हिंदी बाल कविता : पलकों की चादर

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Bal Kavita

पलकों की चादर


थपकी देकर हाथ थक गए,

लजा- लाज कर लोरी हारी।

तुम अब तक न सोये लल्ला,

थककर सो गई नींद बिचारी।


वृंदावन के कृष्ण कन्हैया,

देखो कब के सो गए भैया।

पर तुम अब तक जाग रहे हो,

किये जा रहे ता-ता थैया।


कौशल्या ने अवधपुरी में,

राम लखन को सुला दिया है।

गणपति को माँ पार्वती ने,

निद्रा का सुख दिला दिया है।


हनुमान को अंजनी माँ ने,

शुभ्र शयन पर अभी लिटाया।

तुरत फुरत सोये बजरंगी,

माँ को बिलकुल नहीं सताया।


सुबह तुझे में लड्डू दूँगी,

बेसन की बर्फी खिलवाऊँ।

पर झटपट तू सोजा बेटा,

तू सोये तो मैं सो पाऊँ।


अगर नहीं तू अब भी सोया,

तो मैं गुस्सा हो जाऊँगी।

और इसी गुस्से में अगले,

दो दिन खाना न खाऊँगी।


इतना सुनकर लल्ला भैया,

मंद-मंद मन में मुस्काये।

धीरे से अपनी आँखों पर,

पलकों की चादर ले आये।


- प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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