परछाईं: बच्चों की कल्पनाशील दुनिया पर एक प्यारी बाल कविता

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Poem on the innocent curiosity of a child by Dr. Surendra Vikram, Hindi Bal Kavita, Children's Poetry, Kids Poems Hindi.

Me and My Shadow

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My Shadow Poem : यह हिंदी बाल कविता एक बच्चे की परछाईं से जुड़ी मासूम सोच और कल्पनाओं को उजागर करती है। कविता "परछाईं" में भावनात्मक गहराई और बाल मनोविज्ञान की झलक मिलती है।

एक बच्चे की मासूम जिज्ञासा पर कविता

मेरी परछाईं


जहाँ-जहाँ तक,जैसे-जैसे, जब- जब मैं चलता हूँ

साथ-साथ वैसे-वैसे परछाईं मेरी चलती है।


खेला करता हूँ मैं छत पर 

जो लंबी कम, थोड़ी चौड़ी। 

बड़ी जोर से 'शाॅट' लगाकर

मैं दौड़ा, परछाईं दौड़ी। 


मैं बस थककर खड़ा हुआ था, ठीक वहीं पर

धम-धम-धम तेजी से आकर पंखा झलती है।


मम्मी आकर खड़ी हो गईं 

चुपके से, मैं जान न पाया।

 मम्मी की परछाईं लंबी

 जिसमें मिल गई मेरी छाया।


परछाईं, जो जैसा होता रखती नजर सभी पर

चेहरे पर चेहरा, वह अपना चेहरा रोज बदलती है।


 परछाईं से मैंने पूछा--साथ- साथ 

तुम मेरे जैसे क्यों चलती हो? 

जैसे - जैसे मैं करता हूँ, वैसा ही 

करने को, तुम तो रोज मचलती हो। 


परछाईं ने बड़ी जोर से हँसते- हँसते, देखा मुझको

समझ गया मैं, वह खुशियों का चंदन सबको मलती है। 


- डॉ. सुरेन्द्र विक्रम

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