बच्चों की मनोरंजक हिंदी कविताएं - खरगोश, गौरैया, बारिश और चंदा मामा | सृष्टि पांडेय

Dr. Mulla Adam Ali
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Entertaining Hindi poems for kids - Rabbit, Sparrow, Rain and Chanda Mama| Srishti Pandey Poems for Kids, Bal Kavita In Hindi.

Srishti Pandey Poetry

srishti pandey poetry for childrens

सृष्टि पांडेय द्वारा रचित चार प्यारी बाल कविताएं - खरगोश, गौरैया, छपक छप्पक छैया (बारिश), और सुनो चंदा मामा। बच्चों के लिए हास्य, कल्पना और प्रकृति से जुड़ी सुंदर कविताएं। पढ़िए सृष्टि पांडेय की कविताएं 1. खरगोश पर बाल कविता 2. गौरैया पर बाल कविता 3. बारिश पर बाल कविता 4. चंदा मामा पर बाल कविता।

सृष्टि पांडेय की कविताएँ

Poem on Rabbit

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खरगोश

लाल आँख वाला खरगोश,

उड़ा रहा मोनू के होश।

बड़े-बड़े दो उसके दाँत,

खेल रहा बच्चो के साथ।

लगे रुई के गोले-सा,

चमक रहा है ओले-सा।

गाजर उसको भाती है,

रीता रोज खिलाती है।

कूद-कूद कर खेल रहा,

बढ़ा रहा बच्चो का जोश।

लाल आँख वाला खरगोश,

उड़ा रहा है सबके होश।

Poem on Sparrow

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गौरैया


देखो -देखो तो भैया, 

उड़ी जा रही गौरैया

इस छत से, उस छत जाती,

गेंहू के दाने खाती ।

भरा कटोरे में पानी,

चूं -चूं करती पी जाती।

छोटी पर हिम्मती बड़ी,

आसमान में दूर उड़ी।

करतब करती फुदक- फुदक

नाच दिखाती ता-थैया।

मन जैसे ही भर जाता

उड़ जाती है गौरैया।

Poem on Rain

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छपक छप्पक छैया


छपक छप्पक छैया

मुन्ना बोला- 'मैया!

बारिस की बूँदों में खेलूँ,

ता-ता-ता-ता थैया । 

छप्पक-छप्पक छैया!

मुन्नी बोली मैया,

भीग रही है गइया,

उसको भीतर लाओ,

सर्दी से उसे बचाओ।

सुनो न मेरी मैया । 

छप्पक-छप्पक छैया!

छुटकी की हैरानी,

भरा गली में पानी।

देखो, देखो नानी,

बनने लगी तलैया ।

छप्पक छप्पक छैया।

छुटकी यों चिल्लाई 

जल्दी दौड़ो भाई |

अरे! बचाओ मेरी 

डूब न जाए नवैया!

वैसे उसे बचा लेती मैं

पर मेरी छोटी छोटी पैया!

छप्पक-छप्पक छैया।

Poem on Moon

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सुनो चंदा मामा


घटते-बढ़ते-गायब होते,

गजब दिखाते करतब ।

सुनो सुनो ओ चंदा मामा !

नही चलेगा ये अब ।

हर पंद्रह दिन में बोलो क्यों,

ले लेते हो छुट्टी ?

ऐसे चलता रहा अगर तो

होगी अपनी कुट्टी ।

छुट्टी ही गर लेते हो तो ,

आओ कभी धरा पर।

मम्मी से तुमको मिलवाऊं,

दिखलाऊं अपना घर ।

दादी से सुनवाऊं तुमको 

कविता और कहानी ।

बाबा से बतियाना जी भर,

उनकी मीठी बानी ।

पापा से तुमको दिलवाऊं ,

प्यारी कई किताबें ।

दीदी से बनवा दूंगी मैं,

तुमको नई जुराबें ।

भइया के संग खूब खेलना ,

तरह तरह के खेल ।

सुनो-सुनो ओ चंदा मामा,

कर लो मुझसे मेल ।


- सृष्टि पांडेय

शोधार्थी (हिंदी विभाग) 
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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