रंग-बिरंगे बालगीत : बेहतरीन बाल कविताओं के रंग

Dr. Mulla Adam Ali
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Rang Birangi Bal Geet book by Dr. Faheem Ahmad : Rang Birangi Bal Geet Book Review in Hindi by Dr. Divik Ramesh

Rang Birangi Bal Geet book by Dr. Faheem Ahmad

रंग - बिरंगे बालगीत पुस्तक समीक्षा : वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय डॉ. दिविक रमेश जी की दृष्टि में डॉ. फहीम अहमद की बालगीत संकलन' 'रंग-बिरंगे बालगीत'। डॉ. फहीम अहमद की बालगीत संग्रह पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार दिविक रमेश की समीक्षा हिन्दी में। Rang Birangi Bal Geet Book Review by Dr. Divik Ramesh, Rang Birangi Bal Kavitayen Children's Book, Rang Birangi Bal Geet Kids Poems in Hindi, Bal Geet in Hindi...

रंग-बिरंगे बालगीत, डॉ. फ़हीम अहमद, साहित्यागार और पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान, 2023

बेहतरीन बाल कविताओं के रंग

- दिविक रमेश 

हरे-भरे खेतों में जाना

मन को अच्छा लगता है।


खेत किनारे चले रहट तो

बजता है संगीत सुहाना।

बैठ अटरिया पर हरिया भी

उसकी धुन में गाता गाना।


अच्छा लगता साग चना का

मक्के वाली रोटी ताजी।

रोज सवेरे दही-मलाई,

हमें खिलाते हैं काकाजी।

ग्रामीण परिवेश को चित्रित करता ऊपर का खूबसूरत अंश बाल कविता 'अच्छा लगता है' से है जिसके रचयिता इस समय के सर्वाधिक सक्रिय और श्रेष्ठ बाल साहित्यकारों में से एक डॉ. फ़हीम अहमद हैं। फ़हीम अहमद की निगाह अधिक से अधिक विषयों के अनुभवों तक पहुँच बनाए रखने वाली बहुत व्यापक तो है ही, वह आज के बच्चे की सोच, उसके मन से भी गहराई के साथ जुड़ी है। इसीलिए उनके यहाँ बाल मनोविज्ञान सम्मत बालक के सपने, उसकी शरारतें, उसका नजरिया, उसके खेलकूद, उसकी दुनिया, उसके दबाव, उसकी अपेक्षाएँ आदि सब सहज रूप से उनकी रचनाओं में ढलते रहते हैं। फ़हीम प्रकृति, प्राणियों, संबंधों आदि के प्रति बालक को अपनी रचनाओं के माध्यम से सजग और संवेदनशील बनाने में समर्थ हैं। उनकी सकारात्मक दृष्टि बालक को शेष के साथ जोड़ने का काम करती है, और वह भी शेष को उसकी दुनिया का खिलंदड़ा हिस्सा बनाकर।

रचनाकार के पास वह सही समझ भी है जिसके कारण बालक को अपनी आवाज मिलती है, अपनापन और अपने होने का महत्वपूर्ण एहसास मिलता है। गौर कीजिए उनकी एक बेहतरीन कविता ' नन्ही शिकायत ' पर। एक अंश है-

मोबाइल में बिज़ी हैं पापा

लैपटॉप पर मम्मी जी।

बात करेंगे कब वे मुझसे

आकर लेंगे चुम्मी जी।

बच्चों को भी आजादी बहुत पसंद आती है। ऐसी आजादी जिस दिन न स्कूल जाने का झंझट हो, न किताबों से सर खपाना हो, न टीचर की डांट हो, न सुबह जल्दी उठने की मजबूरी हो। सबकुछ बस अपनी मरज़ी का हो। 'संडे जी' कविता में आज के बालक के ऐसे सी स्वतंत्र भाव उजागर हुए हैं।

फ़हीम के पास एक सहज पारदर्शी भाषा रूप और शब्दों से खेलने का सामर्थ्य ( 'अहा! अहा!', 'सच्ची-मुच्ची' आदि) तो है ही, बहुत ही प्रवाहमान लय के भी वे अच्छे साधक हैं। कल्पना के साथ संगीत का आनंद भी है।' नींबू की मटरगस्ती', 'मिस्टर बादल' को इस आनंद के लिए भी पढ़ा जा सकता है। 

संवाद-शैली और नाटकीयता के पुट से भी उनकी कविताएँ चमकदार हो उठी हैं। 

रचनाकार के पास 'रिमझिम फुहार ', बूँदों की बारात' जैसी कविताएँ भी हैं जिनमें पाठक चित्रात्मकता से अभिभूत हो सकता है। अपनेपन के भाव के साथ:

गालों को फुहार सहलाती

ज्यों माँ की मीठी पुचकार।

उपदेश के स्थान पर पूरी रचनात्मकता के साथ समझ को या जानकारी को कैसे साझा किया जा सकता है, इसका प्रमाण खासकर उनकी कविता 'ट्रैफिक रूल' या 'मैं हूँ आलू', बस्ते का खजाना', 'नन्हा पहलवान ', 'चटोरी मुनिया' जैसी कविताओं में खोजा जा सकता है।

बाल मनोविज्ञान से जुड़े साहित्यकार जानते हैं कि बच्चों में कितनी ही जिज्ञासाएं होती हैं , प्रश्न होते हैं जिनका समाधान मित्रवत करना होता है। मजेदार रूप में। ' किस्से सीखा है' जैसी कविताएँ उदाहरण हैं।

मुझे उन बाल रचनाकारों का रचना संसार अधिक पसंद आता है जिनके यहाँ बालक का सामान्यीकृत रूप ही न होकर, बालक के जो अनेक निजी रूप हैं, वे भी सहज मिल जाते हैं। संग्रह की एक कविता 'फिर कितना अच्छा हो' जैसी कविताओं के कारण भी फ़हीम मुझे विशेष रूप से पसंद हैं। इस कविता के अंश देखिए-

कंधे पल लटकाए थैला,

कूड़ा-कचरा, भरता है।

मजबूरी में मारा-मारा,

बच्चा दर-दर फिरता है।


औरों जैसा उस बच्चे के,

कंधे पर भी बस्ता हो,

जग के सारे बच्चे खुश हों,

तो फिर कितना अच्छा हो।

फ़हीम ऐसे रचनाकार हैं जो बालक को अन्य संबंधों के साथ स्वस्थ जुड़ाव में विश्वास रखते हैं। 'जादूगर से पापा', बात करो न मुझसे टैडी', राखी के धागे, नानी का ईमेल, ' नानी के किस्से', 'मन के पास 'आदि कविताएँ बतौर सबूत पेश की जा सकती हैं। बेहतरीन बात यह है कि जुड़ाव मनुष्येतर प्राणियों तक फैला हुआ। संवेदनशीलता और न्याय भाव के साथ। 'सजा निराली', चिड़िया कहाँ चली, भालू का स्कूल, नन्हीं गौरैया, कंगारू आदि कितनी कविताएँ मेरे इस मत की पुष्टि के लिए तत्पर हो सकती हैं।

हद तो यह है कि बच्चों में जो अपनी बेजान जीवों के प्रति भी संवेदनशील जुड़ाव होता है वह भी इस रचनाकार की निगाह में है। 'मिस्टर रोबोट ' से जुड़ी ऐसी अभिव्यक्ति से कौन पाठक होगा जो सहज आनंद से हिल नहीं जाएगा:

मेहनत करना शौक तुम्हारा,

करते हो तुम काम सभी।

ताकत कम हो जाती है तो,

गिर भी जाते कभी-कभी।


मुझे बताओ क्यों न रोते,

लगती है जब तुमको चोट!

बात 'घने पेड़ की छांव तले' की हो तो ऐसी भीगी-भीगी प्यारी अभिव्यक्ति हो जाती है-

पेड़ बने मां का आंचल तब

गर्म तवे-सी धरा जले।

फ़हीम की कविताओं में शरारती हँसी और गदगुदाहट भी मिल जाती है। 'गप्पीमल' , ' जंगल में' जैसी कविताएँ ही पढ़ लीजिए। शैतान बच्चे से 'मंकी मियाँ' की शैतानियाँ भी ध्यान में लाई जा सकती हैं।

मेरे मत में यह संग्रह बेहतरीन बाल कविताओं के वैविध्यपूर्ण रंगों से सराबोर हैं। बधाई के योग्य। 

- डॉ. दिविक रमेश,
एल-1202, ग्रेंड अजनारा हेरिटेज,
सेक्टर-74, नोएडा-201301

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