1. मुफ्तखोरी (Freebies)

रोज सुनता हूँ आज लोगों को सरकार की ओर से यह मुफ्त दिया जायेगा, आज वह दिया जायेगा। इससे दिन-ब-दिन जनता की मुफ्तखोरी बढ़ रही है। आपके विरोधी नई-नई चीजें मुफ्त माँगने के लिये लोगों को उकसा रहे हैं। आप इस मुफ्तखोरी पर लगाम क्यों नहीं कसते, सरकार जी।

हम तो लोगों की मुफ्तखोरी की आदत छुड़ाने के लिये बहुत कुछ कर रहे हैं। आपको दिखाई नहीं देता, हम क्या करें।

क्या कर रहे हैं आप?

वैसे वह सब आपको आसन्न चुनावों के बाद दिखा सकेंगे। अभी तो कुछ और मुफ्त देने की घोषणा करने के दिन हैं।

तो भी आप क्या करने वाले हैं।

यही कि मुफ्त देने की घोषणा पर घोषणा करेंगे, देंगे कुछ नहीं। देखना, इससे मुफ्तखोरी पर अंकुश लगेगा।


लघु कहानी सेल्फी : Laghukatha Selfie in Hindi - Selfie Short Story

2. सेल्फी (Selfie)

वे तीनों कंबल बाँटने आये थे। एक-एक फुटपाथी को कंबल देते और तीनों एक साथ तथा अलग-अलग फोटो खिंचवाते। जब आखिरी कंबल बँट गया तो तीनों जाने के लिये अपने-अपने बाइक पर सवार हुए ही थे कि एक शख्स ने आकर हाथ जोड़ दिये- एक कंबल मुझे भी दीजिए। दिन में ही मारे सर्दी के मरा जा रहा हूँ। रात में मेरी हालत का अंदाज कर सकते हो।

उन्होंने देखा, माँगने वाला, अब तक जिनको कंबल दिये थे, उनमें सबसे ज्यादा "नीडि' लग रहा है। पर क्या करें, कंबल तो सब बँट गये। अचानक एक के दिमाग की बत्ती जल गई। वह बोला- आज तो कंबल खत्म है। कल तुम्हें जरूर लाकर देंगे। पर एक काम आज ही कर लेते हैं- तुम्हें कंबल देते हुए की फोटो लेने का। उन्होंने अभी कुछ देर पहले जिसे कंबल दिया था, उससे वापस माँगा, इस नये शख्स को देते हुए दो चार सेल्फियाँ लीं और पहले वाले को कंबल वापस कर दिया। सभी ने अपने बाइक स्टार्ट कर लिये, अगले दिन कंबल देने का वादा तो वे पहले ही कर चुके थे।

पर इन अखबारों के पास संस्कृति तो है ही नहीं, अगले दिन के अखबार में दो फोटो, दो खबर एक साथ ही छाप दी। एक में वे तीनों एक शख्स को कंबल दे रहे हैं। दूसरी में उसी शख्स की लाश, साथ में छाप दिया- ओढ़ने के लिये कुछ न होने के कारण सर्दी से ठिठुर कर मरा बेघर।


छोटी सी लघुकथा सहारा : Sahara Laghukatha by Govind Sharma - Short Story Sahara

3. सहारा (Support)

दत्ता जी, आप तो बरसों से राजनीति में हैं। आप पर इतने संकट आये, फिर भी अभी तक आपने नैतिकता को नहीं छोड़ा। आपने अपने आपको कैसे बचाये रखा?

दत्ता जी एक बार मुस्कराये, एक बार गंभीर हुए, फिर बोले, क्या बताऊँ, बड़े कटु अनुभव हुए हैं। नैतिकता को बचाने के लिये कई बार अनैतिकता का सहारा लेना पडा है।

क्या?

हाँ, जैसे सच को सच साबित करने के लिये झूठ का सहारा लेना पड़ता है।

रोचक हिन्दी लघुकथा निरूत्तर : Speechless Hindi Short Story

4. निरूत्तर (Speechless)

पुत्र ने देखा, वह आदमी ठेले पर बहुत से नींबू-मिर्च लिये, उन्हें बेचने की आवाजें लगा रहा है।

पिताजी, इस आदमी को देखो, कैसे पसीना-पसीना हो रहा है। बावला है न?

नहीं-नहीं, बेटे, इसके नींबू-मिर्च बिकेंगे, तभी इसके घर में रोटी बनेगी।

इसीलिये तो मैं कह रहा हूँ रोटी के लिये यह इन्हें बेच क्यों रहा है। आपकी तरह करके घर में खूब रूपया पैसे ले आये और उनसे रोटी खरीद ले।

मैं..?

हाँ-हाँ, आप, दूसरे दुकानदार भी हर शनिवार को कुछ नींबू और कुछ मिर्च एक धागे में पिरोकर दुकान-घर के दरवाजे के पास लटकाते हैं। आपने ही बताया था कि ऐसा करने से व्यापार खूब चमकता है। इसके पास तो ढेरों नींबू-मिर्च हैं। इनको बेचने की बजाए इन्हें धागों में पिरोकर घर में टांग लें। इतने नींबू-मिर्च तो इसे बड़ा धनपति बना देंगे।

पिता पहले तो कसमसाये, फिर बोले- हर बात का हरेक को पता नहीं होता है। सबको बताई भी नहीं जाती। तू ऐसी बातों में अपना वक्त खराब मत किया कर, जा घर जाकर पढ़ाई करने बैठ जा।


मर्मस्पर्शी लघुकथा कागज के फूल : मर्मस्पर्शी हिन्दी कहानियाँ

5. कागज के फूल (Paper flowers)

फुटपाथ पर दुकान लगाए एक बालक रंगबिरंगे कागजों से फूल बना कर बेच रहा था। वह भी उन्हें देखने आ गया। उसने फूल खरीदे तो नहीं, पर उन्हें ध्यान से देखने लगा-कभी दूर से कभी पास से, कभी लगता, वह इन्हें सूंघ रहा है। उसकी यह हरकत देखकर पास खड़े लोग हँसने लगे। एक ने पूछ लिया- क्यों भैया, क्या कर रहे हो? जानते नहीं ये कागज के फूल हैं। इनमें खुशबू नहीं होती है।

इनमें भी खुशबू होती है। कभी सूंघ कर देखो। अच्छा? कैसी खुशबू होती है? गुलाब की?

नहीं, कागज के फूलों में गुलाब की नहीं, बनाने वाले की मेहनत की खुशबू होती है।

अब सबकी हँसी बंद थी।


Short Story Majority in Hindi : Laghukatha Bahumat

6. बहुमत (Majority)

घर में आई नई बहू ने अगले ही दिन सास से पूछा-सरकार किस की बनती है? प्रधानमंत्री कौन बनता है? चलती किस की है?

वाह! तू तो राजनीति शास्त्र में एम.ए. करके आई है। इतना भी नहीं जानती? जिसके पास बहुमत हो, उसी की सरकार बनती है, बहुमत वाला ही प्रधानमंत्री बनता है, उसी की चलती है।

जी, आप समझ गई होंगी कि अब इस घर में बहू-मत किसके पास है। अब यहाँ सब कुछ मुझ बहू-मत वाली बहू की मरजी से होगा।

बहुमत-अल्पमत लोकतंत्र में होता है, तानाशाही में नहीं। इस घर की मैं तानाशाह हूँ। विश्वास न हो तो अपने ससुर से पूछ लो।

उस दिन बहू-मत-बहुमत दोनों हार गये।


Hindi Kahani Lajawab : लाजवाब व्यंग्य लघुकथा

7. लाजवाब (Amazing)

दुकान पर लिखा था- यहाँ एकदम ताजा ज्यूस मिलता है। पढ़कर उसे तसल्ली हुई। एक गिलास ज्यूस लिया। पहली घूँट लेते ही मुँह का जायका बिगड़ गया। एकदम खट्टा, बेकार। वह दुकानदार पर उबल पड़ा। काफी देर बोलने के बाद कहा- तुमने यहाँ इतने बड़े फाँट में लिख रखा है- ताजा ज्यूस। दे रहे हो एकदम खट्टा और बासी । जवाब दो, ऐसा क्यों?

दुकानदार के जवाब से वह हतप्रभ रह गया। दुकानदार बोला- साहब, आप ही जवाब दीजिए। क्योंकि यहाँ लिखे को आपने पढ लिया है। मैं क्या जवाब दूँ, मैं तो अनपढ़ हूँ।


Short Story Equality in Hindi : लघुकहानी समानता का तकाजा

8. समानता का तकाजा (Demand of equality)

उससे पूछा गया- स्त्री-पुरुष समानता के बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं?

मेरे विचार लैंगिक समानता के बारे में बड़े अच्छे हैं। महापुरुषों ने इस बारे में बड़े सुंदर विचार प्रकट किये हैं। उन्हें सुनकर लगता है, ये सारे तो मेरे विचार हैं। इन्होंने व्यक्त कर दिये, मैं व्यक्त करने में लेट हो गया।

आपने लैंगिक समानता के विचार को मूर्तरूप देने के लिये कभी कुछ किया है?

हाँ हाँ, क्यों नहीं। मैं अपने काम पर और वहाँ से वापस अपने घर बस से आता जाता हूँ। पहले जब भी मैं सीट पर बैठा होता और कोई महिला बस में सवार होती, कोई सीट खाली नहीं होती तो मैं उसे लिये सीट छोड़कर खड़ा हो जाता था। अब क्योंकि समानता में मेरी पूरी आस्था हो गई है, मैं खड़ा नहीं होता हूँ। जब मेरे बैठे रहने से पुरुष खड़े रहते हैं तो महिला भी खड़ी रहे-समानता का यही तकाजा है।

- गोविंद शर्मा

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