जंगल की कोरोना कथा: भूषण भालू बनाम गोकुल की दवा का सच

Dr. Mulla Adam Ali
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Corona story of the jungle: Bhushan bear vs the truth of Gokul's medicine by Dr. Surendra Vikram, Hindi Padhya Katha, Kids Poems, Children's Poem in Hindi.

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Hindi Verse Story : पढ़िए एक मनोरंजक पद्य कथा जिसमें जंगल में फैले वायरस से जानवरों की जंग, भूषण भालू की समझदारी, और गीदड़ गोकुल की चालाकी को उजागर किया गया है। यह कहानी बच्चों और बड़ों दोनों के लिए ज्ञानवर्धक और रोचक है।

मनोरंजक हिंदी पद्य कथा

गोकुल का कर दिया सफाया


चंदन वन के ठीक बीच में 

हरा - भरा ,सुंदर मैदान ।

उसमें इक तालाब बड़ा सा 

सचमुच वह जंगल की शान। 


अजब कहानी उस तालाब की 

जिसे सुनातीं मेरी नानी ।

भीषण से भीषण गर्मी में 

नहीं सूखता उसका पानी।


जंगल के सारे पशु-पक्षी 

आकर उसमें रोज नहाते। 

जिसको जो भी अच्छा लगता

जंगल के मीठे फल खाते। 


हँसी- खुशी दिन बीत रहे थे

बुरी खबर जंगल में आई ।

कोई नया 'वायरस' आया 

कर देगा जीवन दुखदाई। 


हाथी से लेकर चींटी तक 

होंगे इसके सभी शिकार।

एक दूसरे को छूने पर 

कर देगा सबको लाचार। 


देख नहीं पाओगे उसको 

घुस जाएगा सीने में ।

घूम-घूम चक्कर काटेगा

मुश्किल होगा जीने में।


खबर सुनी भूषण भालू ने 

कूट- पीसकर दवा बनाई।

पहले नाम लिया ईश्वर का 

लोगों को फिर, दवा पिलाई। 


भूषण भालू का कमाल था 

या कि ईश्वर का वरदान।

गायब हुआ 'वायरस' डरकर

सफल हुआ उनका अभियान।


पूरे जंगल में भूषण की 

जोर-शोर से हुई बड़ाई।

लेकिन गीदड़ गोकुल को 

जाने क्यों बात नहीं पच पाई।


अगले दिन वह शहर गया, और

किया दवा पर लंबा खर्चा ।

मोटे कागज पर छपवा कर 

जंगल में बँटवाया पर्चा ।


सुनो- सुनो जंगल के वासी 

खुली दवा की न‌ई दुकान।

कैसा भी हो, रोग पुराना

ठीक करेंगे हम श्रीमान।


शेर सिंह का छोटा बेटा 

वीर सिंह को हुआ जुकाम। 

नाक हमेशा बहती रहती 

उसे नहीं मिलता आराम।


पर्चा पढ़कर वीर सिंह ने 

शेर सिंह को याद दिलाया।

उसी शाम,सब काम छोड़कर 

गोकुल को जाकर दिखलाया।


दो दिन दवा खिलाई उसको

दोनों कान हो गए 'लाॅक'।

पेट फूलकर कुप्पा जैसा 

बहती, सूखी दोनों नाक।


बेटे का यह हाल देखकर 

शेर- शेरनी हुए उदास।

मन ही मन में गुस्सा आया

ग‌ए तुरत भूषण के पास।


झट भूषण ने चूर्ण बनाकर 

पानी के संग उसे पिलाया। 

कुछ घंटे के बाद, दवा ने 

वीर सिंह पर असर दिखाया। 


लगातार छह दिन तक भूषण

सोच-सोच कर दिया दवाई।

खाने में परहेज बताया

बिलकुल खाना नहीं मिठाई।


अगले दिन ही शेर, शाम को 

गोकुल की दुकान पर आया। 

बंद करो यह नाटकबाजी 

पहले तो उसको समझाया।


गोकुल था घमंड में फूला 

लगा शेर सिंह को हड़काने। 

लंबी-लंबी छोड़ रहा था 

बात शेर की, एक न माने। 


उसकी झूठी बातें सुनकर

गुस्सा बहुत शेर को आया। 

आगे बढ़कर मारा पंजा 

गोकुल का कर दिया सफाया।


- डॉ. सुरेन्द्र विक्रम

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