बच्चों के लिए 3 प्यारी कविताएँ | बसंत, परीक्षा और गुब्बारे | डॉ. सुरेन्द्र विक्रम

Dr. Mulla Adam Ali
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Dr. Surendra Vikram Poems

डॉ. सुरेन्द्र विक्रम की बाल कविताएँ

पढ़िए डॉ. सुरेन्द्र विक्रम द्वारा रचित तीन मनमोहक बाल कविताएँ – बसंत ऋतु की सुंदरता, परीक्षा और बिदाई की सीख, और रंग-बिरंगे गुब्बारों की खुशी से भरी कविता। बच्चों के लिए प्रेरणादायक और आनंददायक साहित्य।

डॉ. सुरेन्द्र विक्रम की बाल कविताएँ

1. बसंत ऋतु पर कविता

पढ़िए बसंत ऋतु की खूबसूरती को दर्शाती यह प्यारी बाल कविता – खेतों की हरियाली, पीली सरसों, और हवा की मिठास से भरपूर एक सुंदर चित्रात्मक वर्णन।

बसंत ऋतु पर कविता

बसंत ऋतु पर बाल कविता: खेत, सरसों और खुशबू की रचना


सूरज प्रतिदिन नियम बनाकर 

उगता है फिर ढल जाता है।

चंदा तारों के संग मिलकर 

आसमान को दमकाता है।


सूरज की किरणें आती हैं 

पत्ती -पत्ती खिल जाती है।

चंदा की किरणों से मिलकर 

खड़ी कुमुदिनी मुस्काती है।


मौसम बदला, सूरज मचला

बड़ी-बड़ी बाँहें फैलाए। 

छू-मंतर हैं जाड़े के दिन 

अब बसंत के दिन आए।


पीली सरसों फुली हुई हैं

पीली हुईं दिशाएँ सब।

नया बौर आमों में आया 

भौंरे गुन-गुन गाएँ अब।


फूला-फूला ‘तीसी’ का मन

चना-मटर की बजीं तालियाँ।

मस्त -मगन हो झूम रही हैं 

गेहूँ की सब हरी बालियाँ।


दूर-दूर तक खुले खेत में 

हवा नाचती छम-छम-छम।

सोंधी-सोंधी खुशबू फैली

जिसमें डूब ग‌ए हैं हम।


2. परीक्षा और बिदाई पर कविता

यह बाल कविता बच्चों को पढ़ाई, परीक्षा और बिदाई के भावनात्मक पल से जोड़ती है। मिलजुलकर आगे बढ़ने और मेहनत करने की सीख देती है।

परीक्षा और बिदाई पर कविता

परीक्षा और बिदाई पर प्रेरणादायक बाल कविता | शिक्षा का संदेश


शिक्षा ऐसा मूल मंत्र है जिससे जुड़ी हुई है इच्छा 

लगातार पढ़ते-पढ़ते ही दिन बीते आ गई परीक्षा।


समय बीतता जल्दी-जल्दी घड़ी परीक्षा की अब भाई 

विद्यालय में गया बुलाया आज मिलेगी हमें बिदाई।


देखो भाई, खूब लगन से पढ़ना है तो पढ़ना है 

कैसी भी हो कठिन परीक्षा आगे आगे बढ़ना है।


पूरा साल निकल गया ऐसे फुर्र हो गई समय की चिड़िया 

अच्छा था माहौल हमारा दोस्त मिले सब बढ़िया-बढ़िया। 


यार दोस्त की लंबी-लंबी सुनकर जिसको बड़े हुए हम 

गप्प लड़ाते- मौज मनाते, अपने पैरों खड़े हुए हम। 


अच्छी लगती धूप गुनगुनी रोज बैठकर सेंका करते 

खट्टे-मीठे किस्से होते गप्प रोज ही फेंका करते। 


कैसी भी मुश्किल आएगी हमें समय से लड़ना होगा 

माना जीवन है इक सीढ़ी पर मिलजुल कर चढ़ना होगा। 


दरवाजे पर खड़ी सफलता अपना राग सुनाएगी ही

जब भी कदम बढ़ेंगे आगे, गीत खुशी के जाएगी ही।


3. गुब्बारे पर कविता

बच्चों की दुनिया में रंग भरती यह कविता पापाजी द्वारा लाए गए गुब्बारों की शरारतों और खुशियों से जुड़ी है। पढ़िए मन को बहलाने वाली एक प्यारी रचना।

गुब्बारों पर मज़ेदार बाल कविता

गुब्बारों पर मज़ेदार बाल कविता: रंग-बिरंगे सपनों की उड़ान


रंग-बिरंगे सजे-धजे, आँखों के लगते सचमुच तारे

जितने सुन्दर, उतने प्यारे, पापाजी लाए गुब्बारे


ये अपनी धुन के पक्के हैं 

कभी नहीं घबराते जी।

गैस भरी हो थोड़ी भी तो

सरपट दौड़ लगाते जी।


सचमुच कभी नहीं थकते, ये चलते पाँव-पसारे

जितने सुन्दर, उतने प्यारे, पापाजी लाए गुब्बारे।


सीधे- सच्चे, मन के अच्छे 

जन्मदिवस पर सजते जी।

बिलकुल केक नहीं खाते 

बस फट-फटकर बजते जी।


इतने खुश रहते मानो, बढ़कर छू लेंगे चाँद- सितारे 

जितने सुन्दर, उतने प्यारे, पापाजी लाए गुब्बारे।


- डॉ. सुरेन्द्र विक्रम

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