बालमन को छूने वाली 6 कविताएँ – डॉ. राकेश चक्र की कलम से

Dr. Mulla Adam Ali
0

Hindi Poetry Collection Book Desh Bane Sone Ki Chidiya by Dr. Rakesh Chakra Poems in Hindi, Bal Kavya Sangrah, Kavita Kosh.

Desh Bane Sone Ki Chidiya

rakesh chakra six poems for childrens

"देश बने सोने की चिड़िया" बालगीत संग्रह से डॉ. राकेश चक्र की छह प्रेरणादायक कविताएँ बच्चों की कल्पनाशक्ति, संवेदनशीलता और जीवन के रंगों को उजागर करती हैं। इन बालगीतों में प्रकृति प्रेम, हँसी-खुशी का संदेश, सप्ताह के दिनों की जानकारी, बादलों की कल्पना, चिड़िया की मस्ती, और बचपन की विषम परिस्थितियों का चित्रण बड़े ही सरस और सरल भाषा में किया गया है। यह संग्रह शिक्षकों, अभिभावकों और साहित्यप्रेमियों के लिए बच्चों को नैतिक और भावनात्मक रूप से समृद्ध करने वाला एक बेहतरीन साधन है। हर कविता में छिपा है एक गहरा संदेश और बालमन को छू लेने वाली सहज भाषा।

डॉ. राकेश चक्र की छह बाल कविताएँ

रंग-बिरंगी दुनिया की बाल कविता

नए-नए यह झूलों वाला कविता

यह बालगीत बच्चों को पार्क की रंग-बिरंगी दुनिया से परिचित कराता है, जहाँ झूले, फूल, खेल और हँसी-खुशी का माहौल है। कविता में शिवपुरी के एक पार्क का सुंदर चित्रण है, जहाँ बच्चियाँ झूल रही हैं, बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं, और प्रकृति भी खिलखिला रही है।

1. नए-नए यह झूलों वाला


शिवपुरी का पार्क निराला।

नए-नए यह झूलों-वाला ।।


रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं

डाल-डाल पर भ्रमर मिले हैं।


प्राची-शिल्पी झूल रही हैं

मन में हर्षित फूल रही हैं।


हैं लड़के खेल रहे क्रिकेट

पेड़ तना, बन गया विकेट।


लपका-लपकी गेंद खेलते

दौड़-भाग में सभी ठेलते ।


पारक, खुशियाँ देनेवाला।

दुःख, थकान मिटानेवाला ।।


मनोरंजक और शिक्षाप्रद बाल कविता

बाल कविता हँसी-खुशी के दिन

यह कविता सप्ताह के सातों दिनों को सरल और रचनात्मक ढंग से प्रस्तुत करती है। बच्चों को सप्ताह के नाम याद कराने और उन्हें धरती की गति, सूरज और समय के संबंध में ज्ञान देने वाला यह गीत मनोरंजन के साथ शिक्षा भी देता है।

2. हँसी-खुशी के दिन


बच्चो ! आओ बताएँ बात

सप्ताह में दिन होते सात ।


पहला दिन होता सोमवार

दूसरा दिन है मंगलवार ।।

दिवस तीसरा है बुधवार

दिन चौथा है वृहस्पतिवार ।।

है दिवस पाँचवां शुक्रवार

छटवाँ दिवस पड़े शनिवार ।।

फिर छुट्टी का आता वार

जिसको कहते सब रविवार ।।


घूम रही लट्टू-सी धरती

जो है रात और दिन करती ।।

सूरज कभी नहीं हिलता है

मानो ! लगता वह चलता है।।

आओ खेलें, पढ़ लें प्यारे

हँसी-खुशी के दिन हैं सारे ।।


हँसी के महत्व को दर्शाती कविता

हिंदी बाल कविता हँसे-हँसाएँ

हँसी के महत्व को दर्शाती यह कविता बच्चों को सिखाती है कि मुस्कान सेहत और जीवन में खुशियाँ लाती है। यह गीत बच्चों को सकारात्मक सोच, मिलजुल कर रहने और बीमारी को दूर रखने का सरल संदेश देता है।

3. हँसे-हँसाएँ


आओ हँस लें और हँसा लें।

बढ़िया सेहत सभी बना लें।।

मुन्नू-चुन्नू-बिन्नू आओ ।

रिन्की-चिन्की-पिन्की गाओ ।।

खूब हँसो, हँस-हँस बतिआओ।

खुशियाँ ही खुशियाँ नित पाओ ।।

काम सदा हँस-हँस कर करना।

मंजिल अपनी बढ़ते चलना ।।

हँस-हँस के भागें बीमारी।

जीवन लगता सदा सुखारी।।

हँसी-खुशी से हम रहते हैं।'

कष्टों को हँस-हँस सहते हैं।।


बच्चों की कल्पनाशील रचना

बाल गीत काले बादल -गोरे बादल

बादलों की अठखेलियों और वर्षा की कल्पना से सजी यह कविता बच्चों की कल्पनाशीलता को बढ़ावा देती है। बादलों की विविधता, वर्षा का आनंद और धरती की हरियाली का सुंदर वर्णन इसमें है।

4. काले बादल -गोरे बादल


झूम-झूम कर बरसो बादल ।

घूम-घूम कर हरषो बादल ।।

काले बादल, गोरे बादल

चित्र उकेरें प्यारे बादल ।।


धूल-तपन शीतल हो जाए

आम-आँवला-पीपल गाए

तन भी उछले, मन भी उछले,

खुशियाँ खुशियाँ भर दो बादल ।।


पपीहा और मयूरा हरखें हरषें 

रास-रंग जब मेघा बरसे

हरी चुनरिया धरती ओढ़े

जल ही जल बरसाओ बादल ।।


'सोनू भीगें, 'मोनू भीगें

झूलों पर बढ़ जाएँ पींगें

राग-मल्हार सुनो जी बादल

ठुमुक-ठुमुक के ग़रजो बादल ।।


प्रकृति और मनुष्य पर कविता

मगन हुई तो चहके बाल कविता

यह कविता एक नन्हीं चिड़िया की चहचहाहट और उसकी मस्ती भरी दुनिया को चित्रित करती है। बच्चों के लिए यह गीत प्रकृति से जुड़ाव और सरल जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

5. मगन हुई तो चहके


नन्हीं चिड़िया

इधर फुदकती, उधर फुदकती

अपनी मस्ती ले के।।


डाल-डाल पर वह तो बैठे

लगती कितनी खुश है

आँगन में आ जाती अक्सर

सचमुच में दिलकश है

करती गुन-गुन

अपनी धुन में

मगन हुई तो चहके ।।


जाड़ा-बाड़ा कैसा होता

उसको समझ नहीं है

थोड़ा-सा चुगती है दाना

बिल्कुल थकन नहीं है

पानी पीती

कौवा आता

फुर्र उड़ी कुछ कह के ।।


संवेदनशील बाल कविता

बाल कविता बचपन कूड़ाघर

यह संवेदनशील कविता उन बच्चों की पीड़ा को दर्शाती है जो कूड़े में पलते हैं। बाल श्रम, उपेक्षा और गरीबी का यथार्थ रूप इसमें उजागर होता है। यह बालगीत बच्चों में सहानुभूति, सामाजिक चेतना और करुणा जगाने का कार्य करता है।

6. बचपन कूड़ाघर


कूड़े से जीवन जीते हैं

कितनी-द्वेष-घृणा पीते हैं।

कपड़े गूदड़-मैल-कुचैले

हँस-हँस कर फिर भी जीते हैं।

रोज डरावैं पशु भी हमको

बदबू खाते दिन बीते हैं।

आँख फेरते सब ही भाई

मन सबके रीते-रीते हैं।

लगता बचपन कूड़ाघर है

फटे वसन सारे सीते हैं।


ये भी पढ़ें; भूल-भुलइया बचपन | एक मासूम दुनिया की झलक

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. learn more
Accept !
To Top