विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर विशेष पर्यावरण की देखभाल के बारे में बाल कहानी : बच गये कुआँ और पेड़

Dr. Mulla Adam Ali
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Special story on World Nature Conservation Day about caring for the environment: The well and the trees were saved : Vishwa Prakriti Diwas Par Bal Kahani

children's stories on world nature day

विश्व प्रकृति दिवस विशेष पर्यावरण केंद्रित बाल कहानी बच गये कुआँ और पेड़ : प्रति वर्ष 28 जुलाई को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पेड़ों के महत्व और पेड़ों के संरक्षण पर जागरूकता बढ़ाने हेतु मनाया जाता है, World Nature Day 28 July का ये दिन प्रकृति प्रेमियों के लिए खास है। प्रकृति और पर्यावरण पर आधारित बाल कहानी बच गये कुआँ और पेड़ में यही बताने गया है कि पेड़ हमारे जीवन के लिए क्यों अवश्य है, पेड़ों का महत्व क्या है। बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा का बालकथा संग्रह पेड़ और बादल में 10 ऐसी पर्यावरण बालकथाएँ है जो बच्चों और बड़ों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करें। वैज्ञानिक ढंग से रची ये कहानियां सीधे बच्चों के मन से बात करने लगती है और उनको मनोरंजन भी करती है। पेड़ और बादल के बालकथाएँ बाल मनोविज्ञान को दृष्टि में रखकर लिखी है क्योंकि बाल साहित्य के लिए संवेदना के अलग धरातल की जरूरत होती है। पर्यावरण संरक्षण पर लिखी ये कहानियां बोधगम्य, सहज और सरल भाषा में है और इतना ही नहीं बालक जो पसंद करता है वो सब इन कहानियों में हमें पढ़ने को मिलता है। तो चलिए अंतरराष्ट्रीय प्रकृति दिवस पर पेड़ों का महत्व को बताने वाली रोचक, प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद बाल कहानी बच गये कुआँ और पेड़ पढ़ते हैं।

World Nature Day Special Kids Story : The Well and The Tree Children's Story

बच गये कुआँ और पेड़

गाँव में रामधन को सब जानते थे। क्यों न जानें, उस जैसा सीधा-सादा, मेहनती और सायना किसान कोई-कोई ही था। उसके पास बीस बीघा जमीन थी। जमीन तो दूसरे किसानों के पास उससे ज्यादा थी, पर फसल उसकी सबसे अच्छी होती थी। इसके लिये कुछ रामधन को समझदारी को श्रेय देते तो कुछ उसके खेत में बने कुएँ को। हाँ, उसके खेत के बीचोबीच या ठंडे-मीठे पानी का कुआं। उसके पास था आम का एक वृक्ष। रामधन इसी कुएँ के पानी से सिंचाई करता था। कुछ लोग कभी-कभी उस कुएँ का पानी पीने के लिये भी ले जाते थे। रामधन किसी को मना नहीं करता था। हाँ, आम के पेड़ पर लगे फल को वह बिना पूछे किसी को तोड़ने नहीं देता था। वैसे कभी आम तो कभी कैरी वह अपने दोस्तों, परिचितों में बाँटता भी था।

समय के साथ रामधन बूढ़ा हो गया। रामधन के दो बेटे श्यामधन और राजधन जवान हो गये। उन्होंने खेत संभाल लिया। रामधन के चले जाने के बाद दोनों कुछ दिन तो साथ रहे, फिर उनमें मनमुटाव हो गया। दोनों ने अलग-अलग रहने और खेत का बंटवारा करने का फैसला कर लिया।

पटवारी को बुलाकर खेत नपवाया गया। उसने दोनों के लिये दस-दस बीघा नाप दिया। पर एक मुश्किल आ गई। एक नहीं, दो। हुआ यह कि कुआं और आम का पेड़ दोनों एकदम बोच्च में आ गये। खेत बार-बार नापा गया। हर बार आधा कुआं और आधा पेड़ इस हिस्से में तो आधा कुआं और आधा पेड़ उस हिस्से में जाता। कुएँ को आधा कैसे करें? दोनों भाइयों में कोई भी उसे छोड़ा। कुछ जुनों ने बीच में पड़कर यह फैसला करवा दिया कि कुआं और पेड़ दोनों के आधे आचे। दोनों इस कुएँ में आधा-आधा पानी लेकर अपने अपने हिस्से को जमीन में सिंचाई करेंगे। दोनों भाई पेड़ की सिंचाई करेंगे और फल आधे-आधे बाँट लेंगे।

कुछ दिन तो शांति रही. पर फिर दोनों में झगड़ा होने लगा। एक दूसरे पर अधिक एने खींचने और अधिक फल ले जाने के आरोप लगाने लगे। झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों भाइयों ने कुएँ को को मिट्टी से भर देने और पेड़ को कटवाकर उसको लकड़ी आधी आधी कर लेने का सोच लिया।

गाँव के लोगों को पता चला तो सभी दुखी हो गये। उन्हें रामधन की याद आ गई। रामधन को अपने इस कुएँ और पेड़ से कितना लगाव था। दोनों को खत्म कर देगा कितना गलत है। गाँव के कुछ लोग दोनों भाइयों को समझाने लगे।

एक ग्रामीण ने दोनों से पूछा कुआं पाटने की सोचने से पहले क्या तुम दोनों ने यह भी सोचा है कि तुम्हारे खेतों में सिंचाई कैसे होगी? हमारे पास कोई नहर भी नहीं है और बरसात का तो कभी भरोसा होता ही नहीं।

श्यामधन ने कहा- मैंने अपने हिस्से में नया कुआं खोदने का सोच लिया है।

मैं भी। अपने हिस्से में नया कुआं बनाऊँगा - राजधन ने कहा।

एक बुजुर्ग बोले- हमारा अनुभव यह कहता है कि सब कुओं का पानी एक जैसा नहीं होता है। तुम्हारे नये कुओं का पानी यदि फसल के लायक नहीं हुआ तो क्या करोगे?

पहले ही हम रोज-रोज के झगड़े की जड़ इस कुएँ को भरेंगे और पेड़ को जड़ से उखाड़ेंगे। बाकी बातें बाद में सोचेंगे दोनों भाइयों ने बारी-बारी से एक ही बात कही।

चलो, दोनों भाई किसी एक बात पर तो एक जैसे विचार रखते हैं - एक ग्रामीण ने उनका मजाक उड़ाते हुए कहा।

फिर भी दोनों अपनी जिद से नहीं टले। अचानक उनका एक खेत पड़ोसी खड़ा हुआ। सभी जानते थे कि इसको और रामधन की कभी नहीं बनी। रामधन और इसके बीच झगड़ा खेत में घुसने वाले पशुओं को लेकर होता रहता था।

वह बोला- मैं बरसों से इस कुएँ और पेड़ को देखता आ रहा हूँ। मुझे इनसे लगाव हो गया है। इन्हें बचाने के लिये एक सुझाव है। इन दोनों पर से ही दोनों भाई अपना हक छोड़ दें और इन्हें पूरे गाँव का मानकर पंचायत को सौंप दें।

इस सुझाव पर लोग अभी सोच ही रहे थे कि श्यामधन बोल पड़ा इस कुएँ तक पहुँचने के लिए मैं अपने खेत में से किसी को नहीं जाने दूंगा। कोई और रास्ता भी नहीं है।

यही बात राजधन ने भी कही। वह भी रास्ता देने को तैयार नहीं हुआ।

इस पर पहले वाला ग्रामीण फिर बोल पड़ा लो, इस बात पर भी दोनों भाई एकमत हैं।

इसके बाद वह खेत पड़ोसी फिर बोला में यह करने के लिए तैयार हूँ कि लोगों को दोनों भाई रास्ता दे देवें। रास्ते में जितनी जमीन जाती है, उतनी जमीन मैं दोनों भाइयों को अपने खेत में से दे दूँगा।

इस पर कोई नहीं बोला तो कुछ पंच बोले श्यामधन, राजधन तुम इसके सुझाव पर विचार करना। हम कल फिर आयेंगे। हम सब चाहते हैं कि कुआं और पेड़ बच जायें। तुम्हारे खेत पड़ोसी ने तो इसके लिये अपनी कीमती जमीन देने का वादा किया है।

दोनों भाई अपने घर गये। बच्चों और पत्नी को आज की सारी बातें बताईं। राजधन की पत्नी ने मायूसी के साथ कहा-अगर ऐसा हो गया तो फिर आप दोनों भाई कभी एक नहीं हो सकोगे। मनमुटाव स्थायी दुश्मनी में बदल जायेगा।

उधर श्यामधन के बच्चों ने यह सब सुनते ही कहा- इसका मतलब अब हम यह नहीं कह सकेंगे कि यह कुआं और आम का पेड़ हमारा हैं जब हम छोटे थे, तब दादाजी तो कहा कहते थे कि गाँव के लोग इस कुएँ को रामधन का कुआं कहते हैं। पेड़ को आम का नहीं, रामधन का पेड़ कहते हैं, पर ये दोनों सदा तुम्हारे रहेंगे। अब कौन छीन रहा है हमारे कुएँ को, पेड़ को ?

श्यामधन उन्हें यह नहीं कह सका कि हम दोनों भाइयों की फूट, अकड़ और जिद्द छीन रही है।

दोनों भाई रातभर चैन से नहीं सो सके। सुबह उठकर दोनों ही खेत की बजाय एक दूसरे के घर की तरफ चले थे। दोनों ने एक-दूसरे को देखा। बिना बोले ही दोनों समझ गये कि दूसरा क्या चाहता है। दिन में पंचायत के लोग, उनका खेत पड़ोसी और गाँव के कुछ लोग वहाँ पहुँचे तो सब यह देखकर हैरान हो गये कि दोनों भाई अपनी- अपनी जमीन के बीच में बनी बाड़ को हटा रहे हैं। क्यों न हटायें ? दोनों ने सोचा कि जिस कुएँ से हम पानी ले लेकर बड़े हुए हैं, बचपन से जिस पेड़ से कच्चे-पके आम खा रहे हैं, उन्हें अपने हाथों से बरबाद कर रहे हैं? जबकि सारा गाँव इन्हें बचाने में जुटा है। नाराज खेत पड़ोसी भी अपना मन बदल चुका है। दोनों के विचार मिल गये तो न तो सिर्फ कुआं और पेड़ बच गये, बल्कि दोनों के पास दस-दस बीघे जमीन नहीं, बीस बीघे जमीन हो गई। कुआं और पेड़ भी, आधे आधे नहीं, पूरे के पूरे।

- गोविंद शर्मा

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