बगुले की चालाकी और केकड़े की सूझबूझ: एक शिक्षाप्रद पद्यकथा

Dr. Mulla Adam Ali
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The Cunning Crane and the Clever Crab Hindi Verse Story by Dr. Surendra Vikram, Poetry Story in Hindi, Hindi Children's Poem.

Poetry Story in Hindi

the cunning crane and the clever crab

Hindi Padya Katha : पढ़िए एक रोचक और नैतिक शिक्षा से भरपूर पद्यकथा जिसमें एक बगुला छल करके जीवों को खाता है, लेकिन अंत में एक समझदार केकड़ा उसकी सच्चाई जान जाता है। यह कहानी बच्चों और बड़ों दोनों के लिए है।

एक शिक्षाप्रद पद्यकथा

बगुले की चालाकी, केकड़े की अक़्ल


सुनो कहानी उस बगुले की 

जिसके सभी नुकीले दाँत।

उजले-उजले पंखों वाला 

चुपके से करता आधात।  


पानी तो मछली का घर है 

जिसमें रहना है मजबूरी। 

इधर-उधर तैरा करती हैं 

कभी नहीं लगती है दूरी।


एक टाँग से खड़े-खड़े ही 

बगुला ध्यान लगाता जल में।

मछली कुछ भी सोच न पातीं 

चट कर जाता उनको पल में।


ऐसे सारी उमर गुजारी 

आना था, आ गया बुढ़ापा। 

भाग रही हैं तेज मछलियाँ

देख-देखकर खोया आपा।


मन ही मन में लगा सोचने 

पड़ जाएंगे जान के लाले।

कैसे पकड़ें तेज मछलियाँ 

बिना किए कुछ, बैठे-ठाले। 


सोच-सोच कर हार गया तब 

मन ही मन तरकीब लगाई।

पानी से बाहर निकला, और 

जोर-जोर आवाज लगाई। 


जंगल के सारे पशु-पक्षी 

जीवों, सुनो लगाकर ध्यान।

बड़े ज्योतिषी ने बतलाया 

बुरी खबर पर लाओ कान।


अगले साल न बारिश होगी 

आसपास सूखेंगे ताल ।

कटा पड़ा है जंगल सारा 

बुरा सभी का होगा हाल।


सचमुच थी मनहूस खबर 

मेंढक, मछली घबराए सब।

कछुआ,घोंघा, केंचुल, सीपी 

मन ही मन अकुलाए सब। 


बगुले से ही किया प्रार्थना 

इस संकट का करो उपाय। 

सूख गए तालाब अगर तो 

मर जाएँगे हम असहाय।


बगुला तो था यही चाहता 

इसीलिए फैलाया जाल।

जिसमें आकर गिरे जीव,सब

सफल हो गई उसकी चाल।


ऊपर से चिंतित हो बोला-- 

एक ताल है जंगल पार।

घूम रहा है मेरे मन में 

कल से ही यह नया विचार।


सोच रहा हूँ एक-एक कर 

तुम सबको उसमें पहुँचाऊँ।

संकट आने से पहले ही 

मैं तुम सब की जान बचाऊँ।


अगले दिन से शुरू हो गया

मेंढक एक पीठ पर जाता।

बीच राह में उसे पटककर 

बगुला बड़े प्यार से खाता।


एक दिन मेंढक,एक दिन मछली 

रोज नियम से बगुला खाता।

शक की सुई, कभी ना घूमे 

पड़े-पड़े घर में सुस्ताता। 


उस दिन था इतवार 

केकड़े की जब आई बारी।

बगुला बोला-- बैठो प्यारे 

तुम भी करो सवारी ।


थोड़ी दूर उड़ा था बगुला

डींगमार, सच बात बताई।

सुनो केकड़े, मेंढक के संग

मैंने खूब मछलियाँ खाई।


मेंढक-मछली, मछली-मेंढक 

ऊब गया था खाते-खाते।

स्वाद बदलने की खातिर

मैं तुमको लाया जाते-जाते।


- डॉ. सुरेन्द्र विक्रम

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