पक्षियों और उसके घोंसले की शिक्षाप्रद बाल कहानी : हमें हमारा घर दो

Dr. Mulla Adam Ali
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Motivational Children's story of birds and their nests: Give us our home - Bal Kahani Hame Hamara Ghar Do

विश्व गौरैया दिवस पर विशेष हिन्दी बाल कहानी हमें हमारा घर दो : पक्षियों से संबंधित एक कहानी बच्चों के लिए हमें हमारा घर दो, मानव घर बनाकर अपना जीवन बसता है, घर सबसे सुरक्षित जगह है, इसी तरह पक्षियों के लिए भी घर चाहिए, पक्षियां अपने घर को पेड़ों पर बनाते हैं जिसे हम घोंसला कहते हैं। पक्षियों के घर घोंसला बनाने के लिए आजकल पेड़ों की कमी है, पेड़ों को काटने से आज कई पक्षियां बेघर हो रहे हैं। पेड़ों को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचाए बिना पक्षी अपना घोंसले को बनाती है, सहभोजी संबंध कहा जाता है पेड़ों और पक्षियों के बीच के संबंध को। पक्षियों से यह एक लाभ भी है की वे है बीज फैलाना, जहा हरियाली होती है वह पक्षियां भी होती है जिसे हम सहजीवी संबंध कहते हैं। बढ़ती शहरीकरण के कारण आज मानव पेड़ काटने लगा है जिससे पर्यावरण में असंतुलन हो रहा है, पर्यावरण बिगड़ने मुख्य कारण पेड़ों को काटना है। हमें हमारा घर दो बाल कहानी में यही सब बताया गया है कि एक पक्षी बेघर होकर किस तरह अपनी व्यथा को मानव के सामने व्यक्त कर रही है। बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा जी द्वारा पेड़ों के महत्व को बताते हुए पक्षियों को आधार बनाकर लिखी गई दिल को छू लेने वाली बाल कहानी हमें हमारा घर दो। हमें हमारा घर दो कहानी बच्चों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ प्रकृति में अन्य प्राणियों पर भी एक दया भावना को जगाने में प्रेरित करेगी ये बाल कहानी। ये कहानी पर्यावरण बाल कथाएं पेड़ और बादल से ली गई है।

नैतिक शिक्षा के साथ पक्षियों पर बाल कहानी

हमें हमारा घर दो

पहले बदलू गाँव में रहता था। खेती करता था। यहाँ उसके कई दोस्त थे। उन दोस्तों में एक था.... हरियल तोता। बदलू ने हरियल को कभी भी पिंजरे में बन्द नहीं किया। वह बदलू के घर और खेत में आजादी से उड़ता रहता था। बदलू के घर के पास के कई पेड़ों में से एक पेड़ के कोटर में वह रहता था। वह बदलू से बातें भी करने लगा था।

एक दिन गाँव के एक युवक के साथ बदलू शहर चला गया। शहर में वह एक कारखाने में मजदूरी करने लगा। कारखाने की धूल और धुएँ ने बदलू को बीमार बना दिया। दीवाली पर छुट्टी लेकर बदलू अपने गाँव आया। शहर में उसके पास रुपयों की अच्छी बचत हो गई थी। वह सबके लिए कुछ-न-कुछ उपहार लाया था। घर के सभी सदस्य खुश हो गए। बदलू ने अपने तोते हरियल के बारे में पूछा। उसे बताया गया कि तुम्हारे जाने के बाद कुछ दिन तो उदासी से इधर-उधर उड़ता रहा। अब पता नहीं कहाँ चला गया। यहाँ है तो भी हमें उसकी पहचान नहीं। सब तोते एक जैसे दिखाई दे रहे हैं।

बदलू ने कहा, 'मैं उसे अच्छी तरह पहचानता हूँ। मैं उसे ढूँढ लूँगा। मैं उसके लिए स्टेनलेस स्टील का नया पिंजरा लाया हूँ। "एक दिन बदलू को हरियल मिल गया। एक-दूसरे को देखकर दोनों बड़े खुश हुए। बदलू ने कहा, "हरियल, मुझे तेरी बहुत याद आती है। इस बार तू मेरे साथ शहर चलना।"

"नहीं बदलू, मुझे शहर पसन्द नहीं है। मैं एक बार अपने दोस्त के साथ शहर गया था। वहाँ का रहन-सहन मुझे जरा भी पसन्द नहीं आया। वहाँ रहने वाले आदमियों ने अपनी सुविधा के लिए अपने लिए तो बड़े-बड़े मकान बना लिए हैं पर हम लोगों को बेघर कर दिया है।"

"हरियल, तू घर की चिन्ता मत कर। देख, तेरे लिए कितना सुन्दर पिंजरा लाया हूँ।" बदलू ने कहा।

हरियल हँसते हुए बोला, वाह ! कैदखाना भी सुन्दर होता है क्या? हम पंछियों के लिए तो इतना बड़ा आकाश भी छोटा होता है। तुम हमें पिंजरे में बन्द करके हम पर कितना जुल्म करते हो, यह तुम नहीं जानते हो। मैंने शहर देखा है। तुम कई लोग मिलकर एक छोटे-से कमरे में रहते हो। उसी में सोना, नहाना और उसी में खाना बनाना। हम पक्षियों के लिए उस कमरे में कहाँ जगह हो सकती है ? उसमें कैसे तो हम सांस लें और कैसे सुनाएँ अपनी टें-टें ?

'बाहर भी कहीं बैठना चाहें तो दूर-दूर तक पेड़ नहीं। हाँ, जगह-जगह लोहे के पेड़ जरूर हैं। वे गरमी में बहुत गरम होते हैं और सर्दी में एकदम ठंडे। उन पर गरमी से बचाने वाली ठंडी छाया नहीं होती है और न ही आंधी-तूफान से बचाने वाला पत्तों का झुरमुट। हम वहाँ कैसे रह सकते हैं ?"

"तुम्हारा मतलब बिजली, टेलीफोन के खम्भों और टेलिविजन के एंटिना से है? पर ये सब तुम पक्षियों के बैठने के लिए नहीं बनाए गए हैं। तुम्हारे लिए तो वृक्ष होते हैं....... पर यह भी सच है कि हर जगह वृक्ष नहीं हैं।"

दूसरी बात हम पक्षी एक-दूसरे को पसंद करते हैं। तुमने देखा होगा कि तोता, कबूतर, कव्वा, चिड़िया आदि सब किसी एक ही जगह अपना चुग्गा ढूँढते रहते हैं। कहीं कबूतर चोंच मार रहे हों तो हम तोते समझ जाते हैं कि यहाँ चुग्गा होगा। हम वहाँ चले जाते हैं, कबूतर हमारा विरोध नहीं करते हैं। गौरैया यानी घरेलू चिड़िया तो आजकल दिखाई ही नहीं देती। क्योंकि तुम लोगों ने अपने घर ऐसे बना लिये हैं कि घर में चिड़िया तो क्या, मक्खी-मच्छर भी प्रवेश नहीं कर पाते। तुम्हारे घरों में घोंसला बनाने के लिये जगह नहीं है, प्रवेश के लिये रास्ता नहीं है। ऐसे में चिड़िया तो गायब ही हो गई। आगे भी पता नहीं क्या होगा!

ठीक कहते हो तुम ! हमने अपनी सुरक्षा के नाम पर ऐसे घर बना लिये हैं कि तुम सब असुरक्षित हो गये हो।

'चलो, मेरी कठिनाई तुम्हारी समझ में तो आई। भैया, मेरी दोस्ती निभानी है, मुझे साथ रखना है तो गाँव में रहो। खेती करो या शहर में गाँव जैसा माहौल बनाओ। फिर मुझे बुलाना।' हरियल तोता बदलू के हाथ के नए पिंजरे को घूरते हुए उड़ गया।

- गोविंद शर्मा

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