राष्ट्रीय वृक्ष प्रेम दिवस पर प्रेरणादायक बाल कहानी : पत्ते नहीं, कान

Dr. Mulla Adam Ali
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Inspirational children's story on National Tree Love Day: Not leaves, but ears - Rashtriya Vriksh Prem Diwas Par Bal Kahani

सर्वश्रेष्ठ बाल कथा पर्यावरण संरक्षण पर

16 मई राष्ट्रीय प्रेम वृक्ष दिवस पर प्रेरक बाल कहानी पत्ते नहीं, कान : वृक्षों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए हर साल 16 मई को वृक्ष प्रेम दिवस राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है, यह दिन मानने का मुख्य उद्देश्य पेड़ों के महत्व को स्पष्ट करना और लोगों में वृक्षों के प्रति जागरूकता फैलाना है। आज राष्ट्रीय वृक्ष प्रेम दिवस पर पेड़ों की रक्षा के लिए बच्चों को नैतिकता की शिक्षा देने वाली बाल कहानी पत्ते नहीं, कान प्रस्तुत कर रहे हैं। जगदीश चंद्रबोस नामक वैज्ञानिक ने साबित किया है कि वृक्षों में प्राण होती है, वे भी दर्द को महसूस कर सकते हैं, लेकिन आजकल शहरीकरण के कारण बड़ी संख्या में पेड़ों को काटा जा रहा है, पेड़ जीवन दान है पेड़ों के बिना मानव इस धरती पर रहना असंभव है। पेड़ों के महत्व को समझाने के लिए रोचक ढंग से लिखी गई बाल कहानी पत्ते नहीं, कान है। बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा ने बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए पेड़ और बादल नामक पर्यावरण बाल कथाएं लिखी है, पर्यावरण संरक्षण के प्रति बच्चों को प्रेरित करती ये बाल कहानियां। पेड़ और बादल कहानी संग्रह में 10 बाल कहानियां हैं जो वातावरण, पर्यावरण संरक्षण के प्रति सजग करती है।  आइए पढ़ते है रोचक और प्रेरक बाल कहानी पत्ते नहीं, कान।

पेड़ के विषय पर सर्वश्रेष्ठ बाल कथा : बाल निर्माण की कहानियाँ

पत्ते नहीं, कान

मेरे एक साथी ने सुनाई अपनी यह कहानी। उसने कहा, दस साल पहले की बात है, तब मैं आठवीं क्लास में पढ़ता था। मैं अपनी बुआ के घर गया था। गाँव में था उनका घर। मैंने देखा सुबह-सुबह ही फूफाजी ने स्नान किया और रसोईघर में घुस गये। कुछ मीठा, खुशबूदार पकवान उन्होंने बनाया है।

मेरे पूछने पर फूफाजी ने बताया कि मंदिर में चढ़ाने के लिए प्रसाद बनाया है। यह प्रसाद मैं हमेशा स्वयं ही अपने हाथों से बनाता हूँ।

मुझे आश्चर्य हुआ। पर मैं कुछ बोला नहीं। उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। घर के पास ही एक पेड़ था। फूफाजी ने एक हाथ में प्रसाद की थाली पकड़ी, थोड़े से ऊँची जगह चढ़े और उस पेड़ के कई पत्ते तोड़कर थाली में रख लिये।

मैंने पूछा आपने ये पत्ते किसलिये तोड़े हैं? बोले- तुम्हें कुछ नहीं पता । इन पत्तों को मैं भगवान की मूर्ति पर चढ़ाऊँगा।

फूफाजी, पेड़ आपने लगाया था ?

हम क्यों लगाएँगे पेड़ ? यह तो माली का काम है। सामने वे झोंपड़ियाँ देख रहे हो, उनमें माली रहते हैं। उनमें से ही किसी ने लगाया होगा, पाला पोसा होगा।

मैं उन दिनों नासमझ बालक ही माना जाता था। इसलिये कह बैठा फूफाजी, प्रसाद तो आप अपने हाथ से बनाकर चढ़ाते हैं, पर पत्ते किसी और के लगाये पेड़ के चढ़ाते हैं। कितना अच्छा होता यदि आप अपने हाथ से पेड़ लगाते और उसके पत्ते तोड़कर ले जाते।

फूफाजी ने गुस्से में मेरी तरफ देखा। मेरा एक कान उमेठते हुए बोले - बड़ों से इस तरह बात नहीं की जाती है।

उस दिन की बात वहीं खत्म हो गई। मैं भी वहाँ एक सप्ताह रहकर वापस अपने माता-पिता के पास चला गया।

आगे की पढ़ाई, प्रशिक्षण, नौकरी की तलाश में इतना व्यस्त हो गया कि बुआ के पास जाने का कभी समय ही नहीं मिला। बुआ के यहाँ से कई बार शिकायतें आईं कि मैं उन्हें बिल्कुल भूल गया हूँ। अभी कुछ दिन पहले बुआ के यहाँ जाकर आया हूँ - पूरे दस साल बाद।

वहाँ का तो नजारा ही बदल गया। वह गाँव, गाँव न रह कर बड़ा कस्बा बन गया। बुआ के घर के सामने की झोंपड़ियों की जगह पक्के मकान बन गये थे। बुआ के घर के पास जहाँ पहले एक पेड़ था, अब वहाँ दो हो गये थे। फूफाजी वैसे ही थे। उम्र तो बड़ी लगने लगी थी, पर पहले की तरह अपने हाथों से प्रसाद बनाते। उस दिन जैसे ही वे प्रसाद के साथ मंदिर के लिये निकले, मैं उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। फूफाजी उन दोनों पेड़ों के पास से बिना पत्ते तोड़े आगे निकल गये। मुझे बड़ी हैरानी हुई। मैं तेजी से उनके पास पहुँचा और बोला- आज आप पत्ते तोड़ना भूल गये हैं।

वे हल्के से हंसे और मेरे कंधे पर हाथ रख दिया। बोले- चलो, आज तुम भी मेरे साथ चलो।

रास्ते में उन्होंने बताया - दस साल पहले तुमने मुझे पेड़ के पत्तों के बारे में एक बात कही थी। तुम्हें याद है या नहीं, मुझे नहीं पता, पर मुझे याद है।

फूफाजी, मुझे याद क्यों नहीं होगी। उस दिन मेरी कही बात पर आपने मेरा कान उमेठा था। वह दर्द अब भी है।

उन्होंने आगे बताया - तुम्हारी बात पर उस दिन तो मुझे गुस्सा आया था । पर

तुम्हारे जाने के बाद मैंने तुम्हारी बात पर बार-बार सोचा। इस नतीजे पर पहुँचा कि मुझे एक पेड़ अपने हाथों से लगाना चाहिए। घर के पास जो दूसरा पेड़ है, वह मैंने अपने हाथों से लगाया, उसे पाल-पोस कर इतना बड़ा किया है।

तो आपने अपने हाथों से लगाये इस पेड़ के पत्ते क्यों नहीं तोड़े?

अब मैंने पूजा के लिये पेड़ के पत्ते तोड़ना बंद कर दिया है। अपने हाथ से लगाये

पेड़ के पत्ते तोड़ते समय दुख महसूस होने लगा था। एक बात और थी।

क्या ?

जब भी मैं किसी पेड़ के पत्ते तोड़ने के लिये उसे हाथ लगाता, मुझे लगता है मैं तुम्हारा कान उमेठ रहा हूँ... कह कर हँसे और धीरे से मेरा कान पकड़कर हिला दिया।

वाह, फूफाजी, आज आपने इस तरह मेरा कान पकड़कर दस साल पुराना दर्द दूर कर दिया है।

- गोविंद शर्मा

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